कैंसरःज्योतिषीय दृष्टि

कैंसरःज्योतिषीय दृष्टि

वर्तमान समय में कैंसर सर्वाधिक भयप्रद बीमारी के रुप में चर्चित है । वैज्ञानिकों की लाख चेष्टा के बावजूद अभी तक इसका समुचित उपचार ढूढ़ा नहीं जा सका है । थोड़े-बहुत जो भी उपचार हैं, वो बहुत ही अर्थ साध्य हैं और पूरे तौर पर सुनिश्चित भी नहीं हैं ।  समुचित उपचार का अभाव ही रोग को अधिक भयावह बना दिया है । रोग का निश्चय हो जाना, मृत्यु घोषित हो जाने जैसा है ।  सबसे बड़ी बात ये होती है कि प्रायः घोषणा ही तब होती है जब रोग चौथे स्तर में पहुँच चुका होता है । फलतः उपचार के लिए समुचित समय भी नहीं मिल पाता ।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भले ही कैंसर एक नयी बीमारी हो, किन्तु भारतीय विज्ञान- आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र के लिए बिलकुल नया नहीं है । आयुर्वेद में कर्कटार्बुद नाम से  विशद वर्णन है इस व्याधि का और समुचित चिकित्सा भी सुझायी गयी है । इसी भांति ज्योतिष में भी इसकी पर्याप्त चर्चा है ।  किन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपने शास्त्रों पर भरोसा नहीं है । इसे पढ़ने, जानने, अनुसंधान करने में उतनी अभिरुचि नहीं है, जितनी पाश्चात्य पद्धतियों में । ये भी सोलह आने सच है कि हमारे शास्त्रीय विज्ञान को वर्बरता पूर्वक विदेशियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किया गया है । खेद है कि आज भी वही काम , पहले से भी कहीं बढ़-चढ़कर स्वदेशियों द्वारा जारी है ।

सर्वविदित है कि ज्योतिषशास्त्र पूर्वानुमान और सुनिश्चय का शास्त्र है । इसका सहारा लेकर यदि विचार करें तो समय से बहुत पहले ही  स्थिति ज्ञात हो जा सकती है और तदनुरुप समुचित उपचार भी कर सकते हैं । आज इसी आलोक में अर्बुदकर्कट /  कर्कटार्बुद पर विचार करते हैं ।

            कैंसर नाम की एक राशि होती है, जिसे भारतीय ज्योतिष में कर्कराशि कहते हैं । मेषादि राशिक्रम में इसका स्थान चौथा है । इसके स्वामी चन्द्रमा हैं । स्वभाव से यह चर राशि है । कालपुरुष के हृदय का प्रतिनिधित्व करती है ये राशि, फलतः जातक के हृदय से इसका विशेष सम्बन्ध माना जाता है । लग्नादि क्रम से चतुर्थ भाव को कर्क का प्रतिनिधित्व मिला है । अतः भले ही किसी जातक का जन्मलग्न कोई भी हो, उसके चतुर्थ भाव का विचार कर्करोग (कैंसर) विचार के सम्बन्ध में अवश्य करना चाहिए । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि कर्कराशि जातक की कुण्डली में किस भाव में पड़ी हुयी, यानी कि जातक का जन्मलग्न क्या है ।  

            जन्मांकचक्र के चतुर्थ भाव में राहु की अवस्थिति हो, अथवा कर्कराशि पर आरुढ़ होकर राहु किसी भी भाव में विराज रहा हो तो कर्करोग होने की सर्वाधिक आशंका जतायी जा सकती है । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि चतुर्थ भाव और इसका भावेश किसी न किसी तरह यदि राहु से प्रभावित - दृष्ट, पीड़ित हो तो कर्करोग की आशंका जतायी जा सकती है । राहु की पूर्ण दृष्टिभोग के सम्बन्ध में अन्यान्य ग्रहों से किंचित भिन्न मत पर ध्यान देना चाहिए ।
यथा—सुत मदन नवान्ते पूर्ण दृष्टिं तमस्य , 
          युगल दशम गेहे चार्द्ध दृष्टिं वदन्ति ।
        सहज रिपु पश्यन् पाददृष्टिं मुनीन्द्राः , 
  निज भुवन मुपेतो लोचनांधः प्रदिष्टः ।।  (पंचम,सप्तम,नवम- पूर्ण दृष्टि, द्वितीय और दशम- अर्द्ध दृष्टि, तृतीय और षष्ठम पाद दृष्टि तथा स्वगृह(कन्या राशि पर)राहु लोचनांध होते हैं । )

 चतुर्थ भावपति का नीचस्थ वा शत्रुक्षेत्रस्थ होने पर भी कर्करोग की स्थिति हो सकती है । इन स्थितियों के अतिरिक्त चन्द्रमा, शनि, मंगल, सूर्य आदि का भी गम्भीरता से विचार अवश्य कर लेना चाहिए । क्यों कि उक्त ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि आदि का सीधा प्रभाव पड़ता है रोग की स्थिति, मात्रा और अंग वा प्रकार पर । जैसे मंगल की विकृति से ब्लडकैंसर का खतरा हो सकता है । बुध की विकृति से ग्रन्थियों का बाहुल्य रहेगा इत्यादि ।

            मुख्यतः लोग षष्ठम भाव से रोग का विचार करते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त प्रथम, अष्टम व द्वादश भाव का भी गहन विचार करना चाहिए । साथ ही द्वितीय एवं सप्तम भाव को मारकेशत्व प्रधान होने के कारण इनपर भी विचार अवश्य करना चाहिए । रोग की साध्यासाध्यता की जानकारी हेतु सूर्य के बलाबल का ध्यान देना आवश्यक है । प्रभावी (जिम्मेवार) ग्रह (रोगकारक) की महादशा, अन्तर्दशादि के समय रोग की उग्रता समझनी चाहिए । मारकेशत्वों के बलाबल से साध्यासाध्यता की पहचान की जा सकती है । अस्तु ।   

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