लोकतन्त्र की पंचकर्म चिकित्सा



लोकतन्त्र की पंचकर्म चिकित्सा

            सुनने में आया है कि हमारा प्यारा लोकतन्त्र बहुत बीमार हो गया है । हालाकि बूढ़े अकसर बीमार होते ही रहते हैं । हमेशा कुछ न कुछ लगा ही रहता है- कुछ नहीं तो सर्दी-ज़ुकाम तो जरुर । दरअसल लम्बे समय तक काम करते-करते शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग प्रायः शिथिल होने लगते हैं । रोग प्रतिरोधी क्षमता भी घट जाती है । देखभाल करने वालों की अनदेखी हुयी तो हालात और भी खराब हो जाता है । देखी-अनदेखी के चक्कर से बचने के चक्कर में ही आधुनिक सोच-विचार वाले लोग प्रायः घर के बूढे-बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में धर आते हैं और इत्मीनान से रहते हैं - हम दो हमारे दो बनकर । 

किन्तु हमारे अभागे लोकतन्त्र के साथ कुछ अजीब सा वाकया हो गया है । गोपनीय बात ये है कि मेज़र सीजेरियन ऑपरेशन से इसका जन्म हुआ था । दुर्भाग्य से सीनीयर डॉक्टर अस्पताल कर्मचारियों की कारगुज़ारी से सस्पेन्ड हो गया था , या कि लम्बी छुट्टी पर चला गया था । अस्पताल के कुछ गुप्त सूत्रों से तो यहां तक पता चला है कि सीनीयर डॉक्टर को कुछ जूनियरों ने मरवा डाला है आपसी मतभेद के चलते ।

जो भी हो, जूनियर डॉक्टर भोंचूमल अब्बल दर्जे का ऐयाश था । लोग तो यहां तक कहते हैं कि ऐयाशों के कोठे पर उसने अपना लोक-लाज , धरम-ईमान सब गिरवी रख दिया था ।  उसका एक शागिर्द भी था, जो मौके-बेमौके साथ दिया करता था । ऐन डिलेवरी के दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ । बूढ़ा वाप ओ.टी. के बाहर चीखता-चिल्लाता रहा, पर किसी ने एक न सुनी और आनन-फानन में इन्हीं दो जूनियरों ने ऑपरेशन कर डाला । साथ में एक चतुर नर्स भी थी ।

सुनते हैं कि नर्स ने गलती से या कि जानबूझ कर स्पैकुला का हैंडिल उल्टा कस दी , जिसके कारण नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज़ हो गया । जिस जल्दीबाजी में ऑपरेशन किया गया, उससे भी जल्दबाजी में विदेशी कई अस्पतालों की खाक छान कर एक सड़ा-गला सा ब्रेन एडॉप्ट किया गया ।

अब भला दूसरे किसी शरीर से निकाला गया दिमाग किसी और शरीर में बिलकुल फिट्ट हो ही जाये इसकी क्या गारंटी ! कुछ अनुभवी विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया था कि इससे बालक के भविष्य ही नहीं वर्तमान को भी खतरा है । किन्तु विशेषज्ञ से राय लेने की केवल परम्परा है हमारे यहां । राय मानने की जरुरत तो समझी ही नहीं जाती । नतीजन,  हुआ भी कुछ वैसा ही । एडॉप्टेड ब्रेन इन्फेक्शन के कारण बहुत तेजी से फेफड़े, हृदय, किडनी वगैरह सबके सब खराब होने लगे ।

मज़े की बात ये है कि पुराने अनुभवी चिकित्सक भी धीरे-धीरे घसकते गये दुनिया से, और सही उपचार कभी न हो पाया । हालाकि बिलकुल मेच्युरीटी एरा में ही एक योग्य सर्जन मिला था, किन्तु उसके साथ भी वही किया गया जो सीनियर वाले डॉक्टर के साथ किया गया था ।

   किसी तरह शैशव बीता । जवानी भी गुज़र गयी कसमसाते-कराहते और अब तो पूरे सत्तर साल का हो चला है । अब क्या खाक स्वस्थ होगा ।

    सौभाग्य की बात है कि इधर एक सुश्रुत सिद्धान्त वाला चिकित्सक मिला है । उसने दावा किया है कि उसकी पंचकर्म चिकित्सा से बिलकुल ठीक किया जा सकता है । रुग्ण वृद्ध को भी ऋषि च्यवन की तरह युवा बनाया जा सकता है ।

    भारतीय चिकित्सा पद्धति में पंचकर्म एक ऐसा उपचार है, जिससे जटिल से जटिल व्याधि से भी मुक्त हुआ जा सकता है ।  किन्तु देशी पद्धति में किसी को विश्वास हो तब न । देखना है कि घरवालों की क्या राय बनती है ।

   मुझे तो डर है कि इसे भी चिकित्सा का समुचित अवसर नहीं दिया जायेगा । पंचकर्म कोई जल्दबाजी वाली चिकित्सा तो है नहीं । थोड़ा धीरज तो रखना ही होगा । जन्मजात बीमारी के इलाज़ में थोड़ा समय तो लगेगा ही ।
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