लोकतन्त्र का जीर्णोद्धार—
प्रायः हम सभी महसूस कर रहे हैं कि
हमारी व्यवस्था बहुत ही लुंजपुंज है । खूबियां बहुत कम है, खामियों की भरमार है ।
अतः इसमें आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा है । इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति, ईमानदारी, समर्पण,
सेवाभाव, कर्मठता तथा यथोचित त्याग और बलिदान की आवश्यकता है ।
यहां हम कुछ खास बातों (सुझावों) की
चर्चा करते हैं । आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तटस्थ होकर विचार करेंगे तो
आपको भी उचित लगेगा । आपके भी मन में कुछ ऐसे विचार कौंध रहे होंगे । उन
सद्विचारों का भी स्वागत है ।
यहां दिये जा सुझावों का
क्रियान्वयन कैसे होगा, इसके लिए हम सबको विचार करने की जरुरत है । और सिर्फ विचार
ही नहीं पहल भी, क्यों कि अब पानी नाक के नीचे तक पहुँच चुका है । अब देर नहीं
होनी चाहिए ।
सुझाव—
१.
संसदीय
लोकतान्त्रिक प्रणाली को समाप्त की जाय और बिलकुल नयी व्यवस्था-नीति बनें, जो
सर्वांग भारतीय संस्कृति आधारित हो ।
२.
तथाकथित संविधान (जो
वास्तव में भारतीय संविधान है ही नहीं), को अविलम्ब निरस्त किया जाये । इसके साथ
ही अब तक लागू सभी नियम-कानून पूरी तरह से समाप्त कर दिये जायें ।
३.
स्वतन्त्र भारत, स्वायत्त
भारत(आर्यावर्त) का नया संविधान रचा जाये, जो
हमारी राष्ट्रभाषा में हो और उसका अनुवाद प्रत्येक प्रान्तीय भाषा में भी हो ।
४.
स्विसबैंक में कैद
भारतीय धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित की जाये । उसे वापस लाकर, राष्ट्रहित में
उपयोग किया जाये ।
५.
नागरिक की चल-अचल व्यक्तिगत
सम्पत्ति की न्यूनतम और अधिकतम सीमा निर्धारित की जाये । सीमा से नीचे हो तो उसकी
पूर्ति की जाये और अधिक हो सो राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित हो ।
६.
धार्मिक स्थल, ट्रस्ट
आदि भी उक्त सम्पत्ति-सीमा के दायरे में हों ।
७.
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था
को समाप्त करके, भारतीय गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली पुनः प्रारम्भ की जाये ।
८.
विद्यालय, महाविद्यालय
आदि किसी व्यक्ति या संस्था की सम्पदा न हों, वो राष्ट्रीय सम्पत्ति हो ।
९.
स्नातक तक की
शिक्षा-व्यवस्था निशुल्क और अनिवार्य हो ।
१०.स्वास्थ्य
सुविधायें निशुल्क हों ।
११.लोकपाल,लोकसेवक,लोकनायक
जैसे पदों का चयन हो । चयन-प्रक्रिया वर्तमान वोटिंग-सिस्टम कदापि न हो । अनगिनत
राजनैतिक पार्टियां न हों ।
१२.विदेशी
कम्पनियों और कारोबारियों पर कठोर नियन्त्रण हो । उनके मुनाफे का नब्बे प्रतिशत
भाग देश के बाहर न जाये ।
१३.किसी
भी कम्पनी में काम करने वाले कोई भी व्यक्ति(पद) वेतन भोगी न हों, बल्कि कम्पनी के
हिस्सेदार हों । कार्य और योग्यता के अनुसार हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाये ।
१४.हर
व्यक्ति को शारीरिक और शैक्षणिक योग्यता के मुताबिक कार्य मिले - ऐसी व्यवस्था हो
। कार्य करने की सीमा पांच घंटे से अधिक न
हो । साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाय कि कोई निकम्मा-निठल्ला न बैठा रहे ।
१५.साम्प्रदायिक
व जातिगत हस्तक्षेप व भेद-भाव कतई क्षम्य नहीं ।
१६.न्यायालय
और चुनाव आयोग - ये दो ही सर्वोच्च हों, शेष इनके अधीन ।
१७.अधिवक्ता
की वर्तमान भूमिका समाप्त की जाय । अधिवक्ता न्यायाधीशों के सहयोगी के रुप में
कार्य करें, साथ ही वादी-प्रतिवादी को कानूनी सहाल भी दें , न कि उसके बदले मुकदमा
लड़े ।
१८.न्याय
प्रणाली निशुल्क हो, पारदर्शी हो, बिना किसी भेद-भाव वाला हो और कठोर दण्ड की
व्यवस्था हो , जिसमें प्रत्यक्ष-परोक्ष राष्ट्रद्रोह और महिला उत्पीड़न का दण्ड
सर्वाधिक हो ।
१९.राष्ट्रीय
सीमा सुदृढ़ की जाय । इसे बढ़ाने की ख्वाहिश न रखे और न ही ईँच भर घटने दे ।
२०.राजा
हरिसिंह के एकरारनामे के मुताबिक कश्मीर विवाद को अविलम्ब समाप्त किया जाये । बांगलादेश
को तो हमने अभयदान देकर पैदा ही किया है । वह मेरा छोटा भाई है । पाकिस्तान को नयी
व्यवस्था के तहत अन्तिम और अन्तिम चेतावनी देकर थोड़ा इन्तजार कर लिया जाय । न
माने तो विश्व नक्शे से नामो निशान मिटा दे ।
२१.किसी
सम्पन्न राष्ट्र की बन्दर घुड़की में न आवे , क्यों कि हम भी सर्व सम्पन्न हैं । ये
न भूलें कि भारत सोने की चिड़िया है । इसे और नुचने न दें । अपने आप को फिर से
पहचाने । गुलामी के प्रत्येक स्मारकों (निशानी और प्रभाव) को ध्वस्त करे और विश्वगुरु
फिर से अपना स्थान ग्रहण करे ।
जय
भारत । जय भारती ।
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