कालसर्पयोगःःकारण और निवारणःःभाग आठ

गतांश से आगे...

कालसर्पयोग के अन्य प्रकार— ()
कुछ विद्वानों ने कालसर्पयोग के कुछ अन्य प्रकारों को भी दर्शाया है । वस्तुतः ये प्रकार कुछ नया नहीं है, प्रत्युत पूर्व वर्णित मुख्य बारह में ही कुछ खास है ।

पूर्व प्रसंगानुसार यहां भी दो विभाग किये गए हैं, किन्तु स्थिति बिलकुल भिन्न है। एक को दृश्यगोलार्द्ध और दूसरे को अदृश्यगोलार्द्ध कालसर्पयोग नाम दिया गया है । इन स्थितियों को निम्नांकित कुण्डलियों से स्पष्ट किया जा रहा है—


 ऊपर की पहली कुण्डली में हम देख रहे हैं कि मेषस्थ राहु और तुलस्थ केतु के दाहिनी ओर सूर्यादि सभी ग्रह हैं, यानी राहु की वक्रगति के अधीन हो रहे हैं, जब कि दूसरी कुण्डली में पंचमस्थ राहु और एकादशस्थ केतु के अधीन सूर्यादि सभी ग्रह तो पूर्ववत ही हैं, किन्तु  द्वादशभाव गत ग्रहों की अवस्थिति दायें के बजाय बायें हो गयी है । भावभेद से इस स्थिति में किंचित और ग्रहस्थितियां भी मिल सकती है, जो इसी प्रकार (श्रेणी) में रखे जायेंगे । यथा— लग्न वा बारहवें स्थान में राहु की अवस्थिति, तदनुसार सप्तम वा षष्ठम में केतु की स्थिति, तथा शेष ग्रहों को इनके प्रभाव-क्षेत्र में आजाने की स्थिति को दृश्यगोलार्द्ध कालसर्पयोग नाम दिया गया है । वस्तुतः इसे उदित का ही स्थान-भेद कहना चाहिए । और ये भी ध्यान रखने की जरुरत है कि प्रथम में उदित का स्थान-भेद है, किन्तु दूसरे में अनुदित का स्थान-भेद नहीं है । यानी कि इस उदाहरण में दिखाये जा रहे दोनों प्रकार उदित के ही हैं ।

किन्तु हां, भावगत परिवर्तन के कारण जातक पर होने वाले परिणामों में पर्याप्त अन्तर पाया जायेगा । इस प्रकार के योग में उत्तम रोजगार, धार्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ अकस्मात दुर्घटना और व्यावसायिक नुकसान, मानहानि, व्ययाधिक्य आदि की आशंका बनी रहती है । जीवन के पूर्वार्द्ध में धन-मान-सम्मान आदि की प्राप्ति तो हो जाती है, किन्तु जीवन के उत्तरार्द्ध में सब कुछ छिन्न-भिन्न होने लगता है और स्थिति पूर्ववत दयनीय हो जाती है ।

इसी तरह इसके ठीक विपरीत राहु-केतु की स्थिति को अदृश्यगोलार्द्ध कालसर्पयोग नाम दिया गया है । किन्तु ध्यान देने की बात है कि दोनों स्थितियों में सूर्यादि शेष ग्रह राहु के शिकंजे में ग्रसित हैं । फर्क इतना ही है कि राहु-केतु की स्थिति बदल गयी है, साथ ही ग्रहों की स्थिति भी पूरे तौर पर बदल गयी है- सभी ग्रह दाहिने से बायें हो गये हैं और इस प्रकार राहु का प्रभाव दोनों में समान रुप से बना रह गया है ।

कुछ विद्वानों का किंचित परिहार पूर्वक  मत है कि लग्न, चतुर्थ, द्वादश, पंचम एवं नवम स्थान से बनने वाले अदृश्यगोलार्द्ध कालसर्पयोग का परिणाम प्रायः निष्फल होता है, यानी दोष बिलकुल न के बराबर रह जाता है, किन्तु यह गहन परीक्षण और अन्वेषण का विषय है । बिलकुल दावे के साथ इसे स्वीकारा नहीं जा सकता और दूसरी ओर, इस बात का दावा किया जा सकता है कि कालसर्पदोष चाहे जिस किसी भी प्रकार का हो, न्यूनाधिक कष्टप्रद तो होगा ही । भले ही किसी में समयानुसार सुखकारी परिवर्तन हो जाये । कालसर्पयोग (दोष) पूर्व जन्मार्जित दुष्कर्मों का इह जन्म में संकेत है, इसे कदापि नकारा नहीं जा सकता ।

कालसर्पयोग के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का कथन है कि प्रथम दृष्ट्या दोष दीखने के बावजूद वास्तविक दोष नहीं होता । बहुत बार अर्द्धचन्द्रयोग को भी हम कालसर्पयोग घोषित करने की जल्दवाजी कर जाते हैं । प्रसिद्ध ज्योतिष-ग्रन्थ मानसागरी पद्धति में अर्द्धचन्द्रयोग की चर्चा है—
लग्नाच्चतुर्थात्स्मरतःखमध्यात्सप्तर्क्षगैर्नौरथकूटसंज्ञः ।
छत्रंधनुश्चान्यगृहप्रवृत्तैर्नौपूर्वको योग इहार्द्धचन्द्रः ।।

कालसर्पयोग जैसा दीखने वाला ही अर्द्धचन्द्रयोग जातक की सुख-समृद्धि में सहयोगी हुआ करता है । यथा—
भूमीपालप्राप्तचञ्चत्प्रतिष्ठःश्रेष्ठःसेनाभूषणार्थाम्बराद्यैः ।
चेदुत्पत्तौ यस्य योगोऽर्द्धचन्द्रश्चन्द्रःस्यादुत्सर्वार्थं जनानाम् ।।  (अर्द्धचन्द्र योग-युक्त जातक किसी अन्य बड़े राजा से महती प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला, सेना, रत्नाभूषणादि-युक्त, सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हुआ करता है ।)

दूसरे, छठे, आठवें, बारहवें स्थान में राहु-केतु हों और एक ही गोलार्द्ध में शेष ग्रह ग्रसित हों तो कालसर्पयोग बनेगा और ठीक इसके विपरीत ग्रह-स्थिति होने पर अर्द्धचन्द्रयोग बनता है, जो सुखकारी है । यथा—
.सभी ग्रह क्रमशः प्रथम से सप्तम के बीच हों तो नौकायोग बनता है ।
. सभी ग्रह क्रमशः सप्तम से प्रथम के बीच हों तो छत्रयोग बनता है ।
.सभी ग्रह चतुर्थ से दशम स्थान में हों तो कूटयोग बनता है ।
.सभी ग्रह दशम से चतुर्थ स्थान में हों तो धनुयोग बनता है ।
.सभी ग्रह दशम से चतुर्थ स्थान में हों तो सर्पयोग (शुभद) बनता है(मतान्तर से)

(सर्पयोग का एक और प्रकार भी है, इसे आगे अशुभयोग क्रम में देखें)

अतः इन विविध योगों का भी ध्यान रखना चाहिए।

क्रमशः...

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