कालसर्पयोगःःकारण और निवारणःःभाग नौ

गतांश से आगे...
दूसरे अध्याय  का अन्तिम भाग


कालसर्पयोग-विचार :: ध्यान देने योग्य बातेः—
कालसर्पयोग पर विचार करते समय सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि -----
           . राहु-केतु के बीच ग्रहों की अवस्थिति है या कि केतु-राहु के बीच ।
.कालसर्प के प्रभाव-क्षेत्र में किस भाव से किस भाव तक आ रहे हैं ।
. किस भाव में कौन से ग्रह बैठे हुए हैं और उनकी अपनी स्थिति कैसी है ।
. विभिन्न भावगत ग्रहयुति, दृष्टि आदि का भी विचार अवश्य करे ।
. राहु वा केतु के साथ यदि किसी ग्रह की युति है, तो राहु-केतु के साथ-साथ उस ग्रह के अंशों का विचार अवश्य करना चाहिए ।
.यदि कोई ग्रह राहु-केतु के प्रभाव-क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं, वैसी स्थिति में उनका तुलनात्मक अंश–विचार अत्यावश्यक हो जाता है । बाहर निकले ग्रह का अंश यदि राहु के अंश से अधिक है तो राहु निस्तेज हो जायेगा और इस प्रकार कालसर्पदोषभंग माना जायेगा या कहें अपेक्षाकृत कम प्रभावी होगा ।
. कालसर्पयोग वस्तुतः पूर्वजन्मार्जित अनुबन्धित ऋण की तरह है। कर्मफल के परिपाक स्वरुप इस दोष से जातक ग्रसित होता है।
. यह एक प्रकार का पितृदोष है, जिसका लगभग समान प्रभाव जातक के परिवार के अन्य सदस्यों की कुण्डली में भी प्रायः लक्षित होता है ।
. प्रायः देखा जाता है कि नक्षत्रानुसार (रोहिणी और मृगशिरा) जिन लोगों की सर्पयोनि होती है, उनकी जन्मकुण्डली में कालसर्पयोग पाया जाता है ।
१०.पंचम वा सप्तम स्थान से प्रारम्भ होने वाला कालसर्पदोष अधिक प्रभावी होता है ।
११.कालसर्पयोग पर विचार सतही स्तर पर वा जल्दवाजी में कदापि न करें ।

कालसर्पयोग-प्रभावित जातकों के लक्षणः—
कालसर्पयोग से प्रभावित व्यक्तियों में प्रायः निम्नांकित लक्षण पाये जाते हैः-
१.      स्वप्न में सर्प का दर्शन होता है।
२.  सर्प-दर्शन सुखानुभूति वाला न होकर,       भयकारी होता है ।
३.      जातक अथक परिश्रम के बावजूद किसी क्षेत्र में सफलता नहीं प्राप्त कर पाता।
४.      हमेशा मानसिक तनाव-ग्रस्त रहने के कारण सही निर्णय लेने में स्वयं को असमर्थ पाता है और प्रायः बेतुके निर्णय लेकर परेशानियों को आमन्त्रित कर लेता है ।
५.      अकारण शत्रुता मोल लेता है । स्वजनों से भी वैर-विवाद की स्थिति प्रायः बनी रहती है ।
६.      गुप्तशत्रु भी काफी सक्रिय रहते हैं, जिनसे प्रायः नुकसान उठाना पड़ता है ।
७.      कार्यावरोध और प्रगतिवाधा- कालसर्पयोग का एक मुख्य लक्षण है, जो प्रायः सभी प्रभावी जातकों में समान रुप से पाया जाता है ।
८.       पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण हो जाता है ।
९.       विवाह में वाधा आती है । विवाह हो जाने पर दाम्पत्य जीवन तनावपूर्ण प्रायः रहता है । यहां तक कि विवाह-विच्छेद (तलाक) की स्थिति भी बन जाती है ।
१०.   जीवन का मध्यकाल (चालीस-पचास) अत्यधिक कष्टप्रद होता है । संयोग से उस समय यदि राहु-केतु-शनि आदि की विविध दशायें भोगनी पड़ी तो जीवन और भी कष्टदायक हो जाता है ।
११.   प्रभावित जातक का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक यानी कि जीवन के हर क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है ।

                                ---)(---
क्रमशः...

Comments