गतांश से आगे...
(छठे अध्याय का दूसरा भाग-
उपचार 2 से 16 तक)
उपचार १६. वटुकभैरव की
विधिवत आराधना और अनुष्ठान भी लाभदायक होता है । किन्तु ध्यान रहे ये एक अति संवेदनशील क्रिया है
। अतः योग्य व्यक्ति से ही सम्पन्न करावें,जिसने लम्बे समय तक वटुकभैरवक्रिया की
साधना की हो ।
क्रमशः....उपचार क्रम
(छठे अध्याय का दूसरा भाग-
उपचार 2 से 16 तक)
उपचार २. – नवनागस्तोत्र एवं शिवपंचाक्षर स्तोत्र का
नियमित पाठ करना बहुत लाभकारी है । किसी प्राचीन शिवमन्दिर में कम से कम पैंतालिस
दिनों तक अनुष्ठानिक विधि से इन दोनों स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए । ध्यातव्य है
कि इस विशेष पूजन में अगरबत्ती और दीपक का प्रयोग वर्जित है । नवनागस्तोत्र के
श्रवण से नाग बहुत प्रसन्न होते हैं, किन्तु अगरबत्ती और दीपक की उष्मा उन्हें
अप्रिय है । अन्यत्र भी नागपूजन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए । यहां इन दोनों स्तोत्रों
को उद्धृत करता हूँ ।
(क) नवनागस्तोत्र— अनन्तं
वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् । शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम् । सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः
।।
(ख) शिवपंचाक्षर स्तोत्र—
नागेन्द्रहाराय
त्रिलोचनाय , भस्मांगरागाय महेश्वराय ।
नित्याय
शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय ।।
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ।।
शिवाय
गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्री
नीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकारय नमः शिवाय ।।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय
।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ।।
यक्षस्वरुपाय
जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय
देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ।
पञ्चाक्षरमिदं
पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते ।।
उपचार ३. नर्मदास्तुति— नर्मदायै नमः
प्रातर्नर्मदायै नमो निशिः । नमोऽस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्पतः ।। - इस
श्लोक का उच्चारण करते हुए नर्मदा का जल शिवलिंग पर चढ़ावे । इसके नियमित प्रयोग
से कालसर्पदोष, पितृदोष, तथा कुण्डली के अन्यान्य दोषों का भी शमन होता है । नर्मदा-तट
वासियों के लिए तो इससे सुन्दर और सुविधाजनक दूसरा कोई उपाय हो ही नहीं सकता । इस
एक श्लोक का जप भी किया जा सकता है । जिन घरों में प्रायः सांप निकलते हों या
सर्पों के कारण किसी तरह की परेशानी हो, तो भी इस मन्त्र का प्रयोग किया जा सकता
है ।
उपचार ४. येन-केन-प्रकारेण
शिव की आराधना सर्वोत्तम और सहज है । इसमें अन्य देवों की तरह विशेष वर्जना,
अपेक्षाकृत अति न्यून है । दूसरी बात ये है कि कालसर्प दोष में कालस्वरुप सर्प ही
दुःख प्रदाता है । भोलेनाथ शिव को सर्प प्रिय हैं और सर्पों के आराध्य, आश्रय या
कहें आधारविन्दु शिव ही हैं । अतः यथा सम्भव, यथोचित रुप से शिवाराधन करना
श्रेयस्कर है । किन्तु ये कार्य धैर्य और विश्वास पूर्वक कुछ लम्बे समय तक करना
चाहिए । बनियें की तरह नहीं कि सुबह दुकान खोले और तुरत बोहनी-बट्टा की बाट जोहने
लगे । शिव को आशुतोष कहा गया है । वास्तव में ये आसानी से प्रसन्न होने वाले देव
हैं । विशेष अलंकारिक पूजा नित्य यदि न भी सम्भव हो तो कम से कम जलार्पण ही करले ।
वेलपत्र का शिवपूजन में तो विशेष महत्त्व है ही, किन्तु शमी का पत्ता या पुष्प भी
बहुत प्रिय है शिव को । शिव के प्रिय पुष्पों में धतूरा और मन्दार का भी उच्च
स्थान है । इनमें जो सुलभ हो श्रद्धापूर्वक अर्पित करे । शिवभक्तों को सर्प क्या
सीधे काल से भी भयभीत नहीं होना चाहिए, क्यों कि महाकाल की कृपा के सामने क्षुद्रकाल
क्या करेगा ?
उपचार ५. शिववास का विचार करके, योग्य ब्राह्मण से किसी
प्राचीन शिवमन्दिर में रुद्राभिषेक कराना चाहिए । ये क्रिया कम से कम चार बार
अवश्य करे । एक बार की पूरी क्रिया छः घंटे की है । श्रावण महीने में सम्पन्न
कराना अति उत्तम है । ध्यातव्य है कि रुद्राभिषेक, महामृत्युञ्जय और पार्थिवपूजन
में शिववास अवश्य देखना चाहिए ।
उपचार ६. राहु मन्त्र का कलौसंख्या चतुर्गुणाः
नियमानुसार यानी बहत्तर हजार+चौदह हजार चारसौ जप किसी योग्य ब्राह्मण से शिवस्थल
में करवा कर, दूर्वा और घी से हवन कराये । तथा इसी भांति केतु मन्त्र का भी अड़सठ
हजार+तेरह हजार छःसौ जप करवा कर कुशा और घी से हवन कराये । राहु-केतु के उभय
दशाकाल में ये कार्य अवश्य कराना चाहिए, जिनकी कुण्डली में स्पष्ट रुप से
कालसर्पदोष हो । पूरे जीवन में पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध क्रम से दो बार ये
अनुष्ठान होना चाहिए ।
उपचार ७. मोर का पंख अपने शयनकक्ष में सिरहाने रखना
चाहिए । इसे पर्स में भी सदा रखा जा सकता है । या तकिये में डाल कर रखें ।
उपचार ८. शनिवार को संध्या समय लकड़ी का कोयला अपने सिर
पर दक्षिणावर्त (Clockwise) तीन बार घुमा कर बहते जल में प्रवाहित करे । ये काम लागातार सात शनिवार
को करे । भिखारियों को यथाशक्ति दक्षिणा दे ।
उपचार ९. शनिवार को दिन के चौथे प्रहर में या बिलकुल संध्या
समय जलदार नारियल अपने सिर पर सात बार दक्षिणावर्त घुमाकर बहते जल में प्रवाहित
करे । ये कार्य कम से कम सात शनिवार को करे । लागातार हो सके तो बहुत अच्छा ।
उपचार १०.चांदी का नाग-नागिन बनवाकर, विधिवत प्राणप्रतिष्ठा पूजन करके, बहते
जल में प्रवाहित करे । इसी तरह पूजित, प्राण-प्रतिष्ठित नाग-नागिन की मुद्रिका भी
मध्यमा अंगुली में धारण की जा सकती है ।
उपचार ११. मूली के मौसम में जितना हो सके उतने शनिवार या
किसी शनिवार से शुरु करके लागातार इक्कीश दिन तक किसी भिखारी को दक्षिणा सहित दान
करे । ये काम लागातार तीन वर्षों तक करने से किसी प्रकार का कालसर्पदोष शमित हो
जाता है । किन्तु इतने लम्बे समय तक नियम का निर्वाह जरा कठिन है । फिर भी
प्रत्येक वर्ष में इक्कीश दिन तो आसानी से किया ही जा सकता है ।
उपचार १२. यथासम्भव,
यथाकाल पर्यन्त राहु के प्रिय वस्तु - सरसो का तेल, सीसा (नाग-Lead), कालातिल, कालाकम्बल, तलवार, सोना, नीलवस्त्र, बांस का बना सूप, अभ्रक, गोमेद,
खड़ा उड़द, कालाफूल, लोहा, तांबे के पात्र में रखकर कालातिल इत्यादि का यथोचित
मात्रा में, दक्षिणा सहित दान करने से भी पर्याप्त शान्ति मिलती है । ये कार्य
किसी शनिवार को ही करे । सायंकाल अधिक उपयुक्त है । शिव या शनि मन्दिर उचित दानस्थली कही गयी है ।
उपचार १३. सफाई
कर्मचारी राहुग्रह के प्रतीक हैं, जैसे अन्य सेवक शनिग्रह के प्रतीक कहे गए है ।
अतः सदा ध्यान रहे कि जाने-अनजाने इनका अपमान न हो । इन्हें यथोचित पारिश्रमिक
दिया जाय । इनका दिल दुखाना राहु-शनि को आमन्त्रिक करने के बराबर है । खासकर वे
लोग जो कालसर्पदोषग्रस्त हैं, उन्हें तो विशेष ध्यान रखना चाहिए । सामान्य लोगों
द्वारा किया गया ये अपराध और दोषग्रस्त व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध की मात्रा
समान होते हुए भी दुष्प्रभाव में काफी अन्तर है । वो अधिक विस्फोटक हो जाता है । जैसे
बाहर कहीं पड़ा हुआ बारुद उतना खतरनाक नहीं, जितना कि उसी बारुद से बनी हुयी बन्दूक
की गोली ।
उपचार १४. मलयगिरि
चन्दन के छोटे चौकोर टुकड़े पर चांदी से बने नाग-नागिन के जोड़े को जड़वा कर, प्राणप्रतिष्ठा,
पूजनादि करके, ताबीज की तरह गले में धारण करे।
उपचार १५. ऊँ कार्तवीर्यार्जुनाय नमः मन्त्र
का नित्य बत्तीस हजार जप करना या योग्य ब्राह्मण से ग्यारह दिनों तक कराना
बहुत लाभदायक होता है ।
क्रमशः....उपचार क्रम
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