गतांश से आगे...
सप्तम अध्याय (पहला भाग)
कालसर्प दोष :: विशेष
शान्ति कर्म
पिछले अध्याय में कालसर्पदोष के शमन (शान्ति) हेतु विविध
उपचारों की चर्चा की गयी । अब यहां सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण किन्तु कर्मकाण्डीय
दृष्टि से किंचित जटिल, अर्थ-साध्य एवं समय-साध्य शान्ति-क्रिया की चर्चा की जा रही
है । ये क्रिया है तो एक दिवसीय ही, किन्तु वेदी-संचरना से लेकर होमादि कर्म
पर्यन्त चार-पांच घंटे अवश्य लगेंगे सही ढंग से सम्पन्न करने में । एक योग्य आचार्च
के अतिरिक्त कम से कम दो उपाचार्य (सहयोगी) भी आवश्यक हैं क्रिया को
सम्यक्-सांगोपांग पूरी करने हेतु ।
ध्यातव्य है
कि कालसर्पदोषशान्तिपूजाकर्म कोई अशुभकर्म नहीं है। गृहस्थ-जीवन में
करने वाले अन्यान्य कर्मों की तरह ये भी एक काम्य-कर्म है। फिर भी उचित है कि इसे
गृहस्थ के वासगृह में सम्पन्न न किया जाये । शिव की किसी प्राचीन सिद्धस्थली
सर्वोत्तम है इसके लिए । यथा— गया (पितामहेश्वरतीर्थ), उज्जैन (महाकालमन्दिर
परिसर), काशी (विश्वनाथ परिसर), असीघाट, नासिक- त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, तिरुपति
कालहस्ति शिवमन्दिर, प्रयाग-त्रिवेणी, केदारनाथ-त्रियुगीनारायण, तंजौर-
त्रिनागेश्वर, कलकत्ता- भूतेश्वर (नीमतल्लाघाट), चण्डीगढ़- मनसादेवी मन्दिर, मथुरा-
नागमन्दिर, बडोदरा- गरुड़ेश्वर इत्यादि । सुविधा के विचार से अन्यान्य शिवस्थली
में वा पवित्र नदीतट पर भी क्रिया की जा सकती है ।
इस शान्ति-विधान में मुख्य है मनसादेवी सहित नवकलश स्थापित नवनाग पूजन तथा
त्रिकलश स्थापित राहु, काल एवं सर्प-पूजन । किन्तु तत्पूर्व आंगिक क्रिया स्वरुप गणेशाम्बिकापूजन, वरुणकलशादिपूजन,
नवग्रह, पंचलोकपाल, दशदिकपाल, षोडशमातृका, एकादश रुद्र, द्वादशादित्यादि पूजन
सम्पन्न करना चाहिए । साथ ही विहित (निर्दिष्ट) मन्त्रों एवं स्तोत्रों का यथा संख्या
जप, होमादि तथा अन्त में यथाविधि तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण-भोजन, भिक्षुक-भोजन एवं
यथाशक्ति दान-निग्रह भी अवश्य करना चाहिए।
स्वतिवाचन तो किसी भी सामान्य पूजन
के प्रारम्भ में किया ही जाता है, किन्तु पुण्याहवाचन को लोग आलस्यवश भूल जाते हैं
। या उसे उतना महत्त्व नहीं देते । जब कि विशेष क्रियाओं में विधिवत पुण्याहवाचन
पांच, तीन, दो वा अभाव में एक आचार्य द्वारा ही अवश्य सम्पन्न कराना चाहिए । इसका
सीधा सा प्रभाव है कि आगे की जाने वाली सभी क्रियाओं को समुचित बल मिलता है । गृहस्थ
जीवन में वैसे भी जाने-अनजाने अनेक पाप होते रहते हैं । नित्य संध्यावन्दन और पंचयज्ञ
जैसे आवश्यक कर्मों को तो हम युगानुसार भुलाते ही जा रहे हैं । इन विशेष अवसरों पर
कम से कम पुण्याहवाचन के महत्त्व और औचित्य को न विसारा जाए ।
क्रियार्थ
समुचित मुहूर्त— अन्यान्य पञ्चांग शुद्धि विचार करते हुए निम्नांकित चन्द्र
नक्षत्रों में किसी एक का चुनाव किया जा सकता है। यथा— अश्विनी, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु,
पुष्प, आश्लेषा, मघा, उत्तरात्रय, हस्ता, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिष
और रेवती ।
आवश्यक सामग्री—
१.
सोने का नाग एक (अनामिका अंगुली प्रमाण)
२.
चांदी का नाग दो (अनामिका अंगुली प्रमाण)
३.
तांबे या लोहे का
नाग आठ (अनामिका अंगुली प्रमाण)
४.
रांगा / सीसाधातु (LEAD) की बनी हुयी राहु
मूर्ति (अंगुष्ठ प्रमाण)
५.
लोहे की बनी हुयी
काल मूर्ति (अंगुष्ठ प्रमाण)
६.
लोहे की बनी नाग मूर्ति
एक (बित्ते भर का)
७.
ताम्रकलश-एक लीटर
जल योग्य- १ (पुण्याहवाचन हेतु)
८.
पीतल की कटोरी - १
(पुण्याहवाचन हेतु)
९.
पीतल की कटोरी
बड़ी- १ (पुण्याहवाचन हेतु)
१०.
पीतल या तांबे का
बड़ा लोटा – मुख्य जलपात्र हेतु- १
११.
पीतल या तांबे का
छोटा लोटा –२ (अमृतकलश एवं अभिषेककलश हेतु)
१२.
पीतल का कलश- १ सात लीटर जलयोग्य
(प्रधान कलश हेतु)
१३.
पीतल का ढक्कन-
उक्त कलश हेतु – १
१४.
तांबे का कलश- १- सात लीटर
जलयोग्य (रुद्रकलश हेतु)
१५.
तांबे का ढक्कन-
उक्त कलश हेतु – १
१६.
फूल की थाली-१-
अग्न्याधान हेतु
१७.
पीतल का अखंडदीप (बिना
ढक्कन वाला) – २ (छःघंटे वाला)
१८.
मिट्टी का कलश और
ढकना – १२ (नौ नाग, राहु, काल एवं सर्प कलश हेतु)
१९.
मिट्टी
का दीया- १००
२०.
मिट्टी का चौमुख
दीया- एक
२१.
मिट्टी का ढकना
बड़ा- एक (क्षेत्रपाल बलि हेतु)
२२.
मिट्टी की बड़ी
कड़ाही या बालू ५ किलो, ईंट १५ (हवन हेतु)
२३.
मारकीन एक मीटर
२४.
लालएकरंगा- सात
मीटर
२५.
धोती, गमछा, चादर –
तीन (आचार्य एवं दो उपाचार्य पाद-पूजन
हेतु)
२६.
कार्यकर्ता के
नवीन वस्त्र - धोती, गमछा, चादर (स्त्री हो तो तदनुकूल वस्त्र)
२७.
पीले रंग की
साड़ी, साया, ब्लाउज पीस, श्रृंगार सामग्री (मनसादेवी हेतु)
२८.
लाल पीस-पचीस
२९.
पीला पीस- पचीस
३०.
काला पीस-पांच+एक
३१.
नीला पीस- एक
३२.
आसमानी पीस- एक गणेशाम्बिका,
षोडशमात्रिका नवग्रह,
३३.
हरा पीस- एक नवनाग,
काल, सर्पादि हेतु
३४.
सफेद पीस- एक
३५.
दूधिया पीस- एक
३६.
गाय का घी- एक
किलो
३७.
तिल तैल- सौ ग्राम
३८.
कालातिल- सवा किलो
३९.
जौ- आधा किलो
४०.
चावल- सात किलो
४१.
गुड़- ढाईसौ ग्राम
४२.
गाय का दूध- एक
किलो
४३.
दही- आधा किलो
४४.
काला (खड़ा) उड़द- ढाईसौ ग्राम
४५.
मधु- छोटी शीशी
४६.
धूना- पचास ग्राम
४७.
गुगुल- पचास ग्राम
४८.
सिन्दूर- पचास
ग्राम
४९.
रोली- ढाई सौ
ग्राम
५०.
हल्दी बुकनी- आधा
किलो
५१.
अबीरगुलाल- पचास
ग्राम
५२.
अष्टगन्ध चन्दन –
पचास ग्राम
५३.
मलयगिरि चन्दन-
पचीस ग्राम
५४.
रक्त चन्दन- पचीस
ग्राम
५५.
मौली धागा- सौ
ग्राम
५६.
रुई बत्ती- गोल
बाला- बड़ा पैकेट एक
५७.
माचिस- एक पैकेट
५८.
लौंग-इलाइची- पचास
ग्राम
५९.
कपूर- सौ ग्राम
६०.
सुपारी- ढाई सौ
ग्राम
६१.
काजल की डिबिया-
एक ( क्षेत्रपाल हेतु )
६२.
गड़ी गोला (सूखा
नारियल) - पन्द्रह
६३.
जलदार नारियल-
पांच (छिलका निकाला हुआ)
६४.
हवन वाला नारियल -
एक (सूखा हुआ, जिसमें पानी न हो)
६५.
किसमिस- एक किलो
६६.
छुहारा- एक किलो
६७.
मखाना- ढाई सौ
ग्राम
६८.
बादाम दाना- एक
किलो
६९.
धान का लावा-
ढाईसौ ग्राम
७०.
पीला सरसो- सौ
ग्राम (रक्षा विधान हेतु)
७१.
चावल का आटा- ढाई
सौ ग्राम
७२.
लाल, काला, पीला, हरा,
नीला - मार्करपेन या रंग की पुड़िया
७३.
मौसमी फल- केला, संतरा,
अंगूर, सेव, अमरुद इत्यादि यथेष्ठ मात्रा में
७४.
पान पत्ता- एक सौ
७५.
शमी पत्ता- एक सौ
७६.
बेल पत्ता- पांच-सात
रुद्री
७७.
तुलसी पत्ता- एक
सौ
७८.
दूर्वा- दो मुट्टी
७९.
कुशा- दो मुट्ठी
८०.
आम पत्ता- सभी कलश
पर के लिए पल्लव हेतु
८१.
पीला फूल, लाल
फूल, अन्य फूल- पर्याप्त मात्रा में
८२.
गंगाजल, अन्य
तीर्थजल, कूपजल (जो भी उपलब्ध हो सके)
८३.
गाय का गोबर, गोमूत्र
८४.
पत्ते वाला
दोनिया- चार पैकेट (प्लास्टिक या थर्मोकोल बिलकुल नहीं)
८५.
थाली पत्तल- दो
पैकेट
८६.
धूप चैला- एक किलो
८७.
आम की
लकड़ी - दो किलो
८८.
चौकी - सवाहाथ
वर्गाकार – चार
८९.
चौकी- दो हाथ
वर्गाकार - एक
९०.
खुदरा पैसा- सौ
रुपये करीब
९१.
नगद
दक्षिणा-........(वित्त साठ्यं न कारयेत् - नियमानुसार)
घर का
सामानः-
आसनी, कम्बल,
चादर, परात, बाल्टी, लोटा, कटोरी, चम्मच, चाकू, ब्लेड इत्यादि ।
नोटः- (क) वेदी निर्माण हेतु चौकियों के स्थान पर एक बड़ा सा नया
कम्बल और उस पर विछाने हेतु सफेद मारकीन से भी काम चल सकता है । सीधे, जमीन में
कम्बल बिछा कर, मारकीन विछा दें और उसी पर सभी वेदियों का खाका चौरेठ, हल्दी, रोली
वगैरह से चित्रित कर दें ।
(ख) पूजन के पश्चात पांच ब्राह्मण और पांच भिक्षु हेतु भोजन व्यवस्था
दक्षिणा सहित अति आवश्यक है ।
(ग)
आजकल बाजार में हवन सामग्री का बना बनाया पैकेट मिलता है । इसे
कदापि न लें । ये किसी काम का नहीं । विहित मात्रा में सामग्री मिलाकर स्वयं तैयार
करें । यथा— तिल से आधा चावल, उससे आधा जौ, उससे आधा गुड़ और उससे आधा घी । धूना-गुगल
आदि यथेष्ठ ।
यजमान के लिए मुख्य पूजा से पूर्व का कृत्य —
जिस व्यक्ति
को दोष-शान्ति कराना हो उसे चाहिए कि एक दिन पहले किंचित नियम-संयम का पालन अवश्य
करे । प्रातः काल स्नान से पूर्व क्षौरकर्म (पूरा मुण्डन) करा ले तो बहुत ही अच्छा
। दिन भर उपवास करने के बाद सूर्यास्त से पूर्व शुद्ध-सात्त्विक भोजन (अन्नादि) ग्रहण
करे । पूरा उपवास न कर सके तो फलाहार, दुग्धाहार पर भी रहा जा सकता है ।
मुख्य क्रिया
के दिन प्रातः स्नान के बाद किंचित फलाहार वगैरह ले ले । बिलकुल खाली पेट रहने से
चित्त विभ्रमित होता रहेगा और पूजा में मन बिचलित होगा । पूजन, हवन के पश्चात
ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए ।
क्रमशः...
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