गतांश से आगे...
सातवें अथ्याय का पांचवां भाग...
सातवें अथ्याय का पांचवां भाग...
अधिदेवता-आवाहन-पूजन-
अब,
उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में दायीं ओर अधिदेवताओं
का आवाहन करेंगे । स्कन्धपुराण में इनका स्थान इस प्रकार निर्दिष्ट है— शिवः शिवा गुहो
विष्णुर्ब्रह्मेन्द्रयमकालकाः । चित्रगुप्तोऽथ भान्वादेर्दक्षिणे चाधिदेवता ।। इन सबके लिए सिर्फ हरिद्रारंजित चावल का
प्रयोग करना चाहिए। आवाहन और प्रतिष्ठा पूर्वक्रम –नवग्रहक्रम से ही करना है—
१.शिव-(सूर्य
के दायें भाग में)- ॐ एह्येहि विश्वेश्वर नस्त्रिशूलकपालखट्वाङ्गधरेण सार्धम् ।
लोकेश यक्षेश्वर यज्ञसिद्ध्यै गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ।। ॐ भूर्भुवःस्वः ईश्वराय
नमः, ईश्वरमावाहयामि, स्थापयामि ।
२.उमा-
(चन्द्रमा के दायें भाग में)- ॐ हेमाद्रितनयां
देवीं वरदां शंकरप्रियाम् । लम्बोदरस्य जननीमुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ
भूर्भुवःस्वः उमायै नमः, उमामावाहयामि, स्थापयामि
।
३.स्कन्द-(मंगल
के दायें भाग में) - ॐ रुद्रतेजःसमुत्पन्नं देवसेनाग्रगं विभुम् । षण्मुखं
कृत्तिकासूनुं स्कन्दमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः स्कन्दाय नमः, स्कन्दमावाहयामि, स्थापयामि ।
४.विष्णु-(बुध
के दायें भाग में)- ॐ देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम् । चतुर्भुजं रमानाथं
विष्णुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः
विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि, स्थापयामि ।
५.ब्रह्मा-
(बृहस्पति के दायें भाग में)- ॐ
कृष्णाजिनाम्बरधरं पद्मसंस्थं चतुर्मुखम् । वेदाधारं निरालम्बं विधिमावाहयाम्यहम् ।।
ॐ भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः,
ब्रह्माणमावाहयामि, स्थापयामि ।
६.
इन्द्र- (शुक्र के दायें भाग में) - ॐ
देवराजं गजारुढं शुनासीरं शतक्रतुम् । वज्रहस्तं महाबाहुमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ।। ॐ
भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः,
इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ।
७.
यम- (शनि के दायें भाग में)- ॐ
धर्मराजं महावीर्यं दक्षिणादिक्पतिं प्रभुम् । रक्तेक्षणं महाबाहुं
यममावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः यमाय
नमः, यममावाहयामि, स्थापयामि ।
८.
काल- (राहु के दायें भाग में)- ॐ
अनाकारमन्ताख्यं वर्तमानं दिने-दिने। कलाकाष्ठादिरुपेण कालमावाहयाम्यहम् ।। ॐ
भूर्भुवःस्वः कालाय नमः, कालमावाहयामि, स्थापयामि ।
९.
चित्रगुप्त- (केतु के दायें भाग में)- ॐ
धर्मराजसभासंस्थं कृताकृतविवेकिनम् । आवाहये चित्रगुप्तं लेखनीपत्रहस्तकम् ।। ॐ
भूर्भुवःस्वः चित्रगुप्ताय नमः,
चित्रगुप्तमावाहयामि, स्थापयामि ।
इस प्रकार अधिदेवताओं के आवाहन के
पश्चात् अब, उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में वायीं
ओर प्रत्यधिदेवताओं का आवाहन करेंगे । वायें हाथ में अक्षत लेकर, दायें
हाथ से थोड़ा थोड़ा छोड़ते जायेंगे कथित स्थानों पर ।
( इस सम्बन्ध में शान्तिमयूष में निर्देश
है - अधिदेवा दक्षिणतो वामे प्रत्यधिदेवताः । स्थापनीया प्रयत्नेन व्याहृतीभिः
पृथकपृथक । अग्निरापः
क्षितिर्विष्णुरिन्द्रश्चैन्द्री प्रजापतिः । सर्पो ब्रह्मा च निर्दिष्टा
प्रत्यधिदेवा यथाक्रम् ।। अन्यत्रश्च— अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणी
पितामहाः। पन्नगाः कः क्रमाद् वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः ।। अर्थात सूर्यादि
नवग्रहों के वाम भाग में क्रमशः अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति,
सर्प और ब्रह्मा की स्थापना करे । ये प्रत्यधिदेवता कहे गये हैं ।)
(ध्यातव्य
है कि कुछ नामों की पुनरावृत्ति हो रही है - जैसे विष्णु अधिदेवता सूची में आ चुके
हैं, साथ ही प्रत्यधिदेवता सूची में भी हैं । ध्यातव्य है कि बुध के
अधिदेवता-प्रत्यधिदवता दोनों विष्णु ही हैं, अतः दो बार इनका आवाहन पूजन होगा । ठीक
वैसे ही जैसे एक ही व्यक्ति दो पदभार सम्भाल रहा हो । इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए
। एक ही देवता का दो स्थानों पर यानी दो बार आवाहन-पूजन किया जायेगा । आगे अन्य
स्थानों पर भी इस प्रकार की स्थिति मिलेगी । जैसे-प्रारम्भ में गणेशाम्बिका पूजन
कर चुके है, पुनः पंचलोकपाल में भी गणेश है, दिक्पाल में इन्द्र, ब्रह्मा, यम, अग्नि
आदि की आवृत्ति हुयी है ।)
प्रत्यधिदेवता-आवाहन-पूजन—
१.
अग्नि(सूर्य के बायें)-
रक्तमाल्याम्बरधरं रक्तपद्मासनस्थितम् ।
वरदाभयदं
देवमग्निमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः अग्नये नमः, अग्निमावाहयामि,
स्थापयामि ।
२.अप्
(जल) - (चन्द्रमा के बायें) - आदिदेवसमुद्भूतजगच्छुद्धिकराः
शुभाः। ओषध्याप्यायनकरा अप आवाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः अद्भ्यो नमः, अप
आवाहयामि, स्थापयामि ।
३.पृथ्वी-(मंगल
के बायें)- शुक्लवर्णां विशालाक्षीं कूर्मपृष्ठोपरिस्थिताम् । सर्वशस्याश्रयां
देवीं धरामावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः पृथिव्यै नमः,
पृथिवीमावाहयामि,स्थापयामि।
४.विष्णु-
(बुध के बायें)- शङ्खचक्रगदापद्महस्तं गरुडवाहनम् । किरीटकुण्डलधरं
विष्णुमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि,स्थापयामि।
५.इन्द्र–(बृहस्पति
के बायें)- ऐरावतगजारुढ़ं सहस्राक्षं शचीपतिम् । वज्रहस्तं
सुराधीशमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः,
इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ।
६.इन्द्राणी-(शुक्र
के बायें)- प्रसन्नवदनां देवीं देवराजस्य वल्लभाम् । नानालङ्कारसंयुक्तां
शचीमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः
इन्द्राण्यै नमः, इन्द्राणीमावाहयामि,स्थापयामि।
७.प्रजापति-(शनि
के बायें)- आवाहयाम्यहं देव देवेशं च प्रजापतिम् । अनेकव्रतकर्तारं सर्वेषां च
पितामहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः प्रजापतये
नमः, प्रजापतिमावाहयामि,स्थापयामि ।
८.सर्प-
(राहु के बायें)- अनन्ताद्यान् महाकायान्
नानामणिविराजितान् । आवाहयाम्यहमं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः सर्पेभ्यो नमः, सर्पानावाहयामि, स्थापयामि
।
९.ब्रह्मा-(केतु
के बायें)- हंसपृष्ठसमारुढ़ं देवतागण पूजितम् । आवाहयाम्यहं देवं ब्रह्माणं
कमलासनम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि, स्थापयामि ।
अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताओं
का एकतन्त्र पूजनः- नवग्रह वेदी के
दायें अधिदेवता और बायें भाग में प्रत्यधिदेवताओं का समन्त्र आवाहन सम्पन्न हो
जाने के पश्चात् अब दोनों के एकत्र नाम मन्त्रों से यथोपलब्ध पूजन करें- ॐ ईश्वराग्नेयादि अधिदेवप्रत्यधिदेवेभ्यो नमः- इस नाम मन्त्र
से क्रमशः पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, चन्दन,
रोली, अबीर, पुष्प, पुष्पमाल्यादि, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि
मुखशुद्धि, द्रव्य दक्षिणा समर्पित करके, पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करे - ॐ ईश्वराग्नेयादि अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताः प्रीयन्ताम् न मम ।।
---(इति
अधिदेवता-प्रत्यधिदेवतापूजनम्)---
पञ्चलोकपाल
आवाहन-पूजनः- अब पुनः मध्य वेदी के समीप
आकर प्रधान कलश के सामने, गणेशाम्बिका के समीप, पंचलोकपालों को आहूत कर पूजन
करेंगे । हालाकि स्कन्दपुराण में कहा गया है- गणेशश्चाम्बिका
वायुराकाशश्चाश्विनौ तथा । ग्रहाणामुत्तरे पञ्चलोकपाला प्रकीर्तिताः ।। इस
निर्देशानुसार तो इन्हें भी नवग्रहवेदी पर ही (उत्तरीभाग में यानी केतुखंड में
गणेश-दुर्गा, गुरुखंड में वायु, आकाश और अश्विनी इन पांच को स्थान देना चाहिए, तथा
बुधखंड में वस्तोष्पति और क्षेत्रपाल को भी आहूत करना चाहिए । ध्यातव्य है कि क्षेत्रपाल
के लिए स्वतन्त्र वेदी वास्तु पूजा मंडल में वायु कोण पर बनाया जाता है; किन्तु
अन्य पूजन कर्मकांडों में क्या करे—प्रश्न उठता है । अतः सुविधा/लोकरीति के
अनुसार, इन्हें नवग्रह वेदी पर ही समुचित स्थान देदें या फिर प्रधान कलश से समीप
भी रख सकते हैं । यहाँ पुनः स्पष्ट कर दूँ कि इनका आवाहन-पूजन अनिवार्य है । लोकरीति
के अनुसार किंचित स्थान भेद पर अधिक संशय नहीं करना चाहिए । आगे यहां नवग्रहवेदी
पर ही ग्रह-संकेत सहित आवाहन मन्त्र दिये जा रहे हैं ।
आवाहनः- बायें
हाथ में अक्षत लेकर, दायें हाथ से क्रमशः निर्दिष्ट कोष्टकों में छोड़ते जायेंगे ।
आचार्य मन्त्रोच्चारण करेंगे-
१.गणेश—(केतुखंडमें)
ॐ लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजं । आवाहयाम्यहमं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणपते ! इहागच्छ,इह तिष्ठ, गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि
।
२.दुर्गा— (केतुखंडमें)-
पत्तने नगरे ग्रामे विपिने पर्वते गृहे । नानाजातिकुलेशानीं
दुर्गामावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गे ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, दुर्गायै
नमः, दुर्गामावाहयामि, स्थापयामि ।
३.वायु —(गुरुखंडमें)—आवाहयाम्यहं
वायुं भूतानां देहधारिणाम् । सर्वाधारं महावेगं मृगवाहनमीश्वरम् ।। ॐ भूर्भुवः
स्वः वायो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, वायवे नमः, वायुमावाहयामि, स्थापयामि ।
४.आकाश —(गुरुखंडमें)—अनाकारं
शब्दगुणं द्यावाभूम्यन्तरस्थितम् । आवाहयाम्यहं देवमाकाशं सर्वगं शुभम् ।। ॐ
भूर्भुवः स्वः आकाश ! इहागच्छ, इह तिष्ठ,
आकाशाय नमः, आकाशमावाहयामि, स्थापयामि ।
५.अश्विनी —(गुरुखंडमें)-
देवतानां च भैषज्ये सुकुमारौ भिषग्वरौ । आवाहयाम्यहं देवावश्विनौ पुष्टिवर्द्धनौ ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः अश्विनौ ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, अश्विभ्याम् नमः, अश्विनामावाहयामि, स्थापयामि ।
तदन्तर, ॐ
गणेशादिपञ्चलोकपालेभ्यो नमः —इस नाम मन्त्रोच्चारण पूर्वक यथोपचार पूजन करे, जैसा
कि अन्य देवों का करते आए हैं । तदन्तर, पुष्पाक्षत लेकर- अनया पूजया गणेशादि
पञ्चलोकपालाः प्रीयन्ताम् न मम - बोलते हुए छोड़ दे ।
दशदिक्पाल
आवाहन-पूजनः-
कालसर्पदोषशान्तिपूजा
क्रम में अब बारी है दशदिक्पालों की । संक्षिप्त और सामान्य विधि में तो इन्हें भी
नवग्रह-मण्डल में ही यथास्थान स्थापित कर पूजित करने का विधान है । अति संक्षिप्त
पूजनकर्म में कलश के समीप ही सामने एक ही पत्रावली पर अनेक देवी-देवताओं को आहूत
कर पूजित कर देने की परम्परा है । थोड़े विस्तार में जाने पर नवग्रह मंडल पर आते
हैं । कहीं-कहीं आचार्यगण अधिक अलंकारिक स्वरुप देते हुए, वड़े यज्ञों, गृहप्रवेशादि
कर्म में यज्ञ-मंडप/भवन के विलकुल बाहर पूर्वादि क्रम से दसों दिशाओं में स्थापित
कर पूजित करते हैं । इनका नियत स्थान दिये गये चित्र में स्पष्ट किया गया है । नवग्रहमंडल
हो या पूरा वास्तुमंडल (भवन) इनके निश्चित स्थान में परिवर्तन नहीं होगा, वे यथावत
वहीं रहेंगे । सुविधा और स्थितिनुसार पूरा पूजामंडल या नवग्रहवेदी या कि पूजा स्थल
पर बनाया गया घेरा—इन तीनों में किसी का भी चयन किया जा सकता है । आगे, आवाहन
मन्त्रों के साथ दिशा और वर्ण भी निर्दिष्ट है । बायें हाथ में पुष्पाक्षत लेकर,
आचार्य के आवाहन-मन्त्रोच्चार सहित यजमान (पूजनकर्ता) निर्दिष्ट स्थानों पर अक्षत
छोड़ते जायें-
१.
इन्द्र–(पूर्व,पीतवर्ण)-
ॐ इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै
शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि
।
२.
अग्नि-(अग्निकोण,रक्तवर्ण)-
ॐ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकम् । षण्नेत्रं च चतुः
श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः, अग्निमावाहयामि, स्थापयामि
।
३.
यम-(दक्षिण,कृष्णवर्ण)-ॐ
महामहिषमारुढं दण्डहस्तं महाबलम् । यज्ञसंरक्षनार्थाय यममावाहयाम्यहम् ।। ॐ
भूर्भुवः स्वः यमाय नमः, यममावाहयामि, स्थापयामि।
४.
निर्ऋति-(नैर्ऋत्यकोण,नीलवर्ण)-
ॐ निर्ऋत्यां खड्गहस्तं च नरारुढ़ं वरप्रदम् । आवाहयामि यज्ञस्य रक्षार्थं
नीलविग्रहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः निर्ऋतये नमः, निर्ऋतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
५.
वरुण-(पश्चिम,कृष्णवर्ण)-ॐ
शुद्धस्फटिकसंकाशं जलेशं यादसां पतिम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम् ।। ॐ
भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः, वरुणमावाहयामि, स्थापयामि ।
६.
वायु-(वायुकोण,धूम्रवर्ण)-ॐ
अनाकारं महौजस्कं व्योमगं वेगवद् गतिम् । प्राणिनां प्राणदातारं वायुमावाहयाम्यहम्
।। ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः, वायुमावाहयामि, स्थापयामि ।
७.
कुबेर-(उत्तर,पीतवर्ण)-ॐ
आवाहयामि देवेशं धनदं यक्षपूजितम् । महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम् ।। ॐ
भूर्भुवः स्वः कुबेराय नमः, कुबेरमावाहयामि, स्थापयामि ।
८.
ईशान-(ईशान,श्वेतवर्ण)-
ॐ सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम् । आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम् ।। ॐ
भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः, ईशानमावाहयामि, स्थापयामि ।
९.
ब्रह्मा-(ईशान-पूर्व
के बीच में,पीतवर्ण)- ॐ पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम् । आवाहयामि
ब्रह्माणं यज्ञसंसिद्धिहेतवे ।। ॐ भूर्भुवः स्वः
ब्रह्मणे नमः, ब्रह्मामावाहयामि, स्थापयामि ।
१०.
अनन्त- (नैर्ऋत्य-पश्चिम
के मध्य,नीलवर्ण,मतान्तर से पीत वर्ण)-ॐ अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरुपिणम् ।
जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्ताय नमः, अनन्तमावाहयामि, स्थापयामि।
इस प्रकार आवाहन करने के पश्चात् ॐ
इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः – इस नाम मन्त्र का उच्चारण करते हुए, पाद्य, अर्घ्य,
आचमन, स्नान, पंचामृत, शुद्धोदक स्नान, वस्त्रोपवस्त्र, यज्ञोपवीत, पुनराचमन, गन्धादि,
पुष्पादि, धूप-दीप, नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पुनराचमन, ताम्बूलादि मुखशुद्धि, द्रव्य
दक्षिणा प्रदान करे और पुनः पुष्पाक्षत लेकर अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पालाः
प्रीयन्ताम्, न मम कहते हुए छोड़ दे । एवं पुनः अक्षतपुष्पादि लेकर हाथ जोड़
कर पूजित देवताओं की प्रार्थना करे— विरञ्चिनारायणशङ्करेभ्यः
शचीपतिस्कन्दविनायकेभ्यः । लक्ष्मीभवानीकुलदेवताभ्यो नमोऽस्तु दिक्पालनवग्रहेभ्यः ।।
आदित्यसोमौ बुधभार्गवौ च शनिश्चरो वा गुरुलोहिताङ्गौ । प्रीणन्तु सर्वे
ग्रहराहुकेतुभिः सर्वे सुराः शान्तिकरा भवन्तु ।।
---इतिदिक्पालपूजनम्----
चतुःषष्टियोगिनी आवाहन पूजनः-
इनका स्थान सुविधानुसार प्रधान कलश के पास अथवा मातृकावेदी के समीप रखा जा सकता है
। अन्य देवावाहन की तरह ही इनके लिए भी
वायें हाथ में पुष्पाक्षत लेकर, दायें हाथ से मन्त्रोच्चारण करते हुए छोडते जायें -
१.
ॐ दिव्ययोगायै नमः
।
२.
ॐ महायोगायै नमः ।
३.
ॐ सिद्धयोगायै नमः
।
४.
ॐ महेश्वर्यै नमः ।
५.
ॐ पिशाचिन्यै नमः ।
६.
ॐ डाकिन्यै नमः ।
७.
ॐ कालरात्र्यै नमः
।
८.
ॐ निशाचर्यै नमः ।
९.
ॐ कंकाल्यै नमः ।
१०.
ॐ रौद्रवेताल्यै
नमः ।
११.
ॐ हुँकार्यै नमः ।
१२.
ॐ ऊर्ध्वकेश्यै
नमः ।
१३.
ॐ विरुपाक्ष्यै
नमः ।
१४.
ॐ शुष्काङ्ग्यै
नमः ।
१५.
ॐ नरभोजिन्यै नमः ।
१६.
ॐ फटकार्यै नमः।
१७.
ॐ वीरभद्रायै नमः ।
१८.
ॐ धूम्राक्षस्यै
नमः ।
१९.
ॐ कलहप्रियायै नमः
।
२०.
ॐ रक्तक्ष्यै नमः ।
२१.
ॐ राक्षस्यै नमः ।
२२.
ॐ घोरायै नमः ।
२३.
ॐ विश्वरुपायै नमः
।
२४.
ॐ भयङ्कर्यै नमः ।
२५.
ॐ कामाक्ष्यै नमः ।
२६.
ॐ उग्रचामुण्डायै
नमः ।
२७.
ॐ भीषणायै नमः ।
२८.
ॐ त्रिपुरान्तकायै
नमः ।
२९.
ॐ वीरकौमारिकायै
नमः ।
३०.
ॐ चण्ड्यै नमः ।
३१.
ॐ वाराह्यै नमः ।
३२.
ॐ मुण्डधारिण्यै
नमः ।
३३.
ॐ भैरव्यै नमः ।
३४.
ॐ हस्तिन्यै नमः ।
३५.
ॐ
क्रोधदुर्मुकख्यै नमः ।
३६.
ॐ प्रेतवाहिन्यै
नमः।
३७.
ॐ
खट्वाङ्गदीर्घलम्बोष्ठ्यै नमः ।
३८.
ॐ मालत्यै नमः ।
३९.
ॐ मन्त्रयौगिन्यै
नमः ।
४०.
ॐ अस्थिन्यै नमः ।
४१.
ॐ चक्रिण्यै नमः ।
४२.
ॐ ग्राहायै नमः ।
४३.
ॐ भुवनेश्वर्यै
नमः ।
४४.
ॐ कण्टक्यै नमः।
४५.
ॐ कारक्यै नमः ।
४६.
ॐ शुभ्रायै नमः ।
४७.
ॐ क्रियायै नमः ।
४८.
ॐ दूत्यै नमः ।
४९.
ॐ करालिन्यै नमः ।
५०.
ॐ शङ्खिन्यै नमः ।
५१.
ॐ पद्मिन्यै नमः ।
५२.
ॐ क्षीरायै नमः ।
५३.
ॐ असन्धायै नमः ।
५४.
ॐ प्रहारिण्यै नमः
।
५५.
ॐ ॐ लक्ष्म्यै नमः
।
५६.
ॐ कामुक्यै नमः ।
५७.
न ॐ लोलायै नमः ।
५८.
ॐ काकदृष्ट्यै नमः
।
५९.
ॐ अधोमुख्यै नमः ।
६०.
ॐ धूर्जट्यै नमः ।
६१.
ॐ मालिन्यै नमः ।
६२.
ॐ घोरायै नमः ।
६३.
ॐ कपाल्यै नमः ।
६४.
ॐ विषभोजिन्यै नमः
।
उक्त चौंसठ योगिनियों के नाममन्त्रों से
आवाहन करने के बाद पुनःपुष्पाक्षत लेकर—आवाहयाम्यहं देवीर्योगिनीः परमेश्वरीः ।
योगाभ्यासेन संतुष्टाः परं ध्यानसमन्विताः ।।
दिव्यकुण्डलसंकाशादिव्यज्वालास्त्रिलोचनाः । मूर्तिमतीर्ह्यमूर्त्ताश्च
उग्राश्चैवोग्ररुपिणीः ।। अनेकभावसंयुक्ताः संसारार्णवतारिणीः । यज्ञे
कुर्वन्तु निर्विघ्नं श्रेयो यच्छन्तु मातरः ।। ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः, युष्मान्
अहम् आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च—बोलते हुए छोड़ दे और पंचोपचार/षोडशोपचार
पूजन करे— ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः कहते हुए । पूजन के बाद हाथ जोड़कर
प्रार्थना करे—यज्ञे कुर्वन्तु विर्विघ्नं श्रेयो यच्छन्तु मातरः । पुनः अक्षत लेकर— अनया पूजया
ॐ चतुःषष्टियोगिन्यः प्रीयन्ताम् न मम - कहकर छोड़दे ।
---इति चतुःषष्टियोगिनीपूजनम्---
क्रमशः...
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