गतांश से आगे...
शुक्रवार,दि.११ मई २०१८
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नवम
अध्याय
उपसंहार
चिर प्रतीक्षित योजना आज
पूरी हुयी । विभिन्न कारणों से इस शोधपरक पुस्तिका के सम्पादन कार्य में व्यवधान
आते रहे , किन्तु अन्ततः आज सम्पन्न हुयी ।
कालसर्पयोग के बारे में जो कुछ भी मैंने पढ़ा, जाना,
अनुभव किया उसे यथासम्भव आप सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया ।
कालसर्पयोग को लेकर फैले भ्रम का निवारण इससे अवश्य होगा - ऐसा मुझे विश्वास है । आशा
है ये पुस्तिका आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।
पुनः एक बार आग्रह करना चाहता हूँ कि कालसर्पदोष
का विनिश्चय करने में जल्दवाजी न की जाये । विभिन्न विन्दुओं से जांच-परख करके ही
निश्चित किया जाये कि वास्तव में ये दोष जन्मांक में लागू हो रहा है या नहीं ।
क्यों कि बहुत बार हम निर्णय लेने में जल्दवाजी कर देते हैं और इससे जातक को
परेशानी होती है तथा ज्योतिषशास्त्र की बदनामी होती है ।
विनिश्चय के पश्चात् समुचित उपाय अवश्य करे ।
उपचार के सम्बन्ध में पुनः स्पष्ट कर दूं कि कालसर्पदोष का उपचार जीवन में कई बार
करना पड़ता है । ऐसा नहीं कि अन्य दोषों की तरह एक बार शान्ति कराके निश्चिन्त हो
गये ।
पितृदोषादि अन्यान्य दोषों का भी तुलनात्मक
विचार कर ही लेना चाहिए । बहुत बार तो ऐसा होता है कि पितृदोष को ही कालसर्प दोष
करार दे देते हैं । इससे सही उपचार नहीं हो पाता । अस्तु।
कमलेश
पुण्यार्क
मैनपुरा,चन्दा,अरवल,बिहार
विक्रमाब्द २०७५, ज्येष्ठ कृष्ण
एकादशी,शुक्रवार,दि.११ मई २०१८
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