अद्भुत विवाद वाला देश
नाम, धाम और समय याद रखना जरा
मुश्किल है । किन्तु काम और परिणाम अवश्य
याद रहता है । एक पड़ोसी पर्यटक हमारे देश
की सैर करने आया था । उसने दूर से सुन रखा था कि उसके पड़ोस में एक अद्भुत और महान
देश है, जिसे लोग आर्यावर्त या भारतवर्ष कह कर याद करते हैं । संस्कृति, संस्कार, चरित्र,
न्याय, समृद्धि...हर दृष्टि से वो महान है । कुछ लोग इसे सोने की चिड़िया कहते हैं
, तो कुछ लोग पवित्र देवभूमि ।
यहां पहुँच कर चप्पाचप्पा घूमा और
पाया कि जितना सुना था, उससे कई गुना ज्यादा है । इस भूमि के संस्कार की बखान करे
या कि संस्कृति की ? समृद्धि को आंके या
कि न्याय और अनुशासन को ?
एक दिन घूमते-घूमते एक छोटे से गांव
में पहुँच गया । उसने देखा — एक विशाल वटवृक्ष के नीचे ग्रामवासियों की जमघट लगी
हुयी थी । ऊँचे से चबूतरे पर चार-पांच बुजुर्ग बैठे हुए थे और उन्हें घेरे बैठे थे
ग्रामवासी । दो व्यक्ति आमने-सामने सबसे आगे की पंक्ति में खड़े थे । लगता था कि पंचायत
लगी है । आपस में बातचीत चल रही थी । वाद-विवाद बिलकुल नहीं ।
एक ग्रामीण हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा
रहा था- ‘
पंच
जी महाराज ! मैं अपनी पैत्रृक भूमि का कुछ
भाग अपने पड़ोसी को उचित मूल्य लेकर बेंच चुका हूँ । मुझे इसने मांगी गयी पूरी राशि
भी चुकता कर दी है । अब मेरा उस पर किसी प्रकार का क्या अधिकार ? ’
दूसरा व्यक्ति उससे भी अधिक कातर
स्वर में कह रहा था— ‘
नहीं पंच जी, इसने केवल अपनी भूमि मुझे बेची है । मैंने भी केवल भूमि का ही मूल्य
दिया है । अब जब मैं इस पर मकान बनाने के लिए खुदायी करना शुरु किया तो इसके भीतर
से सोने की मुहरें निकली । मैंने तो केवल मिट्टी का मोल चुकता किया । सोने पर मेरा
अधिकार भला कैसे हो सकता है ? अतः आप कृपा
करके उसे स्वीकार करने का आदेश दें और मुझे पाप का भागीदार बनने से बचावें । ’
पहला व्यक्ति पुनः गिड़गिड़ाया— ‘ ऐसा
अनर्थ न हो महाराज ! विक्रीत भूमि के
भीतर से जो कुछ भी निकला वो तो मेरे द्वारा विक्रय और मूल्य प्राप्ति के बाद न
? फिर मेरे अधिकार का प्रश्न ही कहां रह जाता है । मुहरों को ग्रहण
कर मैं भला क्यों नरकगामी बनूं ? और जहां तक भाग्य का प्रश्न है,
मेरे भाग्य में यदि होता तो अब से पहले मुझे मिल चुका होता ।’
पंच बड़े पेचोपेच में थे । उन्हें
दोनों का तर्क वजनी लग रहा था । अन्त में उन्होंने निर्णय सुनाया— ‘
मुहरों का छः-छः आना भाग दोनों को दिया जाय और शेष चार आना भाग राजकोष को प्रजा-कल्याण
हेतु सुपुर्द किया जाय ।’
पंच का निर्णय परमेश्वर का निर्णय
होता है । अब पाप हो या कि पुण्य, इसमें भला किसी को आपत्ति का अधिकार ही कहां रह
जाता है । पंच के निर्णय में विवाद की गुंजायश ही कहां ?
न्याय व्यवस्था सुन-देख कर पर्यटक
गदगद होकर नृत्य करने लगा — अद्भुत है यह देश ।
जी हां, अद्भुत ही है यह देश ।
अभी हाल की ही तो बात है- एक
व्यक्ति ने अपनी विवाहिता पत्नी और दो पुत्रों को प्रताड़ित कर निष्कासित कर दिया
इस आरोप के साथ कि ये सन्तानें मेरी नहीं हैं । और बाद में मौका पाकर उन सन्तानों
की हत्या भी करवा दी - सुपारी देकर ।
उम्र, नाते-रिश्ते और पद-मर्यादा की
सीमा लांघ कर रोज दिन बलात्कार हो रहे हैं । बलात्कारी को डंड देने के वजाय चैनलों
पर विवाद और बयानबाजी कर रहे हैं । घृणित,अमानवीय (राक्षसी) अपराध को भी धर्म, जाति
और मज़हब से माप रहे हैं । और उससे भी मजे की बात है कि टिप्पणी कर रहे हैं- शरीर
की नुमाइश सड़कों पर करेंगीं तो क्या होगा ?...बच्चे हैं, बहक गए थोडे । इन्हें माफ कर देना चाहिए । मिट्टी, चारा, कोयला,
सीमेन्ट सब खा-पचा कर दांत निपोर रहे हैं । राष्ट्रद्रोह के नारे,राष्ट्रगान और
तिरंगे का अपमान, सेना पर पत्थरवाजी जैसे कुत्सित कार्यों को भी वोट-बैंक बनाने पर
आमादा हैं । सर्जिकलस्ट्राइक को भी
फर्जिकल बना रहे हैं बेशर्मी पूर्वक । प्रहरियों की शहीदी का भी सबूत मांग
रहे हैं ।
हो सकता है वो पर्यटक फिर आए और कहे—
अद्भुत है ये देश । अद्भुत है यहां का विवाद ।
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