शिक्षकदिवसःमेरे विचार

                    शिक्षकदिवसःमेरे विचार

समग्र सृष्टि ईश्वरीय अंश है । कण-कण में एक और एकमात्र ईश्वरीय सत्ता विद्यमान है । जागृत-जीवित-गतिमान सृजन ही ईश्वरीय वितान है । इसे कहीं और ढूढ़ने जाने की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि ये कहीं खोया नहीं है, छिपा नहीं है । बिलकुल हमारे समक्ष ही उपस्थित है । बस, आँखें खोलने और पहचानने की जरुरत है । फिर भी मिट्टी-पत्थर की मूर्तियां बनाकर हम इसे पूजने में विशेष अभिरुचि रखते हैं । और इतना ही नहीं, हमारा ईश्वर-तुम्हारा ईश्वर... के विभिन्न खेमों में बांट भी रखा है हमने । कनातों और दीवारों में कैद भी कर रखा है हमने । मूर्त्ति-पूजा का अपना एक खास उद्देश्य है, रहस्य है, औचित्य है, जिसे हम विसार चुके हैं । ईश्वरीय-सत्ता के रहस्य को नहीं समझ सकने के कारण ही माता-पिता वृद्धाश्रमों में दिन काट रहे हैं और उनके मरने के बाद भव्य स्मारक बनाकर, श्राद्धकर्म करके, फूल-मालायें अर्पित करके हम स्वयं को धन्य मान लेते हैं । दुःखी, दरिद्र, भूखे, नंगे, बीमार को हम उचित सेवा और सम्मान नहीं दे पाते, किन्तु मन्दिरों में लाखों दान कर आते हैं, क्यों कि पत्थर में हमें भगवान होने का भ्रम है ।

इसी तरह विभिन्न प्रकार के दिवस मनाने की परम्परा भी है । करीब-करीब साल के तीनसौपैंसठों दिन किसी न किसी दिवस को समर्पित है । पांच सितम्बर को हम शिक्षकदिवस के रुप में मनाते हैं । मूलतः इस दिन हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णनजी का जन्मदिवस है । चुंकि ये पहले शिक्षक रह चुके थे, इस कारण इसे शिक्षक दिवस के रुप में विशेष तौर पर जाना जाने लगा । महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस को हम गुरुपूर्णिमा के रुप में मनाते हैं । और ऐसी मान्यता सी चल पड़ी है कि गुरुपूर्णिमा दीक्षागुरु के तौर पर और शिक्षकदिवस शिक्षागुरु के तौर पर मनाया जाये ।

बात शिक्षा की हो या दीक्षा की, सच्चाई ये है कि जीवन-धारा को समेट कर मर्यादित रुप से प्रस्रवित होने के दो अनिवार्य और अति महत्वपूर्ण छोर बिलकुल अव्यवस्थित हो गये हैं । और जब सीमायें और मर्यादायें ही अव्यवस्थित होंगी, फिर बीच की धारा को कौन कहे, कौन सम्भाले ! दीक्षा तो बहुत दूर की कौड़ी है । वहां तो आजकल कनफूकवा गुरुओं की बाढ़ है सिर्फ, जो स्वयं पतन की गर्त में औंधेमुंह गिरे हुए हैं, फिर शिष्यों को क्या सम्भालेंगे ? दीक्षा के नाम पर सिर्फ ढोंग, ठगी और धूर्तता का व्यापार है ।  दूसरी ओर हमारी परम्परागत गुरुकुल व्यवस्था बिलकुल ध्वस्त हो चुकी है, पिछले कई शताब्दियों में । मुगलों और विशेषकर अंग्रेजों ने इस पर प्रबल प्रहार किया । क्यों कि इस सुसंस्कृत-सुव्यवस्थित परम्परा को ध्वस्त किये बिना आर्यावर्त पर निर्विघ्न शासन करना असम्भव था । उन्हीं फिरंगियों की कूटनीति- मेकाले शिक्षानीति के हम शिकार हैं आज , जो वास्तव में दो कौड़ी की नहीं है । इस शिक्षा से तो कहीं अच्छा था कि हम अशिक्षित ही रहते । कम से कम अ-सभ्य अ-मानव तो नहीं बनते । इस शिक्षा ने हमें मशीन बना कर रख दिया है । मनुष्य हम कतई बन ही नहीं पाये हैं ।

विद्यादान, ज्ञानदान की परम्परा वाले देश में शिक्षा ”  कम पूंजी में सर्वोत्तम लाभकारी व्यापार बनकर रह गया है । सीमावर्ती आतंकवादियों की तरह शिक्षा-व्यवसायी आन्तरिक और छद्म आतंकवादियों की भूमिका में हैं । इतने चिकने-चुपड़े,साफ-सुथरे से दीखने वाला स्तरीय लूट और कुछ हो ही नहीं सकता सम्भवतः । पिछली सरकारों की दोहरी-दोगली नीति के कारण बड़ी ही भयावह स्थिति हो गयी है । एक ओर सरकारी स्कूलों में पानी की तरह पैसे बहाये जा रहे हैं, फिर भी उनकी स्थिति में कोई खास सुधार नजर नहीं आता, तो दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल कुकुरमुत्तों की तरह फल-फूल रहे है और समाज का गहन शोषण कर रहे हैं । हमारी सोच बिलकुल बदल चुकी है । दस-बीस हजार बरबाद करने के बाद गुडमॉर्निग बोलते बच्चे को देख कर हम गौरवान्वित होते हैं- यही हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है । जब कि सच्चाई ये है कि इन स्कूलों से अंग्रेज पुतले पैदा होते है, छोटे-बड़े रोबोट पैदा होते हैं, न कि भारतीय शिष्ट-शालीन वटुक ।

योग्यता का स्तर दिनोंदिन घटता जा रहा है । नैतिकता नाम की कोई चीज रह ही नहीं गयी है । और इसका सबसे बड़ा कारण है अयोग्य-असंस्कारी शिक्षकों की भरमार । शिक्षक ही सभ्य-सुसंस्कृत-योग्य नहीं होंगे , फिर शिक्षा क्या खाक दे पायेंगे ! शिक्षक का पद बहुत ही गरिमामय है । बहुत ही महिमामय । बहुत ही संवेदनशील । बहुत ही सुसंस्कृत । किन्तु दुर्भाग्य है हमारा कि हमें ज्यादातर अ-योग्य शिक्षक ही मिल रहे हैं ।

      हमारी नयी सरकार बहुत से कठोर कदम उठाने का साहस कर रही है । उसे चाहिए कि शिक्षा जैसे अपरिहार्य, महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले में भी वैसे ही कठोर कदम उठाये । और इतना तो तय है कि धारा 370 से कठिन नहीं है- ये कदम । साफ नीयत और दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है सिर्फ । आरक्षण के ब्लडकैंसर को कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग से समाप्त कर दिया जाये । प्राइवेट स्कूलों पर कठोर अंकुश लगाये जायें । नेताओं, अफसरों और सरकारी कर्मचारियों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने की अनिवार्यता हो । इतने भर से ही बहुत कुछ सुधार हो जायेगा और शिक्षकदिवस का सम्मान भी बढ़ेगा । अस्तु । 

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