बात समझ से परे

बात समझ से परे

खबर है कि अररिया (बिहार) के सांसद प्रदीप सिंह, विधायक आबिदुर रहमान तथा शिवहर के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी अशोक कुमार दास की पत्नी को संशोधित परिवहन कानून के तहत जुर्माना भरना पड़ा । दैनिक भास्कर ने इस खबर को पहले पन्ने पर प्रकाशित किया है । इसके लिए भास्कर टीम  धन्यवाद का पात्र है ।

क्या ही अच्छा होता - विधायकजी का थोबड़ा दिखाने के साथ-साथ उस साहसी ट्रैफिक पुलिस का हिम्मतवर चेहरा भी हाइलाइट किया जाता, ताकि उसे देख कर अन्य पुलिसकर्मियों का उत्साह बढ़ता । पुलिस विभाग तथा परिवहन मन्त्री को चाहिए कि ऐसे ईमानदार, साहसी और कर्मठ पुलिस कर्मियों को पुरस्कृत करें ।

जुर्माना भरने वालों के अहंकार को तो बड़ा ही ठेस पहुँचा होगा, क्यों कि उन्हें सपने में भी उमीद न होगी ऐसी बेइज्जती की । हालाकि नेता बनने से पहले बेइज्जती-प्रूफ होना बहुत जरुरी होता है ।

जो भी हो खबर पढ़ कर दिल को बहुत सुकून मिला । अन्य महानुभावों को भी इस घटना से सबक लेनी चाहिए, किन्तु ऐसा प्रायः होता नहीं । कुछ सीखने के बजाय, वे कुछ करने को उतारु हो जाते हैं। निश्चित है कि उन्हें नींद न आयी होगी। सारी रात बोतल ढ़ालते रहे होंगे , झल्लाते रहे होंगे और उस पुलिसकर्मी को परेशान(दण्डित)करने का उपाय सोचते रहे होंगे ।

प्रायः नियम-कानून बनाने बाले ये सोचते ही नहीं कि जो कानून उन्होंने बनाया है, वो आम नागरिकों की तरह उन पर भी लागू होता है । कोई भी कानून बना देने भर से कुछ होता नहीं । होता तो तब है जब उसका सही तरीके से पालन हो । कानून चेहरा और रुतबा न देखे । अपराध देखे, चाहे वो किसी के द्वारा किया गया हो । सन्तोष की बात है कि आजकल ऐसी खबरें काफी संख्या में आ रही हैं, जिनमें कानून बनाने वालों पर शिकंजा कसा गया है ।
किन्तु दूसरी ओर अभी हाल के दिनों में देश के विभिन्न भागों से जो खबरें आरही हैं, वे बहुत ही हास्यास्पद और चिन्ताजनक हैं । कानून तोड़ते पकड़े जाते हैं लोग और गलती महसूस करने के वजाय बेहयाई से प्रशासन से ही उलझने लगते हैं । इससे भी दो कदम आगे, शर्मसार करने वाली बातें ये होती हैं कि वोटबैंक की गंदी राजनीति करते  बै-गैरियत नेतागण संशोधित कानून को ही गलत साबित करने पर तुले हैं । पिछले दिनों जगह-जगह हुए विरोध प्रदर्शन इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं ।

सड़कों पर उत्पात मचा कर ये क्या संदेश देना चाहते हैं- हम लपरवाही करते रहें ? दुर्घटनायें होती रहें ? बेगुनाह लोग मरते रहें, गुनाहगार मस्ती करते रहें ?

राष्ट्र को आगे बढ़ाना है, तो प्रत्येक नागरिक का ये पहला कर्तव्य होता है कि राष्ट्र और राष्ट्र के नियमों के प्रति वफादार हो । और ये परिवहन कानून तो हमारे स्वयं के प्रति, अपने परिवार के प्रति बफादारी का संदेश है, फिर इसे पालन करने में लोगों को शर्म क्यों आती है ?

बात समझ से परे है । किन्तु समझने का प्रयास तो करना ही होगा । इसी में हमारा कल्याण है। 
वन्देमातरम् ।

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