धराशायी रावण का यक्षप्रश्न


धराशायी रावण का यक्षप्रश्न
             पटना के गांधी मैदान में दहन के लिए खड़ा किया गया रावण का पुतला एक दिन पहले ही धराशायी हो गया । खबरिया चैनलों का ज़ुबान सूख रहा है सुपरसोनिक की रफ़्तार से एक ही बात का रट लगाते हुए । कल के अखबार का हेडलाइन बनना भी तय है । लग रहा है मानों स्काईलैब गिर गया है ।

आनन-फानन में एक ख़बरनवीश पहुँच गया चित पड़े पुतले के पास और माइक उसके मुंह के पास ले जाते हुए सवाल दागा— कहो रावण ! कैसा लग रहा है इस समय ?”

पहले तो तुम अपनी ज़ुबान सम्हालो । ये वाली भाषा पुलिसवालों के लिए छोड़ दो, जिन्हें लाइसेन्स मिला हुआ है अभद्र भाषा का । निस्पक्ष पत्रकार को ऐसी भाषा शोभा नहीं देती ।  इतना सा नसीहत देकर, रावण ने जोर से अट्टहास किया । दशानन के सभी मुंह से एकसाथ निकले जोरदार अट्टहास से घबराकर बेचारे खबरिये को दस कदम पीछे सरकना पड़ा । डर के मारे माइक हाथ से छूट गया । अट्टहास बड़ा ही डरावना था, किन्तु ज्यादा लम्बा नहीं । इससे थोड़ी राहत मिली ।

हिम्मत जुटा कर फिर नजदीक आया और पहलेवाला सवाल दुहराया । इस बार रावण मुस्कुराया । हालाकि उसकी मुस्कुराहट भी कम घातक नहीं थी । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हँसी या मुस्कुराहट ही अधिक घातक हो जाती है । इसका पुराना अनुभव है आर्यावर्त को । द्रौपदी की ऐसी ही हँसी महाभारत रचा गयी थी ।

जवाब के बदले रावण का अगला सवाल था— आँखिरकार हर साल मेरा पुतला क्यों जलाते हैं लोग, क्या मिलता क्या है इससे ? जरा सोचो, मैं तो अपने जमाने में अकेला था । मेरा न कोई जोड़ था, न तोड़ । मैंने सिर्फ एक सीता का अपहरण किया था । वो भी बिलकुल जान-बूझ-समझ कर । कामातुर होकर नहीं । क्यों कि कामातुर के पास इतना धैर्य नहीं होता । वह सबकुछ जल्दबाजी में कर गुज़ारना चाहता है, जबकि मुझे पता था कि इस पापी शरीर से भगवद्भक्ति हो नहीं सकती, सो दूसरा रास्ता अपनाया बैर वाला - अपनी सद्गति के लिए । मुझ पर राम की कृपा हो गयी । राम के साथ-साथ मैं भी अमर हो गया । जब-जब राम याद किये जायेंगे, मैं याद आ ही जाउँगा । मेरा उद्धार कर राम ने एक संदेश दिया समाज को । किन्तु मेरा पुतला क्यों जलाया जा रहा है - समझ नहीं आता । सचपूछो तो मैं मरा कहां हूँ ! अमर कभी मरा नहीं करते । रक्तबीज की तरह अनेक रुप धारण करके जन-जन के तन-तन में जा घुसा हूँ। आश्रम, मठ, मन्दिर, शहर-बाजार, संसद तक कहीं भी अछूता नहीं है मेरे प्रभाव से । अपहरण, बलात्कार, हत्यायें रोज दिन बढ़ रही हैं । एक से एक घातक हथियारों के ज़खीरे बटोरे जा रहे हैं। जिधर देखो युद्ध का माहौल है । लहू की प्यासी जीभें लपलपा रही हैं । काली भी शरमा रही हैं ।  प्रेम-भाईचारा सिर्फ स्लोगन बन कर रह गया है।  मैं एक था । एक राम आये और काम तमाम कर दिये मेरा । किन्तु अब तो राम को भी अनेक रुप लेकर अवतरित होना होगा । क्या पता राम भी मार पायें या नहीं इन अनेक रावणों को, क्यों कि वो रावण मूर्त था और ये रावण अमूर्त है । इस अमूर्त रावण का फोटो कहीं मिल जाये तो छाप दो हेडलाइन बनाकर सभी अखबारों में । ननस्टॉप न्यूज बनाकर दिखाते रहो चैनलों पर । काबिल पत्रकार हो तो ढूढ निकालो उस रावण को । समूल नाश करने की कोशिश करो उस रावण का, फिर पूछने आना मेरे पास कि कहो रावण कैसा लग रहा है ।  

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