ऑनलाईन पोलखोल
‘लॉकडाउन’
की आपातस्थिति में साराकुछ ऑनलाईन करने-कराने की जुगत में सरकारें
जुटी हैं। हालाँकि बहुत कुछ तो पहले से ही ऑनलाईन चल रहा है—खरीद-फ़रोख्त
से लेकर वाद-विवाद-फरियाद तक। फॉल इन लव, फेल इन लव, ‘कॉमन लव’, लवजिहाद सबकुछ फटाफट ऑनलाईन । ऐसे में भला, शिक्षाव्यवस्था
पीछे कैसे रह जाती!
आनन-फानन में नेताजी ने
घोषणा कर दी। और जब नेताजी ने घोषणा कर ही दी, तो अफसर की क्या औकात कि उसमें
मीनमेख निकाले ! विद्यालय-संस्थापक भी खुश, अभिभावक भी खुश । थोड़े दुःखी हुए तो विद्यार्थी और
शिक्षक,जिनसे लॉकडाउन का भरपूर लुफ़्त लेने का मौका छिन गया। हैकरों ने भी अच्छा मौका देख ‘जूमऐप’ के पाँच लाख एकाउण्ट ही हैक कर लिए। इन
हैकरों को भी अक्ल नहीं, बच्चों और शिक्षकों के एकाउण्ट हैक करने से उन्हें क्या
मिलेगा भला ! कोरोना किस लैबोरेटरी में बना,कितनी मात्रा में
बना,बनाने वाले ने कितना मुनाफा कमाया —ये सब पता चल जायेगा क्या? खैर,अक्ल ही होती तो हैकर बनते ? प्रतिभा का ऐसा
घृणित दुरुपयोग करते ? किन्तु इतना तो तय है कि हैकर होते
हैं बहुत ही बुद्धिमान,बुद्धिजीवी भले ही न हों।
मैं बात कर रहा था ऑनलाईन
पढ़ाई-लिखाई की। मुझे ये जानने की उत्सुकता है कि ये योजना आयी किस बदअक्ल के
दिमाग में। क्या उसे ये भी नहीं मालूम कि हमारी नेटवर्किंग कितनी कारगर है ? कायदे से जेनरल फोन पर दस मिनट बात करना तो मुश्किल होता है, ऐसे में
वीडियोकॉन्फरेन्सिंग के थ्रू चालीस मिनट का क्लास लेना और देना—कितना उबाऊ और कठिन
कार्य है - इस विषय पर सरकार बहादुर ने जरा भी नहीं सोचा और इसे लागू कराने वाले
मातहत पदाधिकारियों ने भी अपनी खोपड़ी नहीं लगायी, बल्कि सीधे मुहर लगा दी नेता की
बेतुकी बात पर ।
खैर, मैं न तो नेता हूँ और न
अफसर । न शिक्षक हूँ और न शिक्षण-संस्थान चलाने वाला तोदैल खटमल, जो गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा छोड़कर बाकी सबकुछ मुहैया कराने पर आमादा है—जूता,मोजा,कॉपी, किताब...सबकुछ,
और मजे की बात ये है कि पाँच-दस हजार का चूना लग जाने पर भी बच्चा अल्फावेट या
कहें वर्णमाला सीख कर आता है, ‘ हेलो डैड..हेलो मॉम ’ कहता है, तो सीना ९६ईंच
का हो जाता है, और आसपड़ोस झांकने लगते हैं कि मुझे देखकर कौन कितना जल रहा है।
हमारी अक्ल मारी गयी है। हम
अपने पैसों में आग लगा रहे हैं,तो इसमें भला किसे जलन होगी ?
क्या ही अच्छा होता, ऐसे
अभिभावक लॉकडाउन के खाली समय में, अपने वाट्सऐप-फेशबुक से थोड़ा ध्यान हटा कर,घर
के किसी कमरे में चल रहे ऑनलाईन क्लासरुम
मीटिंग का ज़ायज़ा ले लें । अपने बच्चों के साथ बैकग्राउण्ड क्लास खुद भी अटेंड कर
लें। आपकी शिक्षाव्यवस्था का ऑनलाईन पोलखोल पूरा हो जायेगा। क्यों कि अब तक तो आपने
अपने ही खून-पसीने से ऊँची होती स्कूल-विल्डिंगों की चमक भर देखी है। खूब हुआ तो पैरेन्ट्समीटिंग अटेंड करके कुछ
देखे-समझे होंगे। अपने बच्चों के क्लास रुम में बैठने का मौका तो मिला नहीं होगा
कभी।
अतः ये लुफ़्त भी ले लें ।
मैं तो सप्ताह भर से ले रहा हूँ। कल ही एक मानिन्द विद्यालय के मानिन्द शिक्षक का
ऑनलाईन क्लास अटेण्ड कर रहा था, जहाँ बड़ी सहजता से बच्चों को वर्थसर्टिफिकेट
बांटा जा रहा था, जिसमें जातिप्रमाणपत्र भी अटैच था— “सूअर के औलाद! नहीं पढ़ना है तो कल से मेरे
क्लासमीटिंग में मत आना...” कुछ और भी शब्द थे, जिन्हें मैं
लिख नहीं सकता । थोड़ी देर में मास्टर साहब ऑफलाईन हो गए और बच्चों की ऑनलाईन
टिप्पणियाँ कानों में आने लगी—“अरे रे रे मस्टरवा तो गाली बक
रहा है जी ...साला मास्टर ।”
आपके शिक्षक और उनके द्वारा
दी जारी शिक्षा – दोनों का ऑनलाईन पोलखोल है ये। जहाँ शिक्षक का ही स्तर इतना गिरा
हुआ है, वहाँ शिक्षा का स्तर कैसा हो सकता है—सोचने वाली वात है। शिक्षक यदि
माँ-बहन की गाली को तकियाकलाम बना सकता है, तो बच्चा ...कच्ची मिट्टी का वेडौल
घड़ा ?
एडमीशन के समय सुनते हैं कि अभिभावकों
का भी इन्टरभ्यू होता है। क्या अभिभावक का ये फ़र्ज नहीं बनता है कि प्रिंसिपल से
लेकर शिक्षक तक का प्रेसकॉन्फ्रेन्स की तरह ज्वायन्ट इन्टरभ्यू लिया जाय अभिभावकों
द्वारा ? हम जिन हाथों में अपने खानदान का धरोहर, अपने राष्ट्र का धरोहर सौंपने जा
रहे हैं- संवारने-सुधारने के ध्येय से, क्या वो इसके काबिल है भी या नहीं—इतना जाँचने-परखने
का तो अवसर मिलना ही चाहिए न !
किन्तु क्या हम ऐसा कर
पायेंगे ?
इतनी हिम्मत है ? है इतनी साहस ? है इतनी इच्छा शक्ति ?
और यदि
नहीं है, तो फिर हम अपने होनहारों का भविष्य बिगाड़ने वाले कौन होते हैं ? ---()---
Comments
Post a Comment