श्रीदुर्गासप्तशतीःःएक अध्ययन नौवां भाग
।।सप्तशतीन्यासः।।
ये सप्तशतीन्यास सप्तशतीपाठ का
पूर्वांग विशेष है, यानी जिन्हें सीधे नवार्णजपसाधना करनी है, उनके लिए ये
अनिवार्य नहीं है। इस न्यास के प्रारम्भ में भी यथावत विनियोग विहित है।
विनियोग— ऊँ अस्य प्रथममध्यमोत्तमचरित्राणां
ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो
देवताः,गायत्र्युष्णिगनु-ष्टुभश्छन्दांसि,नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः,रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो
बीजानि, अग्निवायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्ययुःसामवेदा ध्यानानि,सकल कामनासिद्धये श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थे
जपे विनियोगः ।
करन्यासः—
ऊँ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी
चक्रिणी तथा।
शंखिनी चापिनी बाणाभुशुण्डीपरिघायुधा
।। — अँगुष्ठाभ्याम् नमः।। (दोनों हाथ के अंगूठों का परस्पर स्पर्श करें। इसी भांति
आगे अन्य अँगुलियों का क्रमशः स्पर्श होना चाहिए उनके मन्त्रोच्चारण के साथ)
ऊँ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन
चाम्बिके ।
घण्टास्वनेन नः पाहि
चापज्यानिःस्वनेन च ।। — तर्जनीभ्याम् नमः।। (दोनों हाथ की तर्जनी अँगुलियों का परस्पर स्पर्श करें)
ऊँ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च
चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां
तथेश्वरि।।—मध्यमाभ्याम् नमः।। (दोनों हाथों की मध्यमा अँगुलियों का परस्पर स्पर्श करें)
ऊँ सौम्यानि यानि रुपाणि त्रैलोक्ये
विचरन्ति ते।
यानि चात्यर्थघोराणि तै
रक्षास्मांस्तथा भुवम्।। — अनामिकाभ्याम् नमः।।(दोनों हाथों
की अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करें)
ऊँ खड्गशूलगदादीनि
यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।
करपल्लवसङ्गीनि
तैरस्मान् रक्ष सर्वतः ।। — कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।। (दोनों हाथों की कनिष्ठिका अँगुलियों
का परस्पर स्पर्श करें)
ऊँ सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ।। —करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।। (हथेली और उसके
विपरीत भाग का परस्पर स्पर्श करें)
हृदयादिन्यासः—(अब उक्त मन्त्रों से
ही हृदयादिन्यास करें)
ऊँ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी
तथा।
शंखिनी चापिनी बाणाभुशुण्डीपरिघायुधा
।। — हृदयायनमः।
ऊँ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके
।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन
च ।। — शिरसेस्वाहा
ऊँ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च
चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां
तथेश्वरि।।— शिखायैवषट् ।
ऊँ सौम्यानि यानि रुपाणि त्रैलोक्ये
विचरन्ति ते।
यानि चात्यर्थघोराणि तै
रक्षास्मांस्तथा भुवम्।। —कवचायहुम्
ऊँ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि
तेऽम्बिके ।
करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष
सर्वतः ।। —नेत्रत्रयायवौषट्।
ऊँ सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि
नमोऽस्तु ।। — अस्त्रायफट्।
उक्त
दोनों न्यासों (करन्यास एवं हृदयादिन्यास) को करने के बाद देवी-ध्यान करे, पुनः
निर्दिष्ट विनियोगादि करके, सप्तशती के तीनों चरित्रों का पाठ करने का निर्देश है।
विशेष
साधकों के लिए चरित्रत्रयपाठपूर्व दो और न्यास करने का निर्देश भी मिलता है—चण्डीपञ्चाक्षरन्यास
एवं चक्रन्यास। यथा—
चण्डीपञ्चाक्षरन्यासः—
ऊँ ह्रीं हृदयायनमः। ऊँ चं शिरसे स्वाहा । ऊँ डिं शिखायै वषट्। ऊँ कां
कवचाय हुम् । ऊँ यैं नेत्रत्रयाय वौषट् । ऊँ ह्रीं चण्डिकायै अस्त्राय फट्।
चक्रन्यासः—
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रां नन्दायै अँगुष्ठाभ्यां नमः ।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रीं रक्तदन्तिकायै तर्जनीभ्यां नमः ।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रं शाकम्भर्यै मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रैं दुर्गायै अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रौं भीमायै कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रः भ्रामर्यै करतल- करपृष्टाभ्यां नमः।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रां नन्दायै हृदयाय नमः।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रीं रक्तदन्तिकायै शिरसे स्वाहा ।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रूं शाकम्भर्यै शिखायै वषट्।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रैं दुर्गायै कवचाय हुम् ।
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रौं भीमायै नेत्रत्रयाय वौषट्
ऊँ
शम्भुतेजो ज्वलज्वाला मालिनि पावके ह्रः भ्रामर्यै अस्त्राय फट्।
ध्यातव्य
है कि तीनों चरित्रों के लिए विनियोग और ध्यान अलग-अलग हैं, किन्तु न्यास नहीं है।
अतः इस प्रकार अब आगे किसी प्रकार के नवीन न्यासों का सिलसिला नहीं मिलेगा । किन्तु
हाँ, सप्तशती पाठान्त में पुनः चुँकि नवार्णमन्त्रजप का विधान है, इसलिए तत्सम्बन्धित
न्यास की पुनरावृत्ति करनी है।
किंचित
ग्रन्थों में सप्तशतीपाठ पूर्व एक और न्यास का प्रसंग भी मिलता है। श्रीदुर्गार्चनसृतिकार
ने भी इसकी चर्चा की है। ये माहात्म्यन्यास के नाम से अभिहित है। यथा— ऊँ
मधुकैटभवध माहात्म्याय नमः ब्रह्मरन्ध्रे
। ऊँ महिषासुरसैन्यवध माहात्म्याय नमः सीमन्ते । ऊँ महिषासुरवध माहात्म्याय
नमः भ्रूमध्ये । ऊँ शक्रादि माहात्म्याय नमः नेत्रयोः । ऊँ देव्यादूतसंवाद माहात्म्याय
नमः मुखे। ऊँ धूम्रलोचनवध माहात्म्याय नमः कर्णयोः । ऊँ चण्डमुण्डवध माहात्म्याय
नमः हृदि । ऊँ रक्तबीजवध माहात्म्याय नमः नाभौ । ऊँ निशुम्भवध माहात्म्याय नमः लिङ्गे । ऊँ शुम्भवध माहात्म्याय
नमः मूलाधारे । ऊँ स्तुति माहात्म्याय नमःजान्वोः । ऊँ फल माहात्म्याय नमः
गुल्फयोः । ऊँ वरदान माहात्म्याय नमः पादयोः । तदनन्तर
ऊँ ह्रीं मायाबीज से सात बार सर्वांग व्यापक न्यास करे। अस्तु ।
(इति न्यास प्रकरण )
। ।ऊँ श्री देव्यार्पणमस्तु।।
क्रमशः...
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