श्रीदुर्गासप्तशतीःएक अध्ययनःभाग सत्रह
गतांश से आगे...
अध्याय आठ- (ङ) सम्पुट प्रयोग व्यवस्था
गतांश से आगे...
अध्याय आठ- (ङ) सम्पुट प्रयोग व्यवस्था
विभिन्न
लौकिक कार्यों की सिद्धि हेतु श्रीदुर्गासप्तशती के किंचित मन्त्रों का सम्पुट-प्रयोग
शास्त्रसम्मत है। प्रायः प्रत्येक पुस्तक के अन्त में इसकी चर्चा मिल जाती है। जैसे-
रोगानशेषा..., सर्वावाधा... इत्यादि मन्त्र सम्पुट-प्रयोग
में आते हैं। अर्गलास्तोत्र के कुछ मन्त्रों द्वारा भी कामना विशेष से सम्पुट करने
का विधान है। सीधे नवार्णमन्त्र से भी सप्तशती को सम्पुटित करने का निर्देश है। सप्तशती
से बाहर के यानी श्रीसूक्त, देवीसूक्त या
अन्यान्य वैदिक वा तान्त्रिक मन्त्रों का भी प्रयोग सप्तशती सम्पुटन हेतु किया जाता
है।
मूलसप्तशती
पाठ प्रारम्भ करने से पहले नवार्णविधि (न्यास और जप ) का नियम है। यही कार्य तेरहवें
अध्याय की समाप्ति के पश्चात् भी करने का निर्देश है। कुछ लोग इसे ही नवार्णसम्पुटित
सप्तशती मान लेते हैं। यह आंशिक सत्य है। सम्पुटपाठ का ऐसा कोई विधान नहीं है। वस्तुतः
ये पाठांग हुआ । न कि सम्पुट पाठ ।
पाठ्यश्लोक
के मन्त्रसम्पुटन के सम्बन्ध में मरीचिकल्प में
शिव-पार्वती
संवाद क्रम में स्पष्ट चर्चा है। यथा—
देव्युवाच—
सम्पुटं
कथिता स्वामिन् वेत्तुमिच्छामि तत्त्वतः । कथस्वसुरेसान् ! यद्यहं तव वल्लभा ।।
ईश्वरोवाच—सम्पुटं
द्विविधं ज्ञेयमुदयास्तकरं प्रिये ! श्रृणूदयं त्वमादौपश्चादस्तं वदामिते ।। मन्त्रमादौपुनः
श्लोकमंतेमन्त्रं पुनः पठेत् । पुनर्मन्त्रंपुनः श्लोकं क्रमोऽयमुदये शुभः ।। उदयोत्कर्ष
लाभाय सम्पुटोयमुदाहृतः। अत्र सर्वत्र श्लोकमन्त्रोपलक्षकमिति ।। अस्तं चिकित्साशास्त्रेषु
शरावाभ्यां कृतं भवेत् । तत्तेहं संप्रवदाम्यत्र एकाग्रकृतमानसः ।। मन्त्रमादौ पुनः
श्लोकमन्ते मन्त्र विपर्ययम् । मारणोच्चाटने बन्धेसम्पुटोयमुदाहृतः ।। प्रकारोयमनादृत्य
कुर्वन्त्यात्म प्रकल्पितं। रौरवादिषु पच्यन्ते यावदाभूतसम्प्लवः ।।
अर्थात् सम्पुट पाठ दो प्रकार
का होता है— उदय और अस्त । प्रारम्भ में अभीष्ट (सम्पुट हेतु चयनित) मन्त्र
का उच्चारण करे, तत्पश्चात पाठ्यस्तोत्र के एक श्लोक का उच्चारण करे । पुनः सम्पुट
हेतु अभीष्ट मन्त्र का उच्चारण करे। इस प्रकार पाठ्यस्तोत्र के श्लोक को अभीष्ट मन्त्र
से दोनों ओर से सम्पुटित कर दिया गया - घेर दिया गया। ये उदितसम्पुटविधि हुयी । आगे भी क्रमशः इसी भाँति प्रत्येक श्लोक को आदि-अन्त
में अभीष्ट मन्त्र का प्रयोग करते हुए घेरते जायेंगे। प्रायः पाठकर्ता यहाँ पर चूक
जाते हैं- श्लोकान्त सम्पुटन तो कर लेते हैं, किन्तु
वहाँ पुनः अभीष्ट मन्त्र को दुहराये बिना अगले श्लोक का उच्चारण करने लगते हैं। वस्तुतः
सही सम्पुटन कहाँ हुआ ? सही सम्पुटनविधि
को इस उदाहरण से समझें— ( मन्त्र—पाठ्यश्लोक—
मन्त्र)
(मन्त्र—पाठ्यश्लोक—मन्त्र) (मन्त्र—पाठ्यश्लोक—मन्त्र)....
अस्त विधि का प्रयोग मारणादि क्रूर
कर्मो में किया जाता है। यहाँ प्रारम्भ में तो अभीष्ट मन्त्र का सामान्यतः प्रयोग करते
ही हैं, किन्तु अन्तिम वाला सम्पुटन करते समय मन्त्र विपर्यय होता है ।
इस द्वितीय सम्पुट प्रकार से साधकों को परहेज करना चाहिए, क्योंकि
इसका परिणाम अति घातक है। अस्तु।
क्रमशः....
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