सप्तशतीरहस्यःः भाग 25(अन्तिम भाग)

      श्री दुर्गासप्तशतीःःएक अध्ययनःः पचीसवाँ और अन्तिम भाग

गतांश से आगे...

                     उपसंहार एवं परिशिष्ठ भाग



                                         उपसंहार
        अतिशय रहस्यमयी जगज्जनननी के चरित्रों पर आधारित शोध पुस्तिका— सप्तशती-रहस्य के  सात पायदान पूरे हुए आज । श्री दुर्गासप्तशती जैसे सुपरिचित ग्रन्थ को किंचित नूतन आलोक में देखना-परखना अपने आप में बड़ा ही सुखद अनुभूतिपूर्ण रहा । सदा कुछ पढ़ते-लिखते रहने की प्रवृति तो पुरानी है, किन्तु इस पुस्तक को लिखने में जितना ऊर्जान्वित रहा, अब से पूर्व की किसी रचनाकाल में ऐसा नहीं रहा था ।                      
 बाबाउपद्रवीनाथ का चिट्ठा और   सूर्यविज्ञानःआत्मचिन्तन   लिखते समय की अनुभूतियाँ भी कुछ कम विचित्र नहीं थी, किन्तु इस सप्तशतीरहस्य  की अनुभूति तो अकथनीय-अवर्णनीय रही ।
ईश्वर-कृपा के वगैर कुछ नहीं होता— ये परम सत्य है। किन्तु इस पुस्तक के सम्पादन में सिर्फ कृपा ही नहीं, प्रत्युत सम्पूर्ण सहयोग रहा । ऐसा सहयोग मानों जगदम्बा स्वयं हाथ पकड़ कर लिखवा रही हों । कब-कहाँ क्या लिखना है—इसकी प्रत्यक्ष व स्वप्नानुभूति कई बार आश्चर्यचकित कर गयी ।
हालाँकि मनोविज्ञान कहता है कि मनुष्य जिस विचारधारा में बह रहा होता है, उसकी छाप उसके अचेतन तक पहुँचती है और ऐसे में कुछ प्रासंगिक-अप्रासंगिक घटनायें भी घट जाती हैं। किन्तु क्या सिर्फ इतना ही है ?
शायद नहीं । जो कुछ भी है, वो इससे कई कदम आगे की बात है।
कौन सा उद्धरण किस पुस्तक के किस अध्याय में है, ये सब तो जगदम्बा ही जान सकती हैं, बतला सकती हैं । मैंने तो सिर्फ उनसे इतना ही निवेदन किया था कि ये कार्य पूरा होना चाहिए और बहुत जल्दी पूरा होना चाहिए—ये वालसुलभ चापल्यता प्रदर्शित करने से भी नहीं चूका था ।
पुस्तक के विषयवस्तु को पढ़ कर हो सकता है, नाना प्रकार के प्रश्न और जिज्ञासायें आपके मन में उठें । जब तक मैं हूँ, इस पर सवाल भी मुझसे पूछे जाएँ । किन्तु कितने सवालों का समुचित उत्तर मैं आपको देकर संतुष्ट कर पाउँगा—कह नहीं सकता । क्यों कि सच कहता हूँ ये पुस्तक मैंने लिखी नहीं। मेरे द्वारा इस पुस्तक का सम्पादन करा लिया गया जगदेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी द्वारा । 
जहाँ तक सिद्धान्तों और नियमों की बातें हैं, वो ऋषि-महर्षियों की हैं—मैंने यथावत उसे आपके समक्ष परोस भर दिया है। वाक्यविन्यास एवं शब्दसंयोजन सम्बन्धी जो कुछ भी त्रुटियाँ दिखें, निश्चित ही उसके लिए मैं स्वयं उत्तरदायी हूँ। फिर स्मरण दिलाना चाहूँगा कि मैं कोई विद्वान, कर्मकाण्डी, साधक बिलकुल नहीं हूँ। जो भी हुआ है, हो रहा है, सबकुछ पूर्वजों के आशीष और मातेश्वरी की कृपा से ही । अतः पुस्तकान्तर्गत विशेषताओं का श्रेयाधिकारी भी नहीं हूँ, बल्कि त्रुटियों का उत्तरदायी अवश्य हूँ।
पुस्तक कितना उपयोगी हो पाया आपके लिए - ये तो आप ही बता सकते हैं। आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए मेरा हृत्कपाट अहर्निश खुला रहेगा ।
अक्षयतृतीया, विक्रमाब्द २०७७            निवेदक—कमलेश पुण्यार्क,
                                                  मो.8986286163
                                                  मैनपुरा,चन्दा,कलेर,
                                           जि.अरवल,बिहार(भारत)
       
                
                   ।। ऊँ श्री जगदम्बार्पणमस्तु ।।

                                परिशिष्ठ खण्ड
इस खण्ड के अन्तर्गत कुछ ऐसे प्रसंगों को समाहित कर रहा हूँ, जो बहुउपयोगी होते हुए भी सामान्य सुलभ पुस्तकों में नहीं मिलते। सप्तशतीहृदय और सप्तशतीदल बहुत ही महत्वपूर्ण है । किन्तु ये सर्वसुलभ नहीं है। रुद्रयामलतन्त्रम् में इसकी चर्चा है। योगिनी और क्षेत्रपाल-पूजा-होमादि अनिवार्य है, किन्तु विस्तृत सूची बहुत कम ही पुस्तकों में मिलती है। फलतः संक्षिप्त पंचाक्षर (नाममन्त्र) से काम चला लिया जाता है। योगिनीस्तोत्रम् की भी यही स्थिति है।
                         १. अथ सप्तशतीहृदयम्
इसके पाठ से पूर्व न्यास का जो विधान है, वह ठीक नवार्णजप पूर्व के न्यास की तरह ही है । अतः पूर्व प्रसंग में दिये गये न्यास का अवलोकन करना चाहिए।
विनियोग— ऊँ अस्य श्रीचण्डिकाहृदयमालामन्त्रस्य त्रिगुणात्मक ऋषिः श्री महाचण्डी देवता ऐं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकम् अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।।
ब्रह्मोवाच—अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विस्तरेण यथा तथम् । चण्डिका हृदयं गुह्यं श्रृणुष्वेकाग्रमानसः ।।
 ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रुं ऐं स्रीं श्रीं ऊँ नमो भगवति जयजय ज्वालामालिनि चामुण्डे चण्डिके त्रिदश मणिमुकुट कोटिनिघृष्ट चरणारविन्दे गायत्रि सावित्रि सरस्वति महासन्ध्ये महाबाण कृताभरणे  भैरवरुपधारिणि प्रकट सुदंष्ट्रोंग्रवदने । घोरे घोरासने नयनोज्वलज्वाल सहस्र परिवृते  महाट्टहास धवलीकृत दिगन्तरे  दिवाकर सहस्र परिवृते कामरुप धारिणि महामणि द्योतित शशि प्रभा भासित सकल दिगन्तरे  सर्वायुध परिपूर्णे कपालहस्ते गजगामिन्यौत्तरिण्ये भूत वेताल परिवृते प्रकम्पित चराचरे  मधुकैटभ महिषासुर धूम्रलोचन चण्डमुण्ड रक्तबीज निशुम्भ शुम्भादि दैत्य निष्कण्टिके कालरात्रि महामाये शिवेनित्ये त्रिभुवन धराधरे वामे ज्येष्ठे वरदे रौद्रि अम्बिके कालि कलविकरणि ।। बल प्रमथथिनि सर्वभूतदमनि मनोन्मय्यधारिणि ब्राह्मिमाहेश्वरि कौमारि वैष्णवि वाराहि नारसिंहीन्द्राणि चामुण्डे माहेन्द्रि शिवदूति महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीति त्रिस्थिति ।। नादमध्येस्थिते महोग्र वियोरग फणाफणि मुकुट रत्नज्वालाबलि महाहिहार भूषित पाद बाहुकण्ठोत्तमाङ्गे ।। मालाकुले ।। नवरत्न निधिकोशे शब्द स्पर्श रुपरसगन्धाकाश वाक्यामि पाद पूयूषस्थ श्रोत्र त्वक् चक्षुर्जिह्वाघ्राण मध्यस्थिते चक्षुष्मति महाविषोपविघ्ने ।। महाज्वालानले।। महाभैरव स्तुते सर्वसिद्धप्रदे । निर्मले निष्कले नाभ्याधारादि संस्थिते ।। परं ज्योतिः स्वरुपे । सोम सूर्याग्नि मण्डल परिवृते । ऊर्ध्वं विशुद्धान्तक प्रभे । विनिरगत ब्रह्म विष्णु रुद्र दैवते । परे अपरे प्रभा भासित चराचरे । पञ्चविंशति तत्वावबोधिनि ।। महाशून्यागमें पतिबन्धु संस्थिते भुक्तिमुक्ति प्रदे निर्गणे ऋग्यजुःसामाथर्वणि पठिते । एह्येहि भगवति स्थूल सूक्ष्म परे हुङ्कार निरुपते परमकारुणिके महाज्वाला मणे मरिषोपरि गन्धर्व विद्याधरार्चिते । भुजङ्ग महिमे जम्भिणि वशीकरिणि जृम्भे मोहे क्षोभे बीज पंचक मध्यस्तिते महायोगिनि महाज्वर क्षेत्रनायिके यक्षराक्षस महाज्वर क्षेत्र विषोपविघ्ने गन्धर्व विद्याधरारार्धिते ऊँकार श्रींकार हस्ते आँ क्रीं अग्निपात्रे द्रां शोषय शोषय प्लुं प्लावय प्लावय क्लीं श्रीं सुकुमारथ सुकुमारथ प्लुं नाशय नाशय स्रीं उन्मादय उन्मादय ग्लौं मोहय मोहय ह्रीं आँ ह्रीं आवेशय आवेशय श्रीं प्रवेशय प्रवेशय स्त्रीं आकर्षय आकर्षय हुँ हुँ हुँ फट् अतीतानागत वर्तमानान्दिशं विदिशं  ऐं  ह्रीं श्रीं श्रावय श्रावय श्रावय सर्वं प्रवेशय प्रवेशय त्रैलोक्यं वशवर्ति ऐंकारं वशीकुरुष्व ऐँ ह्रीं श्रीं द्रावय द्रावय सर्वं प्रवेशय प्रवेशय ऐङ्कारचितां वशं कुरु वशंकुरु ऐँ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं हूं ह्रैं ह्रौं हः ह्रीं श्री स्रां स्रीं स्रूं स्रैं स्रौं स्रः मम सर्वकार्याणि साधय साधय हुँ फट् स्वाहा ।।
एकविंशति वारन्तु पठेदेवञ्जपेत्तुवा राजद्वारे श्मशाने च विदेशं शत्रुमण्डले । भूताग्नि रण मध्ये च सर्वकार्याणि साधयेत् ।। चण्डिका हृदयं गुह्यं त्रिसन्ध्यं कीर्तयेद्विजः सर्व कामप्रदं नृणां भुक्तिमुक्ति च विन्दति ।।  
           ।।इति रुद्रयामले तन्त्रे सप्तशतीहृदयं सम्पूर्णम् ।।

          २         अथ सप्तशतीदलम्
ऊँ नमश्चण्डिकायै । अथातःसम्प्रवक्ष्यामि चण्डिका दल मुत्तमम् । मन्त्रं विना तु जप्वा वै तत्सर्वं निष्फलं भवेत् ।।
ऊँ नमोभगवति जय जय चामुण्डे चण्डेश्वरि चण्डायुधे चण्डरुपधारिणि ताण्डव प्रिये ।। कुण्डलीभूतदिङ् नागमण्डली कतगण्डस्थले समस्तजगदण्डसंहारकारिणि परे अनन्तानन्तरुपे शिवे नरशिरोमालालंकृत वक्षस्थले महाकपाल भालोज्वलन्मणि मुकुट चुड़ावतंस चन्द्रखण्डे महाभीषणे देवि ।. महामाये षोडशकलापरिवृतोल्लासिते महादेवासुर समरनिहत रुधिरार्द्रीकृता लम्बिततनु कमलोद्भासित करे सम्पूर्ण रुधिर शोभित महाकपोलवक्त्रहासिनि दृढ़तरनि वध्यमानधर शोभित महाकपोले चन्द्रभासिनि दृढ़तरावद्ध महानाद सहिते हेमकाञ्ची दामोज्वलीकृत महामण्डिते । महाशम्भुरुपे महाव्याघ्र  चर्माम्बरधरे महासर्प यज्ञोपवीतिनि महाश्मशान भस्मोद्धूलित सर्वगात्रे कालि कंकालि महाकालि कालाग्नि रुद्रकालि काल संकर्षिणि कालरात्रि नमोदुष्टभक्षिणि नानाभूतप्रेत पिशाचगण सहस्र संङ्गिरिणई नाना व्याधि प्रशमनि सर्व दुष्ट  प्रमयिनि सर्व दारिद्र नाशिनि युगे युगे खादित मांसखण्डे गायत्री विक्षिप कला कलायमान कंकालधारिणि मधुमांस रुधिर सन्तप्त विलासिनि  सकल सुरासुर गन्धर्व विद्याधर किन्नर किम्पुरुषादिभिः स्तूयमाने सर्व मन्त्राधिभूताधिकारिणि सर्वशक्ति प्रधाने सकललोक पावनि सकल दुरितप्रक्षालिनि सकल लोक जननि ब्राह्मिमाहेश्वरि कौमारिवैष्णविवाराहिनारसिंहीन्द्राणि चामुण्डे महालक्ष्मीस्वरुपे महाविद्ये योगिनियोगीश्वरी चण्डिके महामाये विश्वरुपिणि सर्वाभरणभूषिते अतलविलतसुतलमहातलरसातलपातालादि चतुर्दशभुवनैकनाथे ऊँ नमः पितामहाय ऊँ नमोनारायणाय ऊं नमःशिवाय इतिसकल लोकैकजायमाने ब्रह्मविष्णुमहेश्वरि दण्ड कमण्डलु धारिणि शंखचक्रगदापद्मधारिणि परशुशूलपिनाक कण्टकधारिणि सरस्वतिपद्मभालये सावित्रि सकल जगत्स्वरुपिणि महाक्रूरे प्रसन्नरुपधारिणि सर्वमंगलप्रिये महिषासुरमर्दिनि कात्यायनि दुर्गे निद्रारुपिणि शरचापशूलकपाल करवाल खड्ग डमरु काङ्कुश गदा परशु तौमर भिन्दिपाल भुशुण्डी मुसल मुद्गर परिधायुध दोर्दण्डनि सहस्र चन्द्रार्क बह्ननयने इन्द्राग्नि यम नैर्ऋति वरुण वायु कुबेर ईशान प्रधानशक्तिभूते सप्तद्वीप समुद्रोपर्युपरि महाभ्यासेश्वरि महाचराचर प्रपञ्चतनूदरे महाप्रधाने महाकैलासपर्वतोद्यान वनक्षेत्र नदीतीर देवताद्यायतनालंकृते मेदिनीनाथे वसिष्ठ वामदेवादि मुनिगणस्पर्शचरणार्विन्दे द्विचत्वारिंशद्वर्ण सहिते पर्यायस्थाने वेदवेदाङ्गानेकशास्त्रभूते शब्दब्रह्ममये मातृकादेवि शिरांसंरक्ष रक्ष मम शत्रून्हुँकारेण नाशय नाशय भूत प्रेत पिशाचानुच्चाटयोच्चाटय वशीकुरु वशीकुरु क्षोभय क्षोभय संक्रामय संक्रामय विदारय विदारय द्रावय द्रावय सकल चौरान्मूद् र्घ्नि स्फोटय स्फोटय सकल शत्रून शीघ्रं मारय मारय हुँफट् स्वाहा ।।
 ।। इति रुद्रायामले तन्त्रे सप्तशतीदलम् सम्पूर्णम् ।।
           १.               अथ योगिनीस्तोत्रम्
ऊँ जया च विजयाचैवजयन्तीचापराजिता । दिव्ययोगी महायोगी सिद्धयोगी महेश्वरी ।। प्रेताशी डाकिनी काली कालरात्रिस्तथैव च। टंकाक्षी रौद्री वैताली हुँकारीचोर्ध्वकेशिनी  ।। विरुपाक्षी च शुष्कांगी नरभोजनिका तथा । फट्कारी वीरभद्रा च धूम्राक्षी कलहप्रिया ।। राक्षसी घोररक्ताक्षी विश्वरुपा भयंकरी । चण्डमारी च चण्डी च वाराही मुण्डधारिणी ।। भैरवी च तथोध्वांक्षी दुर्मुखी प्रेतवाहिनी। षट्वाङ्गी चैव लम्बोष्ठी मालिनी मत्तयोगिनी ।। कालीरक्ता च कंकाली तथा च भुवनेश्वरी । त्रोटकी च महामारी यमदूती करालिनी ।। केशिनी दामिनी चैव रोमगंगा प्रवाहिनी  । विडाली कामुका लाक्षी जयाधोमुखी तथा ।। मुण्डाग्रधारिणी व्याघ्री कांक्षिणी प्रेतभक्षिणी। धूर्जटीनिकटीघोरी कपाली विषलम्बिनी ।। चतुःषष्टिसमाख्याता योगिन्योथवरप्रदाः । त्रैलोक्ये पूजिता नित्यं देवमानुषयोगिनी ।। चतुर्दश्यांतथाष्टम्यां संक्रान्तौ नवमीषुच । पवित्रस्तु ततो भूत्वा तस्य विघ्नं प्रणश्यति ।। राजद्वारे पथेघोरे संग्रामेशत्रुसंकटे । अग्निचौर निपातेषु सर्वग्रहनिवारिणी ।। जप्यतेतज्जपेनित्यं शरीरेभयमागते स्तुत्वा नारायणी देवीं सर्वोपद्रव नाशिनी ।।
                                ।।इति योगिनीस्तोत्रम् ।।    

              २.     चतुःषष्टियोगिनी सूची

१.      ऊँ दिव्ययोगिन्यै नमः।
२.      ऊँ महायोगिन्यै नमः।
३.      ऊँ सिद्धयोगिन्यै नमः ।
४.      ऊँ गणेश्यै नमः ।
५.      ऊँ प्रेताक्ष्यै नमः ।
६.      ऊँ डाकिन्यै नमः ।
७.      ऊँ काल्यै नमः ।
८.      ऊँ कालरात्र्यै नमः ।
९.      ऊँ निशाचर्यै नमः ।
१०.      ऊँ कंकर्य्यै नमः।
११.      ऊँ रौद्रवेताल्यै नमः।
१२.      ऊँ भूतल्यै नमः ।
१३.      ऊँ भूतडामर्य्यै नमः।
१४.      ऊँ ऊर्ध्वकेश्यै नमः।
१५.      ऊँ विरुपाक्ष्यै नमः।
१६.      ऊँ शुष्काम्यै नमः ।
१७.      ऊँ नरभोजिन्यै नमः।
१८.      ऊँ भट्टार्य्यै नमः।
१९.      ऊँ वीरभद्राय्यै नमः।
२०.      ऊँ ध्रूमाक्ष्यै नमः।
२१.      ऊँ  कलिप्रयाय्यै नमः ।
२२.      ऊँ राक्षस्यै नमः।
२३.      ऊँ घोररक्ताक्ष्यै नमः।
२४.      ऊँ विरुपाक्ष्यै नमः।
२५.      ऊँ भयंकायै नमः।
२६.      ऊँ चण्डिकायै नमः ।
२७.      ऊँ वीरकौमार्य्यै नमः।
२८.      ऊँ वाराह्यै नमः।
२९.      ऊँ मुण्डधारिण्यै नमः।
३०.      ऊँ सासूर्य्यै नमः।
३१.      ऊँ रोद्रक्षकारभाषिण्यै नमः।
३२.      ऊँ त्रिपुरान्तकायै नमः
३३.      ऊँ भैरवध्वंसिन्यै नमः।
३४.      ऊँ क्रोधदुमिख्यै नमः।
३५.      ऊँ प्रेतवाहिन्यै नमः।
३६.      ऊँ खट्वांग्यै नमः।
३७.      ऊँदीर्घलम्बोष्ठ्यै नमः।
३८.      ऊँ मालिन्यै नमः।
३९.      ऊँ मन्त्रयोगिन्यै नमः।
४०.      ऊँकालाग्निग्रहण्यै नमः।
४१.      ऊँ चत्र्यै नमः।
४२.      ऊँ कंकाल्यै नमः।
४३.      ऊँ भुवनेश्वर्य्यै नमः।
४४.      ऊँ कटक्यै नमः।
४५.      ऊँ काटिन्यै नमः।
४६.      ऊँ रौद्र् य्यै नमः।
४७.      ऊँ यमदूत्यै नमः।
४८.      ऊँ करालिन्यै नमः।
४९.      ऊँ घोराक्ष्यै नमः।
५०.      ऊँ कामुक्यै नमः।
५१.      ऊँ काकदृष्ट्यै नमः।
५२.      ऊँ अधोमुख्यै नमः।
५३.      ऊँ मुण्डधारिण्यै नमः।
५४.      ऊँ व्याध्यै नमः।
५५.      ऊँ किंकिण्यै नमः।
५६.      ऊँ प्रेतभक्षिण्यै नमः।
५७.      ऊँ कालरुपायै नमः।
५८.      ऊँ कामाख्यायै नमः।
५९.      ऊँ उष्ट्रिण्यै नमः।
६०.      ऊँ योगपीठायै नमः।
६१.      ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।
६२.      ऊँ एकवीरायै नमः।
६३.      ऊँ कालरात्र्यै नमः।
६४.      ऊँ पीठिकायै नमः।

              ।। इति चतुःषष्टियोगिन्यः।।
नोट— उक्त चौसठ नाममन्त्रों से पूजन करें। तथा होम समय नमः के पश्चात् स्वाहा लगाकर आहुति प्रदान करें।
                        ३. क्षेत्रपाल सूची

१.  ऊँ अजराय नमः।
२.  ऊँ आपकुम्भाय नमः।
३.  ऊँ इन्द्रस्तुतये नमः।
४.  ऊँ इडाचाराय नमः।
५.  ऊँ उक्तसंज्ञाय नमः।
६.  ऊँ उष्मादाय नमः।
७.  ऊँ ऋषिसूदनाय नमः।
८.  ऊँ ऋमुक्ताय नमः।
९.  ऊँलिप्तकेशायनमः।  
१०. ऊँ लिप्तकाय नमः।
११. ऊँ एकदंष्ट्रकाय नमः।
१२. ऊँ ऐरावताय नमः।
१३. ऊँ ओबन्धनाख्याय नमः।
१४. ऊँ ओशधीषाय नमः।
१५. ऊँ अंजनाय नमः।
१६. ऊँ अस्त्रवाराय नमः।
१७. ऊँ कवलाय नमः।
१८. ऊँ खरुखानलाय नमः।
१९. ऊँ गामुख्य नमः।
२०. ऊँ घटादाय नमः।
२१. ऊँ डमनसे नमः।
२२. ऊँचण्डवारणाय नमः।
२३. ऊँ घटोटोपाय नमः।
२४. ऊँ जटलाय नमः।
२५. ऊँ ज्ञंगीवाय नमः।
२६. ऊँ घण्टेश्वराय नमः।
२७. ऊँ टंकपाणये नमः।
२८. ऊँ गमबन्धनाय नमः।
२९. ऊँ डामराय नमः।
३०. ऊँ ढक्काराय नमः।
३१. ऊँ मणिमतये नमः।
३२. ऊँ तडिद्देहाय नमः।
३३. ऊँ स्थविराय नमः।
३४. ऊँ दन्तुराय नमः।
३५. ऊँ धनदाय नमः।
३६. ऊँ नागकर्णाय नमः।
३७. ऊँ प्रचण्डकाय नमः।
३८. ऊँ फट् कराय नमः।
३९. ऊँ वीरसंघाय नमः।
४०. ऊँ भृंगाय नमः।
४१. ऊँ मेघभासुराय नमः।
४२. ऊँ युगांताय नमः।
४३. ऊँ रोह्यवाय नमः।
४४. ऊँ लम्बोष्टाय नमः।
४५. ऊँ वसवाय नमः।
४६. ऊँ शुकनन्दाय नमः।
४७. ऊँ षडालाय नमः।
४८. ऊँ सुनाम्ने नमः।
४९. ऊँ हं ब्रुकाय नमः।
                                   । इति क्षेत्रपाल नामावलि।।

                                    ।। इति सप्तशती रहस्यम्।।

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