सोमवती अमावस्या(सोमारी अमावश)::पति वशीकरण::तान्त्रिक प्रयोग
किसी भी महीने की अमावस्या तिथि यदि सोमवार को पड़े तो
उसे सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसी भांति मंगलवार को होने पर भौमवती
अमावस्या कही जाती है। सामान्यतया दोनों व्रतों का एक जैसा ही प्रयोग(उपयोग)होता
है। शास्त्रीय वचन हैं कि इस दिन स्त्रियां व्रत रखें। प्रातः (यथासम्भव शीघ्र)
स्नानादि से निवृत्त होकर, समीप के अश्वत्थ वृक्ष (पीपल) के पास जाकर, उसके
मूलप्रान्त में भगवान विष्णु की यथोपलब्ध सामग्री (पंचोपचार-षोडशोपचारादि)से
विधिवत पूजा करे और अपने चिर सौभाग्य की कामना करे। पूजन के पश्चात् वृक्ष की एक
सौ आठ परिक्रमा करे। वृक्ष के पास परिक्रमा की सुविधा न हो तो वहीं खड़े होकर
स्वयं की दक्षिणावर्ती(क्लॉकवाइज) परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा क्रम में सूत्रवेष्ठन
का भी विधान है, यानी हल्दी में रंगा हुआ कच्चा सूता को वृक्ष के तने में लपेटना ।
परिक्रमा की गणना सिन्दूर की एक सौ आठ पुड़िया, पुष्प , सुपारी या सीधे करमाला पर
की जानी चाहिए।
घर आकर यथासम्भव फलाहार, दुग्धाहार या सात्विक अन्नाहार
करे। ध्यातव्य है कि चौबीस घंटों में सिर्फ एक बार अन्न लिया जाना भी पूर्णव्रत के
तुल्य ही है और किसी खास व्रत में तो अन्न लेने का आवश्यक विधान ही है। सोमारी
अमावश के व्रत में अरवा चावल का भात और दही का भोजन करने का विधान है। एक और बात
का ध्यान रखना अति आवश्यक है कि व्रती स्त्री के लिए उस दिन रुई और मूली का स्पर्श
भी सर्वदा त्याज्य है। इससे व्रतभंगदोष लगता है। दूसरी बात ध्यान में रखने की है
कि सेन्धा नमक ही प्रयोग किया जाय ।
यहां तक की बात तो प्रायः सर्वविदित है। किन्तु मैं यहां
एक विशेष बात की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ। तन्त्र के जानकार जानते हैं कि
तिथियों में अमावस्या का कितना महत्त्व है। मैं इस अवसर के तान्त्रिक प्रयोग की ओर
ध्यान दिलाना चाहता हूँ। पुरुष-वर्चस्व वाले युग में स्त्रियों की दशा दिनोंदिन
विगड़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं कि ये समस्या सिर्फ अनपढ़-गवार स्त्रियों के साथ है,
बल्कि पढ़ी-लिखी कामकाजी स्त्रियों के साथ भी लगभग वैसी ही स्थिति है। यह और कुछ
नहीं बल्कि कुत्थित पौरुष मनोविकृति का प्रतीक मात्र है। शास्त्र के ज्यादातर
नियम-मर्यादायें स्त्रियों पर थोपे गये हैं। पुरुष अपने को उससे सर्वदा मुक्त रखने
का प्रयास किया है। परिणामतः स्त्रियों पर अत्याचार निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
इस लधु आलेख के माध्यम से स्त्रियों की उसी मूल समस्या
का यत् किंचित समाधान देने का मेरा एक क्षुद्र प्रयास मात्र है। इसका प्रयोग बड़ी
सरलता से किया जा सकता है। विधि सामान्य सी है। ऊपर कहे गये बाकी सारे नियमों का
पालन यथावत करे। वस अतिरिक्त में इतना ही करना है कि पूजा की समाप्ति के बाद यानी
परिक्रमा से पूर्व आसपास देख कर स्वयं गिरा हुआ पीपल का एक पत्ता उठाले और उसे जल
से सिंचन कर,उस पर अपना और अपने पति का नाम अनार की डंठल (अभाव में चांदी के तार
से) अष्टगन्धचन्दन से लिख दे। नाम लिखने के बाद उसे मोड़कर ताबीज की तरह बनाकर,दूधिया
रंग के धागे से लपेट कर, वहीं जड़ के पास रख दे, जहां पूजा की थाली वगैरह रखी हुयी
हो। अब परिक्रमा प्रारम्भ करे। प्रत्येक परिक्रमा के साथ ऊँ श्री विष्णवे नमः मम पतिं वश्यं कुरु कुरु
स्वाहा—मन्त्र का उच्चारण करता रहे। इस प्रकार १०८
की संख्या पूरी
होनी चाहिए। परिक्रमा पूरी हो जाने के बाद पीपल में विराजमान विष्णु को मानसिक
प्रणाम करे और उस ताबीज को उठाले। घर आकर,कहीं सुरक्षित रख दे और अगले दिन उसे पति
के तकिये में छिपा दे।
ध्यान रहे- ये क्रिया
जितनी गोपनीय होगी,उतनी ही लाभदायक होगी। कम से कम पति को तो इस बात की जानकारी
नहीं ही दी जाय। इस प्रयोग को लागातार कई बार करना चाहिए—जब भी सोमारी अमावश का
संयोग मिले। दो-चार बार के प्रयोग से अद्भुत लाभ मिलता है। यह एक निरापद तान्त्रिक
क्रिया है और प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री इसे प्रयोग कर सकती है। क्यों कि पति को
अपने वस में रखना- हर स्त्री की कामना और इच्छा होती है। वस्तुतः यह उसका मूल
अधिकार भी है। अस्तु।
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