पप्पु कब पास होगा?
पप्पु के पास होने की चिन्ता उसकी मम्मी के साथ-साथ इधर कुछ दिनों से वटेसरकाका
को भी सताने लगी है। हालाँकि ये चिन्ता उसके सगे-शागिर्दों को भी कम नहीं है। सहयोगीजन भी
सदा चिन्तित ही रहते हैं। सबकी कोशिश हमेशा होती है कि किसी तरह ठेल-ठाल कर भी पप्पु
पास हो जाए। ट्यूशन भी खूब लेता है—मम्मी से भी, क्लासमेट से भी। हायर रैंक टीचर
की भी कोई कमी नहीं है। सहयोगी भी जान छिड़कते रहते हैं। पता नहीं उसके भाग्य खोटे
हैं या कर्म !
पास
होते-होते फेल के लिस्ट में चला जाता है।
इसी
बात की चर्चा लिए वटेसर काका मेरे घर में प्रवेश किए। आते ही चिन्ता ज़ाहिर की
उन्होंने — “ संयोग से
इस बार पप्पु पेयर का जुगाड़ बैठ गया था । दोनों एक दूजे के सहयोगी बनेंगे
परीक्षा-भवन में। इस बात की पूरी उम्मीद बन गयी थी कि इस बार पप्पु पास हो जायेगा।
मम्मी तो मिठाइयाँ भी मंगवाकर धर ली थी फ्रिज में। नौकरों को हिदायत भी दे दी थी
कि किस पैकेट में कितने लड्डू डालने हैं। किन्तु ऐन मौके पर राहु, केतु, शनिश्चर
सब एक ही साथ आ धमके और अपने साथ-साथ नये वाले पप्पु की भी नैया डुबो दी। नया वाला
पप्पु उतना बेबकूफ नहीं था। किसी तरह तैर-तूर कर निकल गया, परन्तु पुराना वाला
पप्पु तो पॉटी-पॉटी रट्ट लगाने लगा। खैरियत थी कि दाढ़ी वाले भाईजान ऐन
मौके पर आ गए। नहीं तो पता नहीं और क्या होता। हालाँकि सच्चाई ये है कि उनके आने न
आने से फर्क ही क्या पड़ना है ! आस-पड़ोस सब समझ गए हैं इतने
दिनों में कि पप्पु को कभी पास नहीं होना है। किन्तु दिक्कत ये है कि मम्मी इस बात
को मानने के लिए जरा भी राजी नहीं है। परीक्षा की घड़ी जब-जब आती है फॉर्म भरवा ही
देती है, किसी न किसी जुगाड़ से। बेचारा मेहनत खूब करता है—घर से बाहर तक। तेज
भागने के चक्कर में कई बार गिर भी पड़ता है। चतुर सुझान मीडिया वाले भी कम नहीं
हैं। नमक का भी लिहाज़ नहीं करते। चट फोटो शूट कर, खट से हाईलाईट कर देते हैं। अब भला तुम ही बताओ—मेहनती लड़का यदि भाग-दौड़
में गिर-पर जाए तो इसमें उसकी क्या गलती? ”
काका
द्वारा पप्पू की तरफदारी मुझसे सही न गयी। अतः तपाक से बोला— पता नहीं ये सूचना सही है या
अफवाह —
सुना हूँ कि मम्मी बहुत अच्छा ट्यूट करती है। जाने-माने ट्यूटर भी
बहाल कर रखी है, किन्तु मौका पाते ही होमवर्क छोड़ कर, पप्पू कभी किसी का सायकिल पंचर करने निकल पड़ता है, किसी के लालटेन में तेल के वजाय पानी भरने। आँख मारना तो इसकी पुरानी हरकत
है। न लिंग भेद है और न उम्र भेद। कभी भी किसी को आँखें मार देगा। कई बार तो एकदम
रंगे हाथ पकड़ा गया है। ऐसे में भला क्या सफाई देगी मम्मी या कि यार-दोस्त ! कभी-कभी
तो ऐन मौके पर बीमारी का बहाना बनाकर, छुट्टी मार देगा। इतना ही नहीं, होमवर्क में
तो हमेशा से कमजोर रहा है, यही कारण है कि भारत के
इतिहास-भूगोल का भी ठीक से पता नहीं है। किसी पुराने अनुभवी ने शायद इसीलिए कहा
होगा— हिस्ट्री ज्योग्राफी दोनों बेवफा, रात को रटो तो दिन को सफा। समझने वाली बात है
कि जिसे इतिहास-भूगोल का ही पता नहीं, उसे समाजशास्त्र,
राजनीति शास्त्र और धर्मशास्त्र की बातें कहाँ से समझ आयेगीं !
बॉटनी-जूलोजी तो और मुश्किल विषय है। अब ऐसे में आलू की खेती होती है या कि
फैक्ट्री में बनायी जाती है—यदि नहीं मालूम तो से बेचारे की
क्या गलती है !
पप्पू पास होने के लिए पैदा
ही नहीं हुआ है – इसे आप गांठ बाँध लें काकाजान। इसी में हम सबकी भलाई है।
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