गैस्ट्राइटिस ::
तन्त्रात्मक आयुर्वेदीय समाधान
वर्तमान
समय में गैस्ट्राइटिस (Gastritis) की बीमारी बिलकुल आम
हो गयी है। वस्तुतः ये इसका मेडिकल टर्म है। आमलोग इसे “ गैस” की बीमारी कहते हैं।
आरोग्य विज्ञान की दृष्टि से—
अवांछित वायु का विकृत स्वरुप में ऊर्ध्व वा अधो मार्ग से निष्कासित होते रहना ही
इस व्याधि का मुख्य लक्षण है। आधुनिक जीवनशैली ही मुख्यरुप से जिम्मेवार है इस
विकृति के लिए।
जिस अप्राकृतिक स्थिति में
हम आज जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उस स्थिति में गैस न बनना ही आश्चर्य है। बनना को
कोई आश्चर्य की बात ही नहीं है। न खाने-पीने की वस्तुएं शुद्ध हैं और न खाने-पीने
का तरीका व समय सही है।
सीटिंग कम्बोर्ड पर बैठ कर
शौच-निवृत्ति, खम्भाधारी परिधान (पैन्ट), खड़े-खड़े मूत्रत्याग, चलते-घूमते
बफेडीनर, बेड टी की लत, खाली पेट में बारबार चाय-कॉफी, कोलड्रिंग आदि लेना, फास्टफूट
की लत, अपराह्न(1.30-3.30) दिन का भोजन, रात में देर से शयन, प्रातः देर से जागरण,
मोबाइल-कम्प्यूटर पर निरन्तर खटर-पटर आदि अनेक बातें हैं, जो इस व्याधि के साथ-साथ
अन्य आधुनिक व्याधियों का खुला निमन्त्रण पत्र लिए खड़े हैं।
आधुनिक चिकित्सकों के पास सच
पूछें तो इसका कोई सही और निरापद उपचार नहीं है। “एसीलॉक (Ranitidine), Rabeprazole, Pantoprazole” जैसी घातक दवाइयों का खूब
चलन है। बाजारवादी-कमीशनखोरी व्यवस्था के हाथों बिके डॉक्टर ये कभी बताते भी नहीं
कि प्रचलित सभी “एन्टासीड ” कमोवेश कैंसरस
हैं। बहुत सी ऐसी दवाइयाँ जो विदेशों में बैन हैं, वो हमारे यहाँ धड़ल्ले से चल
रही हैं। अवांछित अंग्रेजी दवाइयों का अच्छा-खासा बाजार है हमारा देश।
भारतीय आरोग्यविज्ञान (आयुर्वेद)
का गला बरबरता पूर्वक घोंट दिया गया है। इसके विरुद्ध तरह-तरह के षड़यन्त्र रचे
जाते रहे हैं—पहले भी और अब भी। गुड़, भूरा, शक्कर, छोआ आदि का उपयोग न के बराबर
होता है और उसका स्थान आधुनिक मीठा जहर—चीनी ने ले लिया है।
ज्ञातव्य और ध्यातव्य है कि गन्ने
वा खजूर से बना गुड़ अपने आप में प्रबल एन्टासीड (गैसरोधी) है, जबकि चीनी भयंकर
गैस-फॉरमर । हमें चाहिए कि इस मृदु विष—चीनी का कम से कम प्रयोग करें और इसके स्थान
पर गुड़ सेवन की आदत डालें । दूसरी बात ये कि यथासम्भव जीवनशैली को सुधारने का
प्रयास करें। बाहरी विवशता को छोड़कर, डायनिंग टेबल और कम्बोर्ड के घरेलू इस्तेमाल
को बिलकुल बन्द करें। भोजन और शयन के समय के भारतीय शैली को अपनाने का प्रयास करें
और इस बहानेबाजी को ढाल न बनायें कि क्या करें,सब कोई तो ऐसे ही करता है...।
यहाँ एक विशेष प्रयोग सुझा
रहा हूँ, जो शतानुभूत है।
किसी ज्योतिषी से आप अपनी
जन्मराशि जान लें। वैसे भी आजकल राशिफल देखने-जानने का फैशन हो गया है। किन्तु
ध्यान रहे यहाँ मैं जन्मराशि की बात कर रहा हूँ, नाम राशि की नहीं।
किसी मंगलवार को ढाई किलो
गुड़ और सौ ग्राम गोलमिर्च (कालीमिर्च) खरीद कर ले आवें और किसी मन्त्राभ्यासी से
कहें कि इसे मंगल के तान्त्रिक मन्त्र से विहित संख्या में अभिमन्त्रित कर दें। ध्यातव्य
है कि मंगल की विहित संख्या दस हजार है। इस क्रिया से आपकी तन्त्रात्मक औषधि तैयार
हो गयी।
अब आपको इस अभिमन्त्रित गुड़
और गोलमिर्च का नित्य प्रातः बिलकुल खाली पेट में सेवन करना है। गुड़ की मात्रा
सबके लिए करीब पचास ग्राम ही होगी, किन्तु गोलमिर्च की मात्रा मेष, वृष, मिथुन, कर्क,
सिंह और कन्या राशि वालों के लिए छः दाने और तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और
मीन राशि वालों के लिए आठ दाने होगी। एक और बात का सख्ती से पालन करें कि इसे
धीरे-धीरे चबाकर खायें तथा खाने के बाद पन्द्रह-बीस मिनट बाद ही पानी या कुछ और
सेवन करें। ध्यान देने की बात है कि गैस ज्यादा बनती हों जिन्हें, उन्हें गोलमिर्च
का तीखापन सप्ताह भर तक बहुत ही असह्य होगा, किन्तु उस तकलीफ को सहन करें।
धीरे-धीरे तीखापन के अभ्यासी हो जायेंगे या कहें तीखापन कम हो जायेगा, क्योंकि ये
तीखापन स्वाभाविक नहीं, बल्कि आपकी बीमारी की मात्रा का सूचक है।
इस प्रयोग को किसी मंगलवार
से ही शुरु करना है और आगामी तीन महीने तक लागातार जारी रखना है। तीन महीने का ये
प्रयोग काफी राहत देगा। आप चाहें तो आगे भी जारी रख सकते हैं। हालाँकि खाली पेट
में गुड़ का सेवन अपने आप में गैस रोग निवारक है, किन्तु इस तन्त्रात्मक प्रयोग का
अद्भुत लाभ है। अस्तु।
Comments
Post a Comment