सोढ़नदास की हज़ामत


 


 

सोढ़नदास की हज़ामत के बारे में कुछ लेटेस्ट जानकारी रखते हो बबुआ ?”— वटेसरकाका का हर सवाल कुछ ऐसा होता है मानों पोखर के बिलकुल स्थिर पानी में बड़ा सा ढेला फेंक दिया गया हो। मेरे विचारों के पोखर में भी कुछ वैसा ही हुआ, उनका ये सवाल सुनकर। रात में ही तय कर लिया था कि अगली सुबह नित्यक्रिया से निपटकर, सीधे पूजा-घर में जाऊँगा और कुछ ध्यान-साधना का अभ्यास शुरु करुँगा, क्योंकि सोचते-सोचते समय बीता जा रहा है। सबकुछ हो रहा है, पर ध्यान नहीं हो पा रहा है। सच में ये दुनिया का सबसे कठिन काम है। टमटम के घोड़े की तरह आजीवन दौड़ते रहना—तन से कहीं ज्यादा रफ़्तार से मन की दौड़ चलती है। तन थक-हारकर मान भी जाए, पर मन भला क्यों माने !

काका के सवाल पर मैंने बे-मन से ही सवाल किया— मैं तो सोढ़नदास के बारे में ही नहीं जानता, फिर उनके हज़ामत के बारे में क्या बताऊँ। आप ही कुछ बतलायें।

काका तो यह चाहते ही थे। उन्हें किसी सवाल के जवाब की जरुरत भरसक नहीं होती, बल्कि सवालों के गलियारे से झांककर, जवाबों की सड़क पर दौड़ लगाना होता है। मैंने कहा और वे दौड़ने लगे— तुम भला क्यों जानोगे ऐसी बातों को, ऐसी घटनाओं को। जानने-जनाने को तो मैं हूँ ही। खैर,कोई बात नहीं। नहीं जानते तो मैं जनाये देता हूँ। किन्तु सोढ़नदास के बारे में कुछ बतलाने से पहले आज का एक ताजा वाकया सुनाता हूँ।

आप भी वड़े विचित्र हैं काका। बात निकाली सोढ़नदास के हज़ामत की और वाकया सुनाने लगे कुछ और।

काका झल्लाये— तुम नवयुवकों में यही तो खामी है, धैर्य नाम की चीज ही नहीं है जरा भी। हो सकता है कि इस वाकया-बखान में ही सवाल का जवाब मिल जाए, जैसेकि आजकल गेसपेपर में ही आने वाली परीक्षा का कोश्चन छिपा होता है।  

तो जल्दी से सुना डालिए आज वाला वाकया।

सब्जी मार्केट में आज एक पुराना जजमान मिल गया। कहने लगा चलिए गुरुजी ! आपको आज कॉफी पिलाता हूँ। बड़ी भयंकर ठंढ है।चाय की तलब तो मुझे भी हो रही थी, सो चल दिया उसके साथ। कॉफीकॉर्नर में हम दोनों बैठ गए और पुरानी बातें निकल पड़ी। टेबल पर वाजू की कुर्सियाँ खाली पाकर एक और युवक आबैठा । एकाएक मेरा ध्यान उनके सिर पर गया, जो पीछे से तो बिलकुल नुचा-चुथा था, पर आगे कुछ-कुछ ज़ुल्फी बरकरार थी। मैंने उसे देखते ही पूछा—कैसी गहरी नींद में सोये थे बबुआ ! कि पीछे का सारा बाल चूहा कुतर लिया? कितना भद्दा लग रहा है। तुम्हें चाहिए था कि पहले सैलून में जाकर बाकी के बाल भी मुड़वा कर ठीक कराते और तुम हो कि यहाँ कॉपी पीने चले आये । ठंढ में कॉफी की इतनी ही तलब थी तो कम से कम सिर पर तौलिया-गमछा लपेट लेते।

मैं कुछ-कुछ समझ गया कि मामला क्या है। किन्तु काका के श्रीमुख से आगे का वाकया सुनने का मज़ा ही कुछ और है। अतः कुछ बोला नहीं। काका ने आगे कहा— जमाना बहुत खराब है बबुआ! मैं तो उसके भले की बात कहा, किन्तु वो कॉफी का प्याला टेबल पर पटक कर, तपाक से खड़ा हो गया, मानों घोड़े की पीठ पर सवार होने की तैयारी में हो। मेरी ओर अँगुली नचा-नचा कर बकने लगा— का हो बुढ़ऊँ ! पहिले-पहिले शहर में निकले हो का ? तुम्हें ये नहीं मालूम  कि मॉर्डन सेलेब्रेटी कट हेयर स्टाइल है ये? आजकल यही हेयर स्लाइल हिट है सब जगह। उसकी रोश भरे बदतमीज़ी पर मेरे जजमान भी सकपका गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें। अतः जल्दी से कॉफी सुड़क कर, मेरा हाथ पकड़े बाहर निकल गए। बाहर आकर उन्होंने भी वही बात कही, जो उस युवक ने कहा था। फ़र्क सिर्फ कहने के लहज़े का था—उसने पत्थर मारने वाले अन्दाज़ में कहा था, इन्होंने बुके देने वाले अन्दाज़ में कहा।

मुस्कुराते हुए मैंने कहा—मैं भी यही कहूँगा काका, जो उन दोनों ने कहा।

काका फिर झल्लाये— अब तुम जो कहो, मैं तो यही कहूँगा कि ये सोढ़नदास वाला हज़ामत है। एक समय की बात है, एक पंडितजी सिर मुड़ाये हुए राज दरबार में पहुँचे। राजा ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि सोढ़नदास गुजर गए हैं, इसीलिए सिर मुड़ाया हूँ। राजा ने तुरत अपने हज़ाम को बुलाया और खुद भी सिर मुड़ा लिए। और जब राजा ने ही मुड़ा लिया, तो बाकी के दरबारी क्यों चूकते। एक-एककर सबने सिर मुड़वा लिया।  

ये तो बड़ा अजीब हुआ काका।

काका ने सिर हिलाया—अजीब तो अब होगा, अभी हुआ कहाँ है। दोपहर विश्राम के लिए राजा रनिवास में गए। घुँटा हुआ सिर देख कर रानी चौंकी— अरे ये क्या, आपने सिर क्यों मुड़ा लिया? किसी सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की खबर मिली क्या?’ राजा ने बतलाया कि सोढ़नदास का स्वर्गवास हो गया है। पंडितजी से ये जानकारी मिली। रानी काफी समझदार थी। वैसे भी रानियाँ समझदार हुआ ही करती हैं। चट बुलावा भेजी पंडितजी को । सोढ़नदास के बारे में रानी द्वारा पूछा जाने पर पंडितजी ने कहा कि वे नहीं जानते कि कौन हैं। सुबह नदी किनारे शौच के लिए गया था तो नगर के धोबी को देखा माथा मुड़ाये हुए। पूछने पर उसने ही कहा था बेचारे सोढ़नदास का इन्तकाल हो गया। रानी रानी होती है। तुरत धोबी को बुलावा भेजी। रानी के असमय बुलाहट पर बेचारा धोबी घबरा गया। दौड़ा-दौड़ा रनिवास पहुँचा और सिर मुड़ाने का कारण बताया— मैं आज बहुत दुःखी हूँ रानी साहिबा ! मेरा इकलौता गधा सोढ़नदास कल रात ही मर गया। वेटे की तरह उसे पाला- पोसा था। पंडित लोग कहा करते हैं कि पालतू प्राणी को भी मरने पर कफ़न-मिट्टी देना चाहिए। सो मैंने भी वही किया। कोई गुस्ताखी हुयी हो तो मुझे माफ करें।  धोबी की बात सुन पंडितजी मन ही मन जल-भुन गए, किन्तु राजा-रानी के सामने क्या कहते।  

मेरी हँसी रोके नहीं रुक रही थी—सोढ़नदास ने पूरे दरबार का हज़ामत बनवा दिया। यही कहते हैं—बिना सोचे-समझे, देखा-देखी कुछ का कुछ कर बैठना। बुद्धि-विवेक को बन्धक रख दिया है आजकल के लोगों ने। मायानगरी से निकलने वाला हर भोड़ापन लोगों के लिए मॉर्डन फैशन बन जाता है। नचनियाँ-बजनियाँ  नंगे घूमे तो सभ्य घर की बहू-वेटियाँ भी नंगी घूमने लगे। भाड़-भेड़ुए जो करने लगे, युवक भी देखा-देखी वही करने लगते हैं। सुना है कि पश्चिम वालों ने एक न्यूडकॉलनी बसा रखी है। सोच-विचार, सभ्यता-संस्कृति से कोई मतलब नहीं। हम ये भी नहीं विचारते कि उन्हें अंग प्रदर्शन के लिए ही पैसा मिलता है और हम पैसा गंवाकर अपना अंग उखार रहे हैं मॉर्डनीटी के नाम पर। क्या होता जा रहा है हमारी समझ-बूझ का—टी.वी.पर गोरेपन वाली क्रीम का विज्ञापन देख कर भैंसें भी पोतने लग जा रही हैं। अब सोचो जरा जीवन भर क्रीम पोतने पर वो क्या गोरी हो जायेगी? दाग-धब्बे मिटाने वाली,जवानी बरकरार रखने वाली एक से एक बेवकूफी भरे विज्ञापन देखकर सिर भन्ना उठता है। मजे की बात तो ये है कि औरत की अधनंगी तसवीर के बिना ये विज्ञापन शोभते भी नहीं। और ये बददिमाग औरतें हैं कि खुद को नंगा करने में तत्परता दिखा रही हैं—नंगई और हुड़दंगई को ही मॉर्डनीटी माना जा रहा है।

काका की बातें सोचने पर विवश करती हैं,वशर्ते कि इसी हिसाब से और लोग भी सोचें। देखा-देखी, दिखावे से बचने की कोशिश करें।

        

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