लवेरिया वायरस का टीका


 




अखवारों के इयरपैनल पर छपने वाले मनमौजी सुविचारों की तरह वटेसरकाका के रोज के सवालों में आज का सवाल जरा जटिल लगा मुझे— सबसे घातक बीमारी कौन सी है और वो वैकटीरियल है या वायरल? ”

हमेशा की तरह मैं आज भी घुटने टेक दिया उनके सवालों के आगे। वैसे भी उनके श्रीमुख से जवाब सुनने में जो मज़ा है, वो खुद से जवाब देने में भला कहाँ !

हाँ, इतना जरुर कहा— किसी जमाने में टी.बी., हैजा, प्लेग घातक बीमारी हुआ करती थी, फिर सिफलिस, गनोरिया ने जगह बना लिया। उसके बाद कैन्सर आया, जो अभी भी लगभग लाइलाज ही बना हुआ है। किन्तु अब तो चीन के बुहान  से आया हुआ कोरोना ही सबसे घातक माना जा रहा है। अकेले इस बीमारी ने साढ़े नौ करोड़ लोगों को अपने चपेट में ले लिया, फिर भी जाने का नाम नहीं ले रहा है। बीस लाख के करीब मौतें हो गयी अबतक...।

मेरी बात को बीच में ही काटते हुए काका कहने लगे— कोरोना की घातकता अपनी जगह पर है, किन्तु तुम्हें नहीं पता, दुनिया की सबसे घातक बीमारी लवेरिया है, जो  वायरल है कि वैक्टीरियल या कुछ और किस्म के विषाणुओं से फैलता है, अभी तक ठीक से पता नहीं लगा है। कोरोना तो निकट सम्पर्क से संक्रमित होता है,किन्तु लवेरिया दुनिया के किसी कोने में बैठे हुए दो व्यक्तियों के बीच संक्रमित हो जाता है। इस कारण इसे घातक बीमारी की सूची में सबसे ऊपर स्थान मिलना चाहिए। मोबाइल और सोशलमीडिया के विभिन्न स्रोत इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। हाँ, इतनी राहत है कि दो विपरीत लिंगी होना इसकी पहली और आँखिरी शर्त है। तुलसीबाबा ने बहुत पहले ही एक लाइन लिखी थी—नारी नयनशर काहु न लागा...। क्योंकि वो खुद भी इस बीमारी के शिकार हुए थे। उनसे भी पहले सूरदास को इस बीमारी का शिकार होना पड़ा था। विल्वमंगल से सूरदास बनने के पीछे का यही इतिहास रहा है। पुराने लोगों ने इसपर काफी शोध किया है। राजा भतृहरी ने तो धिक्तां च तां च मदनं च इमां च मां च...कहते हुए गृह-त्याग कर दिया और उससे भी पहले, भोलेनाथ तो इतने कुपित हुए कि इस बीमारी के कर्ता-धर्ता—कामदेव को ही भस्म कर डाले। बीमारी के स्रोत को तुलसी ने ठीक से समझा—आँखों के माध्यम से ही ये बीमारी शरीर में घुसती है और क्षण भर में ही अच्छे-अच्छों का हुलिया बिगाड़ देती है। पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं को कामज्वर हुआ करता था, जिसका उपचार चतुर वैद्य लोग किया करते थे और राज-कृपा से मालोमाल हो जाया करते थे। शायद तुम्हें पता न हो— ध्वजभंग और ध्वजाभंग उन दिनों की अहं समस्या थी। एक की रक्षा प्रबुद्ध भिषगाचार्य करते थे और दूसरी समस्या के निवारण के लिए योग्य सेनापति बहाल किये जाते थे। हस्तिनापुर नरेश शान्तनु तो सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। उनकी काम-पिपासा ने महाभारत का बीज बो दिया। खैर, इतिहास से सबक कोई लेता कहाँ है, फिर भी मुझे ये चिन्ता सता रही है कि आजकल ये बीमारी कुछ दूसरे ही तरह से पनप रही है समाज में । लगता है इसका भी न्यू जेनेरेशन क्रियेट हो गया है, जिसके ज़द में ज्यादातर टीनेजर आ रहे हैं। कल ही का अखबार पढ़ रहा था—एक नौंवीं क्लास का विद्यार्थी लवज़िहाद के चक्कर में फाँसी लगा लिया। मजे की बात ये है कि फाँसी लगाने का लाइव वीडियो शेयर किया उसने अपने गर्लफ्रैंड को, जिसने औरों को घटना की जानकारी दी। तुम जानते ही हो कि आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो रहा है—मींटिंग-सीटिंग से लेकर स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तक । जिन बच्चों को शू-शू-छी-छी का भी सऊर नहीं उनकी कक्षाओं का भी ऑनलाइन कोरम पूरा हो रहा है—काबिल स्कूल प्रशासन द्वारा अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में। गार्जीयन भी खुश हैं कि बच्चा पढ़ रहा है। हद हो गयी लूट और मूर्खता की। लव-स्टोरी से लेकर मर्डर-मिस्ट्री तक सब साल्भ हो रहे हैं ऑनलाइन ही। ये लवेरिया की ऐसी बीमारी लगी है, जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं।

बात आप बिलकुल सही कह रहे हैं काका—नाभी सूखते-सूखते लव हो जा रहा है डिजीटल दुनिया में।

काका ने हामी भरी— लव और लवज़िहाद ही हो सकता है बबुआ ! प्रेम नहीं। डिजिटल दुनिया में बहुत कुछ सुलभ हो गया है—नंगापन, भोंड़ापन, चोरी-सीनाजोरी, झूठ-फरेब, मारकाट, हत्या, आत्महत्या सबकी फ्री-ऑफ-कॉस्ट ऑनलाइन ट्रेनिंग मिल जा रही है। लवस्टोरी की  पर्फेक्ट ट्रेनिंग के लिए तो बॉलीउड, हॉलीउड, टॉलीउड, डॉलीउड सब हैं ही।

आँखिर इसका उपाय क्या हो सकता है काका?

लवेरिया के टीका पर मैंने बहुत शोध किया और अन्ततः यही पाया कि इसका पर्फेक्ट वैक्सीन इज़ाद करना असम्भव सा है। हाँ, बुनियादी एहतियात के तौर पर एक काम किया जा सकता है—पैरेन्टल कॉरेनटाइन सिस्टम से थोड़ा-बहुत काबू पाया जा सकता है। पुराने पैटर्न की खज़ूर वाली छड़ी बच्चों के पीठ पर समय-समय पर पड़ती रहे तो कुछ-कुछ सेनेटाइजेशन होता रहेगा बॉडी का और बॉडी लैंगुवेज़ भी सुधर जायेगा।

ये तो सही कह रहे हैं काका, किन्तु आजकल के बच्चे सुनते कहाँ हैं, जरा सी गार्जीयनी दिखाओ तो चट घर से भाग खड़े होते हैं, ट्रेन के नीचे सोने चले जाते हैं या शू-साइड के ख्याल से नस काटने लगते हैं। और भी तरह-तरह की धमकियाँ देने लगते हैं माँ-बाप को।

दरअसल हमारी गार्जीयनी-मेथड भी मॉर्डन हो गया है। शुरु में इतना लाढ़-प्यार कर देते हैं कि होश सम्भालते-सम्भालते बच्चे बिगड़ैल टट्टु हो जाते हैं और फिर पुट्ठे पर हाथ ही नहीं रखने देते। जब तक हम सम्भलते हैं, तब तक मामला हाथ से निकल चुका होता है। पहले स्कूलों में भी जम कर धुनाई होती थी, मुर्गे बनाये जाते थे, उठक-बैठक होती थी। अब तो ये सब चाइड्स-टॉर्चर के अन्दर आ गया है। गुरुजी भी अब सरजीहो गए हैं, जिनके पास सर छोड़कर, सिर्फ धड़ ही है। पश्चिम की देखा-देखी तरह-तरह के नियम-कानून बना दिए गये हैं, जो बच्चों को शिष्टाचार से बहुत दूर कर दिए हैं। ये शूट-बूट-टाई वाले स्कूल बोरियों से मार्किंग उझलते हैं—नब्बे-पन्चानब्बे प्रतिशत तक नम्बर दिए जाते हैं। इन स्कूलों में शिष्ट-योग्य नागरिक कम, पढ़ने-लिखने वाली मशीनें ज्यादा बनायी जाती हैं। शिष्टाचार तो घर-परिवार में भी बहुत कम ही देखने को मिलता है। फिर स्कूलों में भला क्या मिलेगा ! हम खुद शिष्ट होना नहीं चाहते और दूसरों को शिष्ट देखना चाहते हैं। ऐसे में एकतरफा काम कैसे चलेगा !  

आपकी बातें तो सही हैं काका, किन्तु आँखिर इसका हल क्या हो सकता है?

मैंने कहा न, सबसे पहले शिक्षा का स्वरुप बदलना होगा। योग्य गुरुओं की मण्डली तैयार करनी होगी। गुरुकुल की पुनः स्थापना करनी होगी। गार्जीयनी का तरीका भी बदलना होगा। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सिर्फ स्लोगन बन कर न रह जाए। लड़कियों के प्रति माँ-बाप का सोच बदलना होगा। बेटे-बेटी में भेद करेंगे, कन्या भ्रूणहत्या करेंगे, बेटे के विवाह में मुंहमांगी दहेज का ख्वाब देखेंगे, बेटियों पर अंकुश लगायेंगे और बेटों को खुले सांढ़ की तरह छुट्टा छोड़ देंगे, तो इसकी-उसकी खेती में मुंह मारेंगे ही वे और लवेरिया का संक्रमण होते ही रहेगा। अतः सबसे पहले प्रौढ़ पीढ़ी को समझना होगा, फिर युवाओं को समझाना होगा और उसके साथ ही किशोरों पर कठोर नियन्त्रण रखना होगा। अन्यथा पछुआ वयार में सबकुछ उड़कर प्रशान्त महासागर की गहरी खाई में जा डूबेगा।

सिर झुकाये मैं, काका की बातों पर विचार करने लगा। आप भी कुछ विचारें। शायद बात बन जाय। लवेरिया का टीका घर-घर पहुँच जाए और जब तक न पहुँचे तबतक प्रीकॉशनमॉस्क का इस्तेमाल जरुर करें। जयरामजी।

 

         


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