राम नाम का स्टार्टअप

 

 



राम नाम का स्टार्टअप

          वटेसरकाका छोटी-मोटी बौद्धिक समस्याओं से सदा घिरे रहते हैं। उनका मानना है कि बौद्धिकता एक मानसिक बीमारी है, जिसपर शोध करने के लिए अभी तक किसी मनोवैज्ञानिक का ध्यान नहीं गया। इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय है—अपने से बाहर की मत सोचो।  साधु-सन्त जिसे स्व-अर्थ की बात कहते हैं, उसे ही नये जमाने के लोग स्वार्थ कहने लगे हैं। स्वार्थवादी लोग भी तो यही करते हैं—सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं। शास्त्र कहते हैं कि अपने से बाहर कुछ है ही नहीं। जो भी है हमारे भीतर ही है। फिर बाहर की बात क्यों विचारें ! किन्तु इस स्व-अर्थ और स्वार्थ का व्याकरण भला कौन समझे-समझाये  !

अखबार का एक पन्ना लिए काका का पदार्पण हुआ और इसी बात पर चर्चा निकल गयी। कहने लगे— प्रधान सेवकजी कहते हैं कि जहाँ चाह वहाँ राह। लोकल को वोकल बनाओ। रोजगार ढूढ़ो नहीं, रोजगार देने योग्य बनो। खुद का स्टार्टअप शुरु करो – उनके इन संदेशों पर कई लोगों ने अमल-पहल किया। कई लोग मालामाल भी हो गए थोड़े ही दिनों में।

सो तो है। कोशिश करने वाले को देर-सबेर सफलता जरुर मिलती है। किन्तु मेरी उत्सुकता आपकी बातों से ज्यादा आपके हाथ में शोभित इस अखबार के प्रति अधिक है,क्योंकि आप तो आदतन अखबार पढ़ते नहीं। लगता है फिर आज कुछ खास खबर है, जिसे सुनाने आए हैं।

काका ने हामी भरी— अखबार वालों की नज़र में खबरें तो हमेशा खास ही हुआ करती है। खास न हो तो छपे कैसे ! खबरों को खास बनाने की खासियत अखबार वालों में ही है। वो जिसे जब चाहें खास बना दें, जिसे चाहें कूड़ेदान के हवाले कर दें । पिछले साल खबरियों का ज्यादातर समय एक अभिनेता की हत्या का रहस्य खोलने-खुलवाने में ही निकल गया । रहस्य खुला-न खुला, ये अलग बात है,किन्तु खबरियों की दुकानें खूब खुली और चली। लगा कि अब फिल्मी दुनिया से सारी गन्दगी साफ हो जायेगी इसी मुद्दे के सहारे, किन्तु गंगा-सफाई अभियान की तरह ये सफाई अभियान भी वरमूदा त्रिकोण में गिरे जहाज की तरह गुम हो गया। पंख फड़फड़ाता हुआ तोता फिर पिंजरे में कैद हो गया।

इसी सम्बन्ध में आज फिर कुछ छपा है क्या?— मेरे पूछने पर काका ने कहा— नहीं बबुआ नहीं। इसे तो अगले चुनाव का मुद्दा बनने के लिए सहेज कर रख लिया गया है। राममन्दिर का अहम मुद्दा खतम हो गया। किन्तु क्या राम भी कभी खतम होने वाले मुद्दों में है? राम को कई तरह से भुनाया जा सकता है—आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और नहीं तो राजनैतिक रीति से। बस, भुनाने वाले के पास हुनर होना चाहिए। राम तो घट-घट वासी ठहरे। चोर के राम और संत के राम अलग-अलग थोड़े जो हैं। राम का नाम लेकर भवसागर तैरने की बात कही जाती है, तो राम नाम का स्टार्टअप क्यों नहीं हो सकता?  

आज की खबर यही है कि कुछ बेरोजगारों ने राम नाम का स्टार्टअप शुरु किया है।

            ये तो बड़ी अच्छी खबर है काका। किसी राम-भक्त ने ही ऐसा पुण्यकारी काम किया होगा?

            काका ने सिर हिलाया— यही तो विचारने वाली बात है कि स्टार्टअप शुरु करने वाला वो शक्स रामभक्त है या राष्ट्रभक्त या प्रधान सेवक का संदेश-पालक ! किन्तु मैं पूरे य़कीन के साथ कह सकता हूँ कि वो इन तीनों में कुछ भी नहीं है। वो सिर्फ पेट-पालक है, जिसने रोजगार बना लिया—बाकायदा टीमवर्क के तहत। तुम जानते ही हो कि राम मन्दिर बनने का काम शुरु हो गया है। देश, प्रदेश, विदेश तक जोर-शोर से धन-जुटाओ अभियान जारी है। समाज-सेवी राम-भक्त बड़े उत्साह से आगे आ रहे हैं दान-धर्म में। इसी बहाने घोटालेबाजों और सेलटैक्स-इनटैक्स के खिलाड़ियों का भी काम निकल जा रहा है। धन पर थोड़े लिखा होता है—काला या सफेद। और कहीं दान की बछिया का सींग-पूछ देखा जाता है ! कुल मिलाकर कहें तो अकूत धनराशि इकट्ठी हो रही है। इस सुनहरे अवसर पर कुछ ऐसे राम-भक्तों की टोली भी घूम रही है, जिसे न राम से वास्ता है और न राममन्दिर से। बस वो तो अपना स्टार्टअप लॉन्च किया है—राम मन्दिर निर्माण हेतु घूम-घूम कर धन संग्रह कर रहा है। निर्माण-समिति वालों ने जनता और प्रशासन को अगाह किया है। अब भला चन्दा उगाही के लिए भी आईकार्ड निर्गत किया जाए ! और क्या पता पासपोर्ट-वीज़ा नकली बन सकते हैं, नकली सर्टिफिकेट पर सरकारी नौकरी की जा सकती है, तो आईकार्ड नकली बनने में देर ही कितनी लगनी है डिजिटल इण्डिया में !

            ये तो अपने-अपने विचारों का फ़र्क है काका। सतोगुणी हमेशा सत्व की बातें करेगा, रजोगुणी द्वन्द्व में रहेगा और तमोगुणी सदा दुष्ट-वृत्ति में संलिप्त रहेगा।  किन्तु सवाल ये है कि कहीं आपका मन भी डोलने तो नहीं लगा है—राम नाम का कोई स्टार्टअप चालू करने के लिए?

            काका मेरा मुंह देखने लगे।



     

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