लॉकडाउन फेकडाउन
रेलमठेल
ऐन कोतवाली चौराहे पर ही
वटेसरकाका की मुठभेड़ हो गयी एक पुलिस अधिकारी से। शायद उसका नया-नया ट्रान्सफर
हुआ था शहर में, इसलिए वटेसरकाका के फक्कड़ानेपन से माकूल नहीं था।
बात सिर्फ इतनी ही थी कि
काका का गलमुच्छा नाक से आधईंच नीचे सरक आया था। कर्मठ-ईमानदार अधिकारी के लिए इतना
ही नुख्ता काफी था नियम-कानून उलंधन के लिए। मगही की एक लोकोक्ति है—माछी खोजे
घाव, दुश्मन खोजे दाव। इसी अन्दाज में पुलिसवाले हमेशा दाव खोजते रहते हैं— कुछ
उगाही के लिए। चट से 200रु. का फाइन कस दिया और नहीं अदा करने पर लालघर का रास्ता बतलाने
लगा।
सोचा होगा कि आम लोगों की
तरह ये भी आरजू-मिन्नत करेगा, मेला के भैंस की तरह मोल-जोल करेगा और अन्ततः 50 रु.
पर समझौता हो ही जायेगा। किन्तु काका तो अधेला देने से भी साफ मुकर गए और उल्टे
सवाल कर वैठे — “ आठ तह वाला गलमुच्छा लपेटने से वैसे ही ऑक्सीजन-लेबल
80-85 होने लगता है, ऐसे में राहत की सांस लेना क्या गुनाह है साहब ! जबकि ऑरीजिनल ऑक्सीजन का ब्लैकमारकेटिंग नहीं होता और न अस्पतालों के सिलिंडरों
में कैद किया जा सकता है। कतरे-कतरे सांस के लिए तड़पते जरुरतमन्दों की कितनी भरपाई
हो रही है, इससे सभी वाकिफ हैं! दूसरी बात मैं ये जानना
चाहता हूँ कि सुबह 7 से 11 बजे तक क्या कोरोना रेस्टमोड में रहता है या पिकनिक
मनाने हिल स्टेशनों पर चला जाता है, जो इतना रेलमठेल है बाजार में? मुझे तो यही लगता है कि कोरोना सिर्फ अखबारों में है, चैनलों पर है या
फिर अस्पतालों में है या श्मशानघाटों पर या गंगा की धारा में। जो धैर्य पूर्वक भगवान
भरोसे घर में बैठे हैं, घरेलू नुस्खों से काम चला रहे हैं, वो ज्यादा सुरक्षित
हैं। भयभीत होकर डॉक्टर- अस्पताल के चक्कर में पड़े, वो फँसे और गए काम से। मजे की
बात ये है कि सड़क-बाजार की घक्कामुक्की में कोरोना को घुसने ही कौन देता है। ‘एसेन्सियल आइटम’ - ‘शॉर्टटाईम मार्केटिंग पीरियड’ के दौर में सब आपाधापी में हैं। कोई ऑक्सीजन-सिलेन्डर लूट रहा है, कोई
एम्पुल-वायल का रेपर बदलने में लगा है। कोई
कफन लूटने में लगा है, कोई लकड़ियाँ। दुकानदार सामानों की किल्लत बता कर, लूटने
में लगे हैं, प्रशासन अपने अन्दाज में लूट मचाये हुए है। शटरडाउन है लॉकडाउन
प्रोटोकॉल के तहत और अन्दर गहमागहमी है सभी दुकानों में। आम आदमी के लिए
बारात-विवाह में 20 से ज्यादा एलाउड नहीं है और रशूकदारों के यहाँ ‘वारबालायें’ थिरक रही है सारी रात। इस फेकडाउन
में आपही लोगों की तो चाँदी है साहब । जी भर कर उगाही कर लो। पता नहीं फिर तीसरी
लहर में आप भी रहें न रहें भला कौन जाने ! इस बेशकीमती वर्दी
को पाने के लिए कितना मश्क्कत किया होगा आपने और आपके बाबूजी भी। कुछ खेत-वारी भी बिका
होगा, माँ-बीबी के गहने गिरवी रखे गए
होंगे— इस वर्दी को खरीदने के लिए। आँखिर इन सब की भरपाई तो करनी है न । और रही
बात वो लालघर की, तो वो भी आपही लोगों के वदौलत आबाद है साहब । आप न होते तो लालघरों
में इतनी भीड़ न होती और न अदालती भैंसों को जुगाली करने का इतना मौका ही मिलता। दरअसल
उनकी बेहतरीन परवरिश़ का जिम्मा भी आपही लोगों पर है। आपकी बड़ी कृपा है देश और
देशवासियों पर। संविधान की मर्यादा का अनुपालन और लोकसेवा का शपथ लेते हो साहब,
किन्तु महज सरकारी सेवक या कहो सत्तारुढ़ पार्टी के सेवक बनकर रह जाते हो। जनता की
सेवा तो यही है तुम्हारी कि बात-बात में वर्दी का धौंस दिखाते हो। किन्तु हाँ,
बीबी की सेवा मजे से करते हो। नये फ्लेवर वाला डिस और नये डिजाइन के ड्रेस मेटेरियल
ऑनलाइन ऑडर करके... । ”
अचानक मुझ पर नजर पड़ते ही, हाथ
के इशारे से पास बुलाते हुए काका ने कहा— “ आओ बबुआ !
जरा तुम भी परिचय कर लो इलाके में आए नये साहब से। ”
मैं पास पहुँचा, तब तक पुलिस
अधिकारी काका की कलाई छोड़ चुका था और कभी मेरी ओर कभी काका की ओर भौचंकी निगाहें
फेर रहा था। शायद उसे जीवन में पहली बार ऐसे धृष्ट अपराधी से पाला पड़ा हो जो घोषित
लॉकडाउन में मुखौटा हटाकर, ओपेन एयर में ऑक्सीजन ले रहा हो और लोकसेवक से जवाब तलब
रहा हो।
काश ! हम सभी वटेसरकाका का अनुशरण करते। निज क्षुद्र स्वार्थ के चक्कर में रिश्वत,
कालाबाजारी, भष्टाचार की आग में आहुति डालने के वजाय, योग्य नागरिक के कर्तव्य का
पालन करते, जन-प्रतिनिधि और लोक-सेवक से हिसाब पूछते, जनहित-राष्ट्रहित पर पहल
करते।
असली
लोकतन्त्र की स्थापना तभी हो पाता, अन्यथा अब तक तो मूर्खतन्त्र, भेड़तन्त्र, गुण्डातन्त्र
या कहें छद्म राजतन्त्र की घनेरी छाया में जी रहे हैं।
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