‘ब्रेकथ्रू इंफेक्शन’ के कारण की तलाश

 

ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के कारण की तलाश

ठेठ दोपहरी में वटेसरकाका खेत की मेढ़ पर अजीबोगरीब भंगिमा में नजर आए। उनके एक हाथ में आतशीशीशा था और दूसरे हाथ में वाईनैकुलर टाइप टीन की दुनाली, जिसके दोनों छोरों पर काँच के टुकड़े लगे हुए थे।  मेढ़ पर उकड़ू बैठे काका कभी आतशीशीशे से खेत की मिट्टी में कुछ तलाश रहे थे, तो कभी टीन की दुनाली से दोनों आँखें टिकाकर ऊपर आकाश में कुछ ढूढने लगते थे।

कौतूहलवश मैं उनके पास पहुँचकर पूछा—क्या बात है काका ! भीषण गर्मी में यहाँ मेढ़ पर बैठकर क्या कर रहे हैं और आपके हाथों में ये कौन का उपकरण है?

आहिस्ते से गर्दन हिलाकर मुझे बैठने का संकेत करते हुए काका ने कहा — “ ये आतशीशीशा है बबुआ ! जिसे हस्तरेखा विशेषज्ञ भुलेटन पंडित से मांग कर ले आया हूँ। किसी छोटी चीज को बड़ा करके दिखाने के काम आता है ये। किन्तु ये न समझ लेना कि फेक डाटा को भी बड़ा करके दिखायेगा। डाटा का उलट-फेर तो नेताओं और मीडियावालों का काम है। ये बेजान शीशा भला क्या करेगा और ये दुनाली जो देख रहे हो, अपने दोनों ओर के शीशों के सहारे दूर की चीज को पास करके साफ-साफ दिखाने का फितरत रखता है। इसका ज्यादातर उपयोग पड़ोस या पड़ोसन पर नज़र रखने के लिए करते हैं लोग।

इतना कहकर काका जरा रुके और फिर मेरी ओर गौर से देखते हुए बोले — “ये तो रहा तुम्हारे दूसरे वाले सवाल का जवाब। अब पहले वाले की बात बतलाता हूँ। देख ही रहे हो कि पूरी दुनिया पिछले साल से ही तबाही के कगार पर है। एक महामारी पिंड नहीं छोड़ती कि दूसरी सिर पर सवार होने को उतावली है। कोरोना की कितनी लहरें चलेंगी, अभी तक सांयन्स वाले ठीक से आँक भी नहीं पाये हैं। मीडिया पानी पी-पीकर चीख रहा है— पोस्ट कोविड एफेक्ट के रुप में ब्लैकफंगश (म्यूकर माइकोसिस) और वाइट फंगश (कैंडीडोसिस) का धौंस आतंगवादियों की तरह सीमा में प्रवेश कर चुका है। अरे भाई ! ये मुंहटेढू लैटिन नामों से क्यों डरा रहे हो लोगों को? ठेठ मगही या हिन्दी में कहो न—भूअरी - ‘फफूँदी। बासी दही या कि अचार में हर कोई देखा होगा काला या सफेद भूअरी लगते हुए। सबको पता है कि अचार में जब फफूंद का संक्रमण हो जाता है, तो उसे बचाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि फफूँदी के विकास की रफ्तार बहुत तेज होती है। अब जरा सोचो कि यही दुर्गति यदि फेफड़े या कि शरीर के अन्य भागों में होने लगे तो प्रभावित अवयव की क्या स्थिति होगी ! गौरतलब है कि फफूँदी की अनेक प्रजातियाँ हैं। इतना ही नहीं, आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना का टीका लगवाने के बाद कुछ लोगों में (10,000 में 2-4 को) साइड एफेक्ट के रुप में कुछ न कुछ इन्फेक्शन हो सकता है, जिसे डॉक्टरी भाषा में ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन कहते हैं। किन्तु मजे की बात ये है कि टीकाकरण के बाद भी काफी लोग कोरोना के शिकार हुए हैं और जानी मानी कई हस्तियों की जानें दोनों डोज लेने के बाद भी जा चुकी है। इस हकीकत की लीपापोती नहीं कर सकते। माना कि अनजान बीमारी में सबकुछ अनजान ही है, अन्वेषण-परीक्षण का काम तेजी से जारी है, फिर भी बहुत कुछ है जो अज्ञात है, अदृष्ट है—उसे तहेदिल से स्वीकारते हुए, हालात को मुक्कम्मल सामने रखने में क्यों दिक्कतें आ रही हैं? क्यों झूठ-सच का डाटावेस तैयार कर रहे हो?”

मैंने चौंकते हुए कहा— ये तो बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने। दोनों डोज लेने के बावजूद  कोरोनाग्रस्त होना और काल के पंजे से बँच नहीं पाना, ये तो विपक्ष वालों को और भी मसाला दे दे रहा है चील-पों करने का।

गम्भीर मुद्रा में काका ने कहा — हालांकि मेरे इस छोटे से प्रयास से कुछ होना-जाना नहीं है, फिर भी विपक्ष की इसी कामयाबी पर पानी फेरने की कोशिश मैं भी कर रहा हूँ। ये सांयन्स वाले तो लैबोरेट्रियों में बैठे-बैठे कुछ न कुछ गुल खिलाते ही रहते हैं। पता नहीं तह तक कब पहुँचेंगे, पहुँचेंगे या नहीं—कहा नहीं जा सकता। ज़ाहिर है कि इनके पहुँचने के पहले ही दुनिया तबाह हो जायेगी। यमपुरी में भीड़ लग जायेगी। इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि सारी खुराफातों की जड़ ये सांयन्स ही है। सच पूछो तो इसने दिया कम, छीना ज्यादा है हमसे। हमारी नदियाँ छीनी, हमारे पर्वत छीने, हमारी हरीतिमा छीनी, हमारा सुख-चैन छीना। अब हमारी सांसे छिनने में लगा है। गौरतलब है कि सिफलिश-गनोरिया से लेकर एड्स और कैंसर तक सब विदेशों में ही पैदा हुए हैं। हमने अपनी सभ्यता-संस्कृति को धत्ता बताकर, उन्हें आयात किया है या कहो हम पर एडॉप्ट किया गया है ये सब। किन्तु किया क्या जाए, आधे से अधिक भारत अंग्रेज हो गया है। इसे भला कौन समझाये कि अब तो लौट आओ मेरे भाई ! बहुत मटरगस्ती कर लिए पश्चिमी परिवेश में। आज तुम हमें जिस कोरेन्टाइन और सेनेटाइजेशन की बात सिखा रहे हो, एकान्त, संगरोध, पवित्रता और स्वच्छता कहकर हमारे ऋषि-मुनियों ने लाखों वर्षों पहले सिखा दिया था। जिस छूआछूत को मनुवादी घटिया सोच कह कर तुमने ठुकराया है, उसी छूआछूत-नियम को अब अपना रहे हो पश्चिम के कहने पर। हाँ, फर्क इतना है कि अगर-कपूर,गुग्गल-देवदार के धुँए की जगह फॉगिंग कर रहे हो। पंचगव्य और गंगाजल के वजाय अल्कोहल से शुद्धि कर रहे हो। सांयन्स ने हमें प्रकृति से खिलवाड़ करना सिखलाया है सिर्फ। प्रकृति का दोहन और भ्रंश सिखलाया है सिर्फ। धरती से आकाश तक कुछ भी स्वच्छ नहीं रहने दिया। पीपल-तुलसी उजाड़ कर, कैक्टश-यूक्लिपटस लगवा दिया। मनी से दूर-दूर का सम्बन्ध नहीं है जिसे, उस मनीप्लांट का चलन चला दिया। सुकर्म से अर्थोपार्जन के वजाय, रातों-रात करोड़पति बनने का गुर सिखा दिया। यही वजह है कि उधार के इन दो उपकरणों के सहारे मैं अपनी मिट्टी और हवा में सुकून तलाश हूँ बबुआ ! और पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूँ कि ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन का असली कारण यहीं कहीं मिलेगा। सांयन्स तो खुद भटका हुआ है, वो भला क्या तलाशेगा ! सांयन्स से मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि हो सके तो कोई ऐसी डिवाइस इज़ाज दो, ऐसा हाईपावर मैग्नेटिक फिल्ड तैयार कर दो, जिससे खिंचा-खिंचा मेरे ऋषि-मुनियों वाला आर्यावर्त वापस आ जाए। मेरे हीरे-जवारात तो तुमने भोग लिए, खा-पचा लिए। किन्तु मेरे सद्ग्रन्थ मुझे वापस कर दो । फिर मैं ढूढ लूँगा उनमें महर्षि च्यवन वाला यौवनप्राश...।   

काका कहे जा रहे थे। मैं सोचे जा रहा था। आँखों से टपकते गरम-गरम आँसू खेत की मिट्टी पर चू-चू कर सोंधी-सोंधी सुगन्ध के साथ नथुनों में समाती जा रही थी। लग रहा था मानों नेचुरल वेपोराईज़र से फेफड़ों को नया जीवन मिल रहा हो।

 

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