प्री वेडिंग :: लाइफ टाईम गारन्टी वाली बीबी

 

छोटा बच्चा हाथ से खिलौना छीन लेने पर जैसे झल्ला उठता है, उसी तरह झल्लाते हुए भुलेटनभगत मॉल से बाहर निकले। एकदम से पुलिसिया अन्दाज़ में अपने नाती का हाथ जकड़ रखा था, जिसका तमतमाया हुआ चेहरा, ऊँची डंठल पर खिलकर मुरझाये हुए फूल की भाँति लटका हुआ था। संयोग से मैं वहीं से गुज़र रहा था। नजर पड़ जाने पर, हाल-हुलिया जाने-समझे वगैर चल देना भी तो ना इन्साफ़ी है। अतः पूछना पड़ा—क्या बात है भगतजी ! नाती ने मॉल में पॉकेटमारी की है क्या, जो इस कदर इसका हाथ उमेठे लिए जा रहे हैं? क्रोध में तो लोग कान उमेठते हैं, किन्तु आजकल तो चाइल्डटॉर्चर में आता है, इस तरह की गार्जियनी। बच्चा नालायक निकल जाए, कोई बात नहीं, परन्तु गुरुजी या अभिभावक उसे शारीरिक दण्ड नहीं दे सकते। डांट-डपट भी ज्यादा करेंगे तो मेन्टलटॉर्चर का मुकदमा हो जायेगा। अंग्रेजी कानून की फोटोकॉपी वाला अपना वाला कानून भी शिक्षा-व्यवस्था की तरह ही बिलकुल कॉन्वेंटी हो गया है।

जैसा कि हम सब जानते ही हैं, भगतजी बोलने में माहिर हैं, सुनने में उन्हें बहुत कम दिलचश्पी है। किन्तु आज पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं पहले इतना बोल गया और उन्हें बोलने का मौका न दिया। उनके सब्र की बाँध सरकारी डैम की तरह बिन बरसात के ही भरभरा कर ढह गया और दांत पीसते हुए कहने लगे—

ये कॉन्वेंटी व्यवस्था ने सब कुछ चौपट कर दिया है हमारा—लोक-लाज, नेत-धरम, मान-मर्यादा...। आज नतिया ने जिद्द की नये वाले मॉल से जीन्स-टॉप खरीदने के लिए। भले-चंगे कपड़े को फाड़-फूड़, बदरंग कर पहनने का फैशन चल पड़ा है। हमारे जमाने में तो भिखमंगा भी ऐसा ड्रेस पसन्द नहीं करता, जो आज के हीरो टाइप लड़के कर रहे हैं। मजे की बात ये है कि मॉल में बाकायदा ट्रायल रुम बना हुआ है—कपड़े पसन्द करो, अन्दर जाकर पहन कर आईने के सामने दो-चार पोज़ मारो , फिट जँचा तो ओ.के., वरना चेंच...। टेस्ट एण्ड ट्रायल वाजारवाद का नया ट्रेंड है, हर चीज जाँच-परख कर लेने वाली । एक के साथ एक फ्री वाला मजा भी। बहुत सी चीजों में गारन्टी ही नहीं, वारंटी भी। पछुआ वयार  ने एक से एक नयी बीमारी लगा दी है। गन्धर्व विवाह और वरमाला का रिवाज़ तो पहले भी था, अँगूठियों की अदला-बदली पहले भी होती थी। किन्तु अब रिंग सेरेमनी से भी पहले प्री वेडिंग का एक नया रिवाज़ निकल पड़ा है—ओवर अल्ट्रामॉर्डेन सोशायटी में।  तुम जानते ही हो कि अल्ट्रामॉर्डेन का मतलब ही होता है—औंधे मुंह गिरा हुआ आदमी। और उसमें भी ओवर वाला एडजेक्टिव लग जाए तो सोचो क्या गति होगी...। 

मैं जरा चौंका—रिंग सेरेमनी तो सुना हूँ। देखा भी हूँ; किन्तु ये प्री वेडिंग क्या होता है भगतजी ! आज पहली बार आपके मुँह से सुन रहा हूँ।

भगतजी ने गिरगिट की तरह गर्दन हिलायी— बड़े चतुर हो। सबकुछ हमारे ही मुँह से सुन-जान लेना चाहते हो। वो कार बेचने वाले टेस्ट ड्राईव के लिए चाभी सौंपते हैं कुछ देर के लिए, कुछ-कुछ वैसा ही होता है ये नयी वाली वेडिंग-सेडिंग-सिस्टम में। वो जींस-टॉप मार्का जोड़ियाँ अपनी औकात मुताबिक टूर-प्रोग्राम बनाती हैं हिल-सिल या सी बिच एरिया में। समुद्र की गहराई और पहाड़ की ऊँचाई से तुलना करती हैं अपने इश्क-वो-मुहब्बत का। जी भर कर मौज-मस्ती होती है प्री वेडिंग प्रोग्राम में । और जब जी भर जाता है, तो वापस आकर या तो रिंगसेरेमनी और वेडिंग प्रोग्राम बनता है या किसी नये टेस्ट-ड्राईव की तैयारी होने लगती है। टेस्ट ड्राईव के बीच कुछ ज्यादा गड़बड़-सड़बड़ हो गया यदि और नौसिखुआ ड्राईवर साफ मुक़र गया तो बहुत बार आत्महत्या की नौबत भी आ जाती है। हालाँकि आजकल डी.एन.सी. के कलाबाजों के सजे-धजे नर्सिंगहोम सदा ऐसे अनाड़ी ड्राईवरों और गाड़ियों की तलाश में आश लगाये रहते हैं। ये सब कॉन्वेंटी सभ्यता की देन है बबुआ। मजे की बात तो ये है कि आधुनिक माँ-वाप अपने बच्चों को इस सभ्यता में सुशिक्षित करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। सनातन गुरुकुल शिक्षा-व्यवस्था की समाधि पर कॉन्वेंटी शिक्षा-पद्यति की नींव डाली गयी है।  कन्वेंटी का असली वाला अर्थ मालूम है न? ”

मैंने हामी भरी—क्यों नहीं। आजकल तो विश्वभाषा अंग्रेजी का बोलबाला है न और अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा तो कॉन्वेंट स्कूलों में ही मिल सकती है।

तेल चुक चुके दीए जैसा अचानक भभक पड़े भगतजी—दुनिया के दो सौ तीस देशों में मात्र साढ़े तीन देश की भाषा को विश्वभाषा कहते शरम नहीं आती तुम्हें? अंग्रेजियत के दुम खुसे भारतीयों के अलावे कोई मूरख ही होगा, जो सबसे दरिद्र भाषा को विश्वभाषा का दर्जा दे। रही बात कॉन्वेंट की। लगता है तुम्हें इसका भी असली अर्थ नहीं मालूम। यस सर...यस सर का रट्ट लगाने वालों को न ‘Sir’ का अर्थ मालूम है और न कॉन्वेंट का। और भी बहुत से ऐसे प्रचलित शब्द हैं, जिनका हम प्रयोग तो धड़ल्ले से करते हैं दिन-रात, परन्तु असली अर्थ का कुछ अता-पता नहीं होता। हर सुसभ्य महिला खुद को मैडम सम्बोधित होना पसन्द करती है। मिस्टर और  मिसेस मिस्स को आदर सूचक शब्दों में गिना जाता है। किन्तु सोचने वाली बात है कि ये सब यदि आदर सूचक शब्द हैं, तो फिर अनादर सूचक किसे कहा जाए ! ‘Slave I Remain’ के पहले अक्षरों को निकाल कर शब्द बना SIR जिसका प्रचलित अर्थ आदर सूचक शब्द महाशय लिया जाता है, जबकि असली प्रयोजन है ये स्वीकृति – मैं आपका सदा गुलाम रहूँगा। फिरंगी शासक यही चाहते थे—पूरी दुनिया उनकी गुलाम बनी रहे और इसी उद्देश्य से इस एब्रीवियेशन को प्रचारित किया गया था। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अंग्रेजों के यहाँ वाकायदा विवाह से कहीं अधिक प्रचलन है  लीव इन रिलेशनशिप  का । और इस अधिकार-अनाधिकार की बात से प्राकृतिक प्रजनन-व्यवस्था को कुछ लेना देना नहीं। अनधिकृत जोड़े साथ-साथ रहेंगे तो भी बच्चे तो पैदा होंगे ही न ! और फिर उन बच्चों के परवरिश का दायित्व-बोझ कौन वहन करेगा—मौज में बहते पुरुष या स्त्री ! स्वतन्त्र मिज़ाज़ मन मौज़ियों को दायित्व-बोध कहाँ ! नतीजन एक समय ऐसा आया कि लावारिशों की कौम खड़ी हो गयी पश्चिम में। सत्रहवीं शती के शुरुआती दिनों में एक विचारक ने बड़े यत्न से एक परम्परा चलाई—कॉन्वेंट—यानी लावारिशों की परवरिश का स्थान नियत किया गया ईसाईयों के उपासना गृह— चर्चों में। फादर, मदर, सिस्टर सम्बोधन के साथ लावारिशों को तथाकथित माँ, वाप, बहन के रिश्तों का छद्म एहसास कराया जाने लगा। उन्नीसवीं शती के मध्य आते-आते अंग्रेज-शासित भारत में भी बड़े सुनियोजित ढंग से ये परम्परा पनपने लगी। और अब तो सबकुछ मेकाले और उसके तथाकथित औलादों के आबनूसी नियम-कायदों के शख्त गिरफ़्त में आ चुका है। मिस्टर का सही अर्थ कोई सभ्य आदमी नहीं होता और न मिसेस का अर्थ सभ्य महिला ही होता है। ये दोनों ही रखैल बोधक अर्थ वाले हैं। एक से अधिक पुरुषों से सम्बन्ध बनाने वाली औरत को मिसेस कहा जाता है और अनेक स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने वाले पुरुष को मिस्टर। यानी कि पति-पत्नी के पवित्र बन्धन से मुक्त है ये सम्बन्ध। अतः इस भ्रम में न रहो कि  पत्नी को मिसेस कह कर आदर दिया जा रहा है और पति को मिस्टर कह कर। रही बात लाईफ टाईम गारन्टी वाली बीबी ढूढ़ने वाले सिरफिरों की, जो प्रीवेडिंग टेस्ट को अपना रहे है पागलों की भाँति, तो उन्हें जान लेना चाहिए कि ये गारन्टी सिर्फ और सिर्फ भारतीय विवाह पद्यति में ही मिल सकती है और न्याय-व्यवस्था के धोंधेबसन्तों को भी जान लेना चाहिए कि भारतीय विवाह पद्यति में तलाक नाम की मर्ज़ नहीं है और डाइवोर्स तो तलाक का ही भाषान्तर मात्र है। ये बात दिग़र है कि अंग्रेजों के सारे पोथड़ों को हमने ससम्मान सिर चढ़ा रखा है, उसी तरह हमारी स्मृति और धर्मशास्त्रों को  धत्ताबता कर, होमोसेक्स और लीव इन रिलेशन शिप को भी कानूनी ज़ामा पहना दिया है तथाकथित बुद्धि विशारदों ने, जिन्हें बौद्धिक होने का भ्रम हो गया है सत्ता के गलियारों में टहलते-टहलते। प्रीवेडिंग एक अन्धकूप है, जिसमें युवा वर्ग औंधे मुँह गिरने को बेताब है। मजे की बात ये है कि पश्चिम इन असभ्यताओं से उब कर हमारी परम्पराओं को अपना रहा है और हम हैं कि उसी खाई में कूदने को सौभाग्य और सभ्यता समझ रहे हैं।  

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