प्रमोशन में आरक्षण

 प्रमोशन में आरक्षण

सोढ़नदास जी आज कुछ व्यस्त से नजर आए। सच में व्यस्त थे या अस्त-व्यस्त—निश्चित रूप से कहना जरा मुश्किल है। उनके सामने अखबार के कुछ पन्ने बिखरे पड़े थे। पछुआ हवा के झोंके उन्हें बार-बार उकसा रहे थे—छुटभैया नेताओं की तरह। सोढ़नदास जी उन्हें बार-बार ठीक करने की कोशिश में लगे थे, जैसे सड़क किनारे के अतिक्रमण हटाने में प्रशासनिक कोशिशें हुआ करती है। हवा के झोंके और अखबार के पन्नों में गिरायी गयी सरकार की तरह तालमेल बिलकुल बैठ नहीं पा रहा था।

सोढ़नदास जी का मानना है कि आरक्षण की बीमारी चल ही पड़ी है पिछले सात दशकों से तो इसे कुछ दिन और चलना चाहिए। दो-चार सरकारें और आएं-जाएं। समाज-राष्ट्र का कल्याण हो ना हो, आरक्षण के नाम पर रोटियाँ सेंकने वालों का काम तो बखूबी हो ही रहा है न। ये बड़ा सा अलाव बुझ जायेगा, तो फिर जैसी-तैसी अनसिंकी कच्ची रोटियाँ खानी पड़ेगी कुछ लोगों को।

यहाँ तक तो बात समझ में आती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बीड़ा उठा ही लिया है—इन मुद्दों पर विचार करने का। किन्तु सबसे बड़ी बात जो समझ से परे है कि बी.डी.ओ. साहबों का प्रमोशन इस बात पर क्यों और कैसे रुका हुआ है !  वे ताड़ी का प्रमोशन कराने में बिफल क्यों हो रहे हैं। यही कारण है  कि ताड़ी के प्रमोशन में भी आरक्षण वाला नियम लागू होने पर विचार चल रहा है। किन्तु विचार है कि पहले ताड़ी पीने वालों को प्रमोशन मिले, फिर ताड़ी चुलाने और बेंचने वालों को । और ये दो प्रमोशन ग्रान्ट हो गए यदि तो फिर किसकी मजाल जो वी.डी.ओ.साहब का प्रमोशन रोक दे। 

दैनिकभास्कर का एक कतरन मेरे सामने सरकाते हुए सोढ़नदासजी ने कहा — तुम भी पढ़ लो बबुआ इस खबर को। बी.डी.ओ. साहब ने गांव-गांव में घूम कर लोगों को समझाने का बीड़ा उठाया है कि पहले वाली ताड़ी तो नशे वाली चीज होती थी, जिसे गरीब-गुरबा लोग पीते थे। पीने वालों को भी हेय दृष्टि से देखा जाता था। इसीलिए इसका न्यू  लेबलिंक कर दिया गया है—नीरा के नाम से। नयी सोंच वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि  नीरा को नशे से दूर-दूर का सम्बन्ध नहीं है। ये बड़ा ही पौष्टिक चीज है। इसे कई फ्लेवर में भी डिजाइन किया गया है—आम, लीची, गुलाब, लेमन, मोंगरा आदि।  उस आदमी का जीना बेकार है, जिसने जीवन में कभी नीरा नहीं चखा। खास कर गर्मियों में सुबह उठते ही विलायती चाय की जगह  दो गिलास ताजा देशी नीरा गटक लो, दिन भर मिज़ाज चंगा रहेगा। ये विशुद्ध राष्ट्रीय प्रोडक्ट है। मजे की बात है कि ताड़ी नाम बहुत पुराना है। ये एकदम से आउट डेटेड हो गया है। इसे नये नाम की ब्राण्डिंक करके, स्टार्टअप के थ्रू उतारने की जरुरत है—इसी में समाज और राष्ट्र की भलाई है। भगवान कभी भला न करें उन पंडितों और पोथियों का, जिन्होंने ताड़ी को बुरी नजरों से देखा और समाज को गुमराह किया। सोचने वाली बात है घोर कलियुग में ताड़ी नहीं पीओगे तो गाय का शुद्ध दूध पीकर क्या करोगे  ! और इसके पीछे का वजह है कि जब गाय ही शुद्ध नहीं है, सब हाईब्रीड जेब्राईल हो गयी हैं, तो दूध का असली शुद्धि कहाँ से नसीब होगा ! अब भला असली दूध का हायर डिमाण्ड पूरा करने के लिए दिल्लीवाले तरह-तरह की कलाबाजियाँ दिखाते ही हैं, तो इसमें क्या गलती है? सबकुछ फ्री मुहैया कराने वाले मंत्रीजी भी तो दूध की किल्लत पर विचार नहीं करते। और जब दूध नसीब नहीं है, तो ताड़ी पीने में क्या दिक्कत है ! सुनने में आया है कि हमारी सरकार से दिल्ली सरकार की कुछ इन्टरनल डीलिंग चल रही है—ताड़ी का भारी खेप दिल्लीवालों को भेजने की बात चल रही है। दूतावासों में भी बोदका की जगह ताड़ी सर्व की जायेगी। ताकि धीरे-धीरे ताड़ी का इन्टर्नेशनल डीमाण्ड क्रियेट हो सके।  ताड़ी का घरेलू उत्पाद बढ़ेगा तो निश्चित ही नये लोगों को रोजगार मिलेगा । रोजगार मिलेगा तो छुछुन्दरकट जुल्फीधारियों को राज्य से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। कुछ लोगों का कुतर्क है कि ये तो सीजनल धन्धा है। उन बेवकूफों को मालूम नहीं है कि वैज्ञानिक ऐसे आर्टीफीशियल ताड़ के इज़ाद में जुटे हैं, जो सालों भर ताड़ी स्रवित कर सके। सभी परमोटेड वी.डीओ. को विदेश भेजने की योजना है नयी नस्ल वाली ताड़ और नये ब्रांड वाले नीरा के उत्पादन का प्रशिक्षण लेने के लिए। यही कारण है निकम्मे से निकम्मे साहबान भी अब खनन माफियाओं का साथ छोड़कर दारू माफियाओं की संगत में जुट गए हैं। हालाँकि कुछ लोगों का कहना है कि खनन और दारू दोनों विभागों का समेकीकरण हो गया है। सभी घाटों की बन्दोबस्ती हो चुकी है। महुआ के सारे पेड़ गिने जा चुके हैं पिछले दो-चार वर्षों में।  अब वी.डी.ओ.साहबों को ताड़-खजूर के पेड़ गिनने की नयी ड्यूटी लगा दी गयी है, जो जल्दी से जल्दी प्रमोशन दिलाने वाली है।

सोचता हूँ— बी.पी.एस.सी.की तैयारी में लग ही जाऊँ। समेकीकृत विभाग में नियुक्ति मिल गयी सफेदपोशीकृपा से, तो अगली पंचवर्षीययोजना में राजधानी में एक अपार्टमेन्ट जरूर हो जायेगा। बीबी और साली को जेवर वाला गिफ्ट भी तो देना है न। 

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