अनुक्रमणिका
* प्राक्कथन —
१. संस्कार
परिचय—
Ø गर्भाधानसंस्कार
परिचय—
Ø गर्भाधानसंस्कार
प्रयोग—
Ø गर्भाधान
के पश्चात् कृत्य—
Ø पुंसवनसंस्कार
परिचय—
Ø पुंसवनसंस्कार
प्रयोग—
Ø सीमन्तोन्नयनसंस्कार
परिचय—
Ø सीमन्तोन्नयनसंस्कार
प्रयोग—
Ø जातकर्मसंस्कार
परिचय—
Ø जातकर्मसंस्कार
प्रयोग—
Ø षष्ठीपूजा(एक
अपरिहार्य कर्म)—
Ø षष्ठीपूजा प्रयोग—
Ø राहुवेधन—लोकाचार
कृत्य—
Ø नामकरण संस्कार परिचय—
Ø नामकरण संस्कार प्रयोग—
Ø निष्क्रमण,सूर्यावलोकन,भूम्योपवेशन,
दोलारोहणादि
संस्कार परिचय —
Ø निष्क्रमण,सूर्यावलोकन,भूम्योपवेशन,
दोलारोहणादि
संस्कार प्रयोग—
Ø अन्नप्राशनसंस्कार परिचय —
Ø अन्नप्राशनसंस्कार
प्रयोग —
Ø चूड़ाकरण,चौल(मुण्डन)संस्कार
परिचय —
Ø चूड़ाकरण,चौल(मुण्डन)संस्कार
प्रयोग —
Ø अक्षरारम्भ-विद्यारम्भ(अपरिहार्यकृत्य)—
Ø कर्णवेध
संस्कार परिचय और प्रयोग—
Ø उपनयन,
यज्ञोपवीत, वेदारम्भ-
-समावर्तन
संस्कार परिचय—
Ø यज्ञोपवीत
का धर्मशास्त्रीय आधार—
Ø यज्ञोपवीत
का शरीरशास्त्रीय आधार—
Ø यज्ञोपवीत—नियम
और मर्यादा—
Ø यज्ञोपवीत—परिमाण
और निर्माण—
Ø उपनयनादि
समेकित संस्कार प्रयोग—
Ø विवाहसंस्कार
परिचय—
Ø कुण्डलीमिलान
प्रथम प्रक्रिया —
Ø कुण्डलीमिलान
का अन्धकार पक्ष—
Ø विवाहमुहूर्त
विचार एवं अन्य बातें—
Ø विवाहाङ्गभूत
विविध कृत्य परिचय—
Ø विवाहाङ्गभूत
विविध कृत्य प्रयोग—
Ø विवाहसंस्कार
(मुख्यकृत्य) प्रयोग—
Ø विवाहसंस्कारान्त
चतुर्थीकर्म—
Ø अन्त्येष्टि
संस्कार परिचय—
· मृत्यु-सूचक
चिह्न-चर्चा—
· मरणासन्न
अवस्था के कृत्य—
· देहत्याग
के पश्चात् के कृत्य—
Ø अन्त्येष्टि
संस्कार प्रयोग—
Ø अशौचकालिक
विविध कृत्य—
२. शौचाशौच
विचार—
(क)शौच प्रकरण—
(ख)अशौच प्रकरण—
३. दान-ग्रहण
एवं श्राद्धभोजन वर्जना—
४. भक्ष्याभक्ष्य
विचार—
५. नित्यतर्पण—
६. संक्षिप्त
संध्या वन्दन —
७. जन्मदिन(वर्धापन)विमर्श—
८. विशिष्ठ
व्रतोपवास—
९. कुलदेवोपासना—
१०. श्रावणीकर्मःएक
विस्मृत कृत्य—
११. अव्यङ्गधारणःमगों
का विस्मृत कृत्य
१२. दीपश्राद्धःएक
विस्मृत कृत्य—
परिशिष्ट—
v विविधोपचार—
v पत्र-पुष्प
विचार—
v पूजन
सम्बन्धी विविध बातें—
v स्वस्तिवाचन,पुण्याहवाचन—
v नान्दीमुखश्राद्ध—
v गणेशाम्बिकादिपञ्चांगपूजन—
v कुशकण्डिकादि
हवनविधान—
v स्तोत्रादि
पाठ—
(क)आदित्यहृदयस्तोत्र—
(ख)सूर्यकवच—
(ग)गायत्रीहृदय—
v
v संकलक(लेखक)परिचय—
प्राक्कथन-
प्रिय मगबन्धुओं !
सूर्यांश शाकद्वीपीय ब्राह्मण कुल में जन्म ग्रहण करने
के कारण, स्वाभाविक है कि इस विशिष्ट दिव्य वर्ग के विषय में विशेष रूप से
चिन्तन-मनन किया जाए। निश्चित है कि चिन्तन-मनन के क्रम में सिर्फ गौरवपूर्ण
इतिहास ही नहीं मिलेगा, प्रत्युत अति दयनीय वर्तमान और चिन्ताजनक भविष्य पर भी
ध्यान जायेगा ही।
इस
चिन्तन-मनन ने ही अन्वेषण हेतु प्रेरित या कहें विवश किया विगत वर्षों में, जिसके
परिणामस्वरूप “पुण्यार्कमगदीपिका” नामक शोध
पुस्तिका का प्रणयन कर पाया। विदित हो कि अन्यान्य पुस्तकों की तरह समुदाय विशेष
की इस पुस्तिका को किसी पेशेवर प्रकाशन में तो स्थान मिलना नहीं था, फलतः सन् २०१७ ई. में स्वयं ही
प्रकाशित कराना पड़ा — “सुमंगलम्
प्रकाशन” (अपने
दादाजी की संस्था- श्रीयोगेश्वर आश्रम का प्रकाशन विभाग) के बैनर तले।
इसी बीच सौभाग्य से मगजागृति फाउण्डेशन,
राँची से सम्पर्क बना और इसके सौहार्द-सौजन्य से शाकद्वीपियों की बहुमूल्य
प्रशस्ति विषयक लुप्त प्राय पुस्तक— मगतिलकः (१९४२ई. में
आदरणीय पं.रामधन पाठक जी द्वारा रचित) का
प्रकाशन सन् २०२१ ई. में सम्भव हो पाया। उक्त पुस्तक का मैंने सिर्फ टंकण-सम्पादन
किया है। इसका हिन्दी अनुवाद आदरणीय डॉ. मदुसूदन पाण्डेय जी ने किया है। प्रिय डॉ.सुधांशु
शेखर मिश्रजी के उत्साहपूर्ण कार्य से मैं भी उत्साहित हुआ और एक नयी पुस्तक के
प्रणयन हेतु संकल्पित हो गया।
सामान्यतः द्विजमात्र के लिए शौचाचार, संस्कारादि विषयक विविध निर्देश अनेक शास्त्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ऐसे में नयी पुस्तक के प्रणयन का क्या औचित्य?
विचार करने पर किंचित् कमी खली। प्रबुद्ध विद्वद्जन के लिए भले ही अनेकानेक पुस्तकें हैं, किन्तु हमारी भावी पीढ़ी के लिए
एक ऐसी पुस्तक की नितान्त आवश्यकता है, जहाँ एकत्र रूप से शौचाशौच आचार-विचार के साथ-साथ अत्यावश्यक संस्कार, नित्य कृत्य, वार्षिक कृत्यादि सम्यक् रूपसे उपलब्ध हों। मूलतः संस्कृत में लिखी गयी क्लिष्ट निर्देशों और विधियों को सहज ही नयी पीढ़ी समझ सके और आसानी से उसका प्रयोग भी कर सके—इस उद्देश्य से मन्त्रों के साथ-साथ उनके प्रयोगों का निर्देश सरल हिन्दी भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में उन विशेष कृत्यों की चर्चा की गयी है, जिनका पालन शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को आलस्य रहित होकर, अपरिहार्य रूप से करना चाहिए।
ध्यातव्य है कि प्रस्तुत पुस्तक कोई
कर्मकाण्डीय पद्धति नहीं है, फिर भी कुछ खास पद्धतियों को समाहित किया गया है।
जैसे— शाकद्वीपीय कुलदेवता पूजा-पद्धति, उपाकर्म विधि, दीपश्राद्ध विधि इत्यादि। इन्हें
इस कारण समाहित करना पड़ा है, क्योंकि ये विधियाँ अन्यत्र सुलभ नहीं हैं। उपनयन,
विवाह, श्राद्धादि पद्धतियाँ तो भरी पड़ी हैं। अतः उनके अत्यावश्यक क्रमों का
संकेत मात्र यहाँ दिया गया है।
वैधिक
विस्तार को यथासम्भव संतुलित-संक्षिप्त करते हुए, इस बात का सदा ध्यान रखा गया है
कि मूल यथावत सुव्यवस्थित रहे और जटिल जीवन की आपाधापी में अस्त-व्यस्त नयी
पीढ़ी अपने संस्कारों और कृत्यों से विमुख होने को वाध्य न हो, यानी सहजता से
अंगीकार कर सके अपनी अपरिहार्य क्रियाओं को।
हो सकता
है, मेरे इन विचारों से बहुत लोग सहमत न हों। ‘भाग्य और
कर्म’ की मनमानी नयी परिभाषा गढ़ते हुए, सनातन और पारम्परिक
कृत्यों को पुरानपंथी विचारधारा कहकर निरस्त कर दें। अतः उनसे मेरा साग्रह निवेदन
है कि प्रयोग के तौर पर कुछ वर्षों तक इन्हें साध कर अवश्य देखें।
सूर्य और
सावित्री से दूर जाकर, सूर्यांश शाकद्वीपीय का कदापि कल्याण नहीं हो सकता। अतः हमें
अपनी विस्मृत तेजपुञ्ज को पुनः लब्ध करने का प्रयास करना है। इस पुनीत कार्य में
मेरा ये क्षुद्र प्रयास अवश्य सहयोगी होगा—ऐसा विश्वास है मुझे। अस्तु
कमलेश पुण्यार्क मैनपुरा, पो.मैनपुरा-चन्दा,
कलेर,अरवल(बिहार)
मो.वाट्सऐप-8986286163 guruji.vastu@gmail/facebook
सूर्यसप्तमी, विक्रमाब्द २०७८
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