बाबा वटेसरनाथ सौभाग्य से आँख-कान के साथ मन का घुड़दौड़ जारी हो और इनके साथ-साथ दिमाग भी दुरुस्त हो, तो निश्चित मानिए कि चहुँओर दृश्यों और घटनाओं की बाढ़ नजर आयेंगी। संयोग से आपका मन जरा लेखकीय ‘ लत ’ वाला हो तो संस्मरणों और आलेखों में कैद करने को आकुल हो ही जायेगा। बाबा वटेसरनाथजी ऐसे ही एक विशेष व्यक्ति हैं, जिनके बारे में कुछ कहे-बतलाये बिना मन बेचैन हो रहा है। किन्तु इससे पहले ये स्पष्ट कर दूँ अपने स्नेही जनों से, खासकर उन पाठकों से, जो हमारे प्यारे “ वटेसरकाका की बतकहियों ” से बाकिफ हैं – बाबा वटेसरनाथ पुराने परिचित वटेसरकाका नहीं, बल्कि उनसे बिलकुल भिन्न व्यक्तित्व वाले एकदम अनजान व्यक्ति हैं आप सबके लिए। इनके बारे में जान लेने के बाद आपको भी लगेगा—कहाँ वटेसरकाका और कहाँ वटेसरनाथ ! वैसे भी चिर परिचितों से मिलने की तुलना में नए व्यक्ति से मिलने का अलग ही आनन्द है। अब इसका ये अर्थ आप न लगा लें कि पुराने लोगों से नहीं मिलना चाहिए। अरे भाई ! मगही में एक कहावत है कि पथ्य पुराने चावल का ही होना चाहिए। किन्तु नए चावल का स्वाद लेना भी कम प्रीतिकर नहीं हुआ करता और नये
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